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जानिए श्रीमद्भागवत गीता के बारे में प्रश्न उत्तर के माध्यम से

प्रश्न. श्रीमद्भागवत गीता किसको किसने सुनाई?

उत्तर – श्रीमद्भागवत गीता  भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।

प्रश्न . श्रीमद्भागवत गीता कब सुनाई? 

उत्तर – 3112 ईसा पूर्व हुए भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। कलियुग का आरंभ शक संवत से 3176 वर्ष पूर्व की चैत्र शुक्ल एकम (प्रतिपदा) को हुआ था। वर्तमान में1940 शक संवत है। इस प्रकार कलियुग को आरंभ हुए 5116 वर्ष हो गए हैं। आर्यभट्‍ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईपू में हुआ। इस युद्ध के 35 वर्ष पश्चात भगवान कृष्ण ने देह छोड़ दी थी तभी से कलियुग का आरंभ माना जाता है। उनकी मृत्यु एक बहेलिए का तीर लगने से हुई थी। तब उनकी तब उनकी उम्र 119 वर्ष थी। इसके मतलब की आर्यभट्टर के गणना अनुसार गीता का ज्ञान 5154 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था।

प्रश्न. भगवान ने किस दिन और किस तिथि को गीता सुनाई?
उत्तर –भगवान श्रीकृष्ण ने मोक्षदा एकादशी (रविवार) के दिन उन्हें श्रीमदभगवद्गीता का महान और सार्वकालिक उपदेश दिया था. यही कारण है कि यह एकादशी ‘गीता जयंती’ के रुप भी मनाई जाती है.

प्रश्न. श्रीमद्भागवत गीता कहाँ सुनाई गयी थी?
उत्तर – गीता कुरुक्षेत्र की रणभूमि में सुनाई गयी थी।

प्रश्न.श्रीमद्भागवत गीता कितनी देर में सुनाई?
उत्तर-श्री कृष्ण ने यह ज्ञान लगभग 45 मिनट तक दिया था।

प्रश्न.श्रीमद्भागवत गीता क्यू सुनाई गयी थी? 
उत्तर – द्वापर युग में महाभारत युद्ध शुरु होने से पहले पाण्डुपुत्र अर्जुन को जब मोह और संशय उत्पन्न हुआ था, तब कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिएगीता सुनाई।

प्रश्न. गीता में कुल कितने अध्याय और कितने श्लोक है?
उत्तर – गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं जिनमे से 574 श्रीकृष्ण द्वारा,84 अर्जुन द्वारा,41 संजय द्वारा और 1धृतराष्ट्र द्वारा कहे गए हैं।

प्रश्न. गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उत्तर – ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

प्रश्न. गीता को अर्जुन के अलावा और किन किन लोगो ने सुना?
उत्तर – गीता को अर्जुन के अलावा धृतराष्ट्र एवं संजय ने सुना।

प्रश्न. अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उत्तर –  परंपरा से यह ज्ञान सबसे पहले विवस्वान् (सूर्यदेव) को मिला था, जिसके पुत्र वैवस्वत मनु थे।

प्रश्न. गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उत्तर – गीता की गणना उपनिषदों में की जाती है। इसी‍लिये इसे गीतोपनिषद् भी कहा जाता है।

प्रश्न. गीता किस महाग्रंथ का भाग है….?
उत्तर – गीता महाभारत के भीष्म पर्व का हिस्सा है। महाभारत में ही कुछ स्थानों पर उसका हरिगीता नाम से उल्लेख हुआ है। (शान्ति पर्व अ. 346.10, अ. 348.8 व 53)।

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प्रश्न. सम्पूर्ण गीता शास्त्र का निचोड़ क्या है?
उत्तर – सम्पूर्ण गीता शास्त्र का निचोड़ है बुद्धि को हमेशा सूक्ष्म करते हुए महाबुद्धि आत्मा में लगाये रक्खो तथा संसार के कर्म अपने स्वभाव के अनुसार सरल रूप से करते रहो। स्वभावगत कर्म करना सरल है और दूसरे के स्वभावगत कर्म को अपनाकर चलना कठिन है क्योंकि प्रत्येक जीव भिन्न भिन्न प्रकृति को लेकर जन्मा है, जीव जिस प्रकृति को लेकर संसार में आया है उसमें सरलता से उसका निर्वाह हो जाता है। श्री भगवान ने सम्पूर्ण गीता शास्त्र में बार-बार आत्मरत, आत्म स्थित होने के लिए कहा है। स्वाभाविक कर्म करते हुए बुद्धि का अनासक्त होना सरल है अतः इसे ही निश्चयात्मक मार्ग माना है। यद्यपि अलग-अलग देखा जाय तो ज्ञान योग, बुद्धि योग, कर्म योग, भक्ति योग आदि का गीता में उपदेश दिया है परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाय तो सभी योग बुद्धि से श्री भगवान को अर्पण करते हुए किये जा सकते हैं इससे अनासक्त योग निष्काम कर्म योग स्वतः सिद्ध हो जाता है।

प्रश्न. गीता सार क्या है? 

उत्तर-भगवत गीता के उपदेश सबसे बड़े धर्मयुद्ध महाभारत की रणभूमि कुरुक्षेत्र के युद्ध में अपने शिष्य अर्जुन को भगवान् श्रीकृष्ण ने दिए थे जिसे हम गीता सार भी कहते हैं। आज 5 हजार साल से भी ज्यादा वक्तगया है लेकिन  उपदेश आज भी हमारे जीवन में उतनेही प्रासंगिक हैं। तो चलिएआगे पढ़ते हैं गीता सार-

  • क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सकता है? आत्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
  • जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।
  • तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
  • खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
  • परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
  • न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है – फिर तुम क्या हो?
  • तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
  • जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान को अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आनंन्द अनुभव करेगा।

 

Post By Shweta