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कोकिला व्रत: जानिये कब है कोकिला व्रत और क्या है इसकी कथा

आषाढ़ पूर्णिमा के दिन कोकिला व्रत मनाया जाता है। इस वर्ष कोकिला व्रत 4 जुलाई 2020 को मनाई जाएगी। इस व्रत में आदिशक्ति के स्वरूप कोयल की पूजा करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।


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साथ ही शादी में आ रही बाधा दूर हो जाती है और योग्य वर मिलता है। खासकर, अविवाहित लड़कियों को यह व्रत जरूर करना चाहिए। आइए, इस व्रत की कथा और महत्व को जानते हैं-

कोकिला व्रत की कथा

जब माता सती को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने भगवान शिव से यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी, लेकिन भगवान शिव ने उन्हें अनुमति नहीं दी। जब माता सती हठ करने लगी तो भगवान शिव ने उन्हें अनुमति दे दी।

तत्पश्चात, माता सती यज्ञ स्थल पर पहुंची। जहां उनका कोई मान-सम्मान नहीं किया गया। साथ ही भगवान शिव के प्रति अपमान जनक शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया, जिससे माता सती अति कुंठित हुई। उस समय माता सती ने यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी।

भगवान शिव को जब माता सती के सतीत्व का पता चला तो उन्होंने माता सती को शाप दियाकि आपने मेरी इच्छाओं के विरुद्ध जाकर आहुति दी। अतः आपको भी वियोग में रहना पड़ेगा। उस समय भगवान शिव ने उन्हें 10 हजार साल तक कोयल बनकर वन में भटकने का शाप दिया।

कालांतर में माता सती कोयल बनकर 10 हजार साल तक वन में भगवान शिव की आराधना की। इसके बाद उनका जन्म पर्वतराज हिमालय के घर हुआ। अतः इस व्रत का विशेष महत्व है।

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कोकिला व्रत विधि

इस दिन सूर्योदय काल से पूर्व उठें, तथा सूर्योदय से पूर्व दैनिक कार्य से निवृत होकर स्नान कर लेना चाहिए। तत्पश्चात पीपल वृक्ष या आवला वृक्ष के सान्निध्य में भगवान शिव जी एवम माँ पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करना चाहिए।

भगवान की पूजा जल, पुष्प, बेलपत्र, दूर्वा, धूप, दीप आदि से करें। इस दिन निराहार व्रत करना चाहिए।



सूर्यास्त के पश्चात आरती-अर्चना करने के पश्चात फलाहार करना चाहिए। इस व्रत को विवाहित नारियाँ के साथ-साथ कुमारी कन्याएँ भी कर सकती है।

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Post By Shweta