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महावीर जयंती विशेष : महावीर स्वामी ने बनाए थे ये 5 महाव्रत

हर साल चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को महावीर जयंती मनाई जाती हैं। जैन धर्म के अनुयायिओं द्वारा महावीर स्वामी के पूजा के साथ ही इस दिन प्रभातफेरी और रथयात्रा का आयोजन भी किया जाता हैं।



महावीर स्वामी का पूर्ण जीवन हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरक कहानी हैं। आज इस कड़ी में हम आपको महावीर स्वामी द्वारा बनाए गए 5 महाव्रत की जानकारी लेकर आए हैं जिनका जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा पालन किया जाता हैं।

सत्य- दुनिया में सबसे शक्तिशाली

महावीर स्वामी ने कहा था कि जीवन में सत्य को प्रमुखता देनी चाहिए। बुद्धिमान मनुष्य सत्य की छाया में रहता है और यही कारण है कि वह हर बंधन से मुक्त रहता है। सत्य दुनिया में सबसे शक्तिशाली है। एक अच्छे इंसान को कभी सच का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। मानव को बेहतर इंसान बनने की कोशिश करनी चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि वह सत्य की शरण में रहे। सत्य का मतलब उचित या अनुचित में से उचित के चुनाव से है। सत्य में हमारे मन व बुद्धि को शुद्ध करने की शक्ति होती है। इसलिए इसका अनुसरण करना चाहिए।

अहिंसा- अहिंसा परमो धर्म:

दूसरों के प्रति हिंसा का भाव न दिखाना ही अहिंसा है। जैसा हम खुद के विषय में सोचते हैं और वैसा ही दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। अहिंसा को परिभाषित करते हुए भगवान महावीर ने कहा कि अहिंसा परमो धर्म:। इसके तहत हमारी कोशिश होनी चाहिए कि जाने अनजाने में हानि न पहुंचाएं। मानव मात्र के पास ही किसी को कष्ट से बचाने की अद्भुत शक्ति है। इसका उपयोग करते हुए हमें अहिंसा के पथ पर चलना चाहिए।

अस्तेय- लालच करना महापाप

दूसरों की चीजों को कभी नहीं चुराना चाहिए। ऐसी इच्छा रखना या दूसरों की चीजों को देखकर लालच करने को महापाप की संज्ञा दी गई है। इस सिद्धांत में उन्होंने बताया है कि जो भी चीज आपको मिली है, उसमें संतुष्ट रहना सीखें। इस सिद्धांत को विस्तार में देखें तो समझ सकेंगे कि इसके माध्यम से वे अज्ञान की अवस्था से बाहर निकलने का संदेश देते हैं। वह शुद्ध आत्मिक स्वरूप को ही ‘मैं या मेरा’ की श्रेणी में रखते हैं।

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ब्रह्मचर्य- मोक्ष की होती है प्राप्ति

भगवान महावीर ने कहा कि इसका पालन करना सबसे कठिन है और इस संसार में जिसने भी इसका पालन किया है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्म में रमते हुए उसमें लगातार स्थित रहना ही ब्रह्मचर्य है। इसके लिए जरूरी है कि अपने शरीर के मोह को कम किया जाए, क्योंकि जब आपका अपने शरीर से ही मोह नहीं रहेगा, तो किसी दूसरे के शरीर से भोग की भावना खत्म हो जाएगी।



अपरिग्रह-माया व मोह ही है दुख का कारण

उन्होंने कहा कि दुनिया नश्वर है और ऐसी दुनिया में माया व मोह ही दुख का कारण है। प्राणी मात्र को चाहिए कि वह माया के बंधंन से मुक्त होने की कोशिश करे। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि अपरिग्रह का सीधा अर्थ है संचय न करना। इससे आप अपने सामर्थ्य पर विश्वास करने लगते हैं आप आत्म जागरण की ओर अग्रसर होने लगते हैं।

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Post By Shweta