ज्योतिष, भविष्यवाणी और धर्म — संबंध या टकराव?
मानव इतिहास की शुरुआत से ही मनुष्य ने आकाश, समय और अपने भविष्य को समझने की अदृश्य इच्छा को हमेशा जिंदा रखा है। यही जिज्ञासा आगे चलकर ज्योतिष, भविष्यवाणी और धर्म जैसी परंपराओं में बदल गई। आज भी दुनिया में करोड़ों लोग इन तीनों पर किसी न किसी रूप में भरोसा करते हैं, और साथ ही कई लोग इनके बीच के संबंध या टकराव को लेकर सवाल उठाते रहते हैं। मूल रूप से बात यह है कि धर्म, ज्योतिष और भविष्यवाणी तीनों मनुष्य की चिंता, भय, आशा और आध्यात्मिक खोज से जन्मे हैं। धर्म मनुष्य को जीवन का उद्देश्य, नैतिकता और ईश्वर से जुड़ाव का मार्ग दिखाता है। यह बताता है कि व्यक्ति अपने कर्मों, विचारों और आचरण से जीवन को कैसे ऊँचाई पर ले जा सकता है। धर्म का केंद्र है सत्य और आध्यात्मिक अनुशासन। लेकिन इसी यात्रा के दौरान मनुष्य ने यह भी चाहा कि उसके जीवन में आगे क्या होगा, कौन से अवसर और चुनौतियाँ आएँगी, और क्या वह किसी अनिष्ट से बच सकता है। यह प्रश्न ज्योतिष और भविष्यवाणी का मूल बीज बन गया।
ज्योतिष ग्रहों, नक्षत्रों और ब्रह्मांडीय चाल को मनुष्य के जीवन से जोड़कर देखने की पुरानी विद्या है। वैदिक परंपरा से लेकर ग्रीक और अरबी विद्वानों तक, ज्योतिष हमेशा सभ्यताओं का हिस्सा रहा है। कई लोग इसे विज्ञान नहीं मानते, लेकिन समाज का बड़ा हिस्सा आज भी इसे निर्णयों में मार्गदर्शन की तरह देखता है। दूसरी ओर भविष्यवाणी, जिसे डिविनेशन कहा जाता है, संकेतों, प्रतीकों और अंतःप्रेरणा के आधार पर उत्तर देने का प्रयास करती है। इसमें टैरो कार्ड, हस्तरेखा, ओरेकल, रून्स या स्वप्न-विश्लेषण जैसी विधियों का उपयोग होता है। भविष्यवाणी ज्योतिष से अलग इस अर्थ में है कि यह व्यक्ति की ऊर्जा, भावनाओं या किसी संकेत को पढ़कर उत्तर देती है।
धर्म और ज्योतिष के बीच संबंध कई संस्कृतियों में स्वाभाविक रूप से दिखाई देता है। हिंदू धर्म में ग्रह, नक्षत्र, मुहूर्त, जन्मपत्री और दशा का उल्लेख हजारों वर्षों से मौजूद है। बौद्ध परंपरा में भी ग्रहों और शुभ-अशुभ समय का संदर्भ मिलता है। यहाँ तक कि प्राचीन ईसाई और इस्लामी विद्वानों ने भी कभी-कभी आकाशीय घटनाओं को ईश्वरीय संकेत माना। इससे स्पष्ट होता है कि धर्म और ज्योतिष कई समय तक एक-दूसरे के साथ जुड़े रहे। दोनों मनुष्य को भय, भ्रम और अनिश्चितता से राहत देने का साधन बनते रहे हैं। भविष्यवाणी भी कई प्राचीन संस्कृतियों में आध्यात्मिक साधना या रहस्यवाद का हिस्सा रही है।
लेकिन टकराव भी उतना ही वास्तविक है। कई धार्मिक परंपराएँ कहती हैं कि भविष्य को जानने की लालसा ईश्वर पर निर्भरता को कम कर देती है। धर्म चाहता है कि मनुष्य भरोसा ईश्वर और अपने कर्मों पर रखे, न कि ग्रहों या प्रतीकों पर। विज्ञान भी ज्योतिष और भविष्यवाणी को तथ्य आधारित नहीं मानता, जिससे इनके प्रति संदेह बढ़ जाता है। सबसे बड़ी समस्या तब होती है जब कुछ लोग इन विधियों का उपयोग अंधविश्वास फैलाने या दूसरों को डराने के लिए करते हैं। धर्म ऐसी प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखना चाहता है, इसलिए यह टकराव और अधिक स्पष्ट हो जाता है।
इसके बावजूद, यह कहना गलत होगा कि ये तीनों एक-दूसरे के विरोधी हैं। अगर इन्हें सत्य का अंतिम स्रोत न मानकर, केवल मार्गदर्शन के रूप में देखा जाए, तो ये मनुष्य को प्रेरणा, साहस और दिशा दे सकते हैं। धर्म मन को आध्यात्मिक शक्ति देता है, ज्योतिष समय के स्वभाव को समझने में मदद करता है और भविष्यवाणी व्यक्ति को अपनी अंतःप्रेरणा से जोड़ती है। तीनों को संतुलन के साथ, विवेक के साथ और बिना अंधविश्वास के अपनाया जाए तो ये जीवन को और अधिक जागरूक और शांतिपूर्ण बना सकते हैं। अंत में, मनुष्य का भविष्य उसके कर्मों, विचारों और निर्णयों से ही बनता है। धर्म कहता है कि कर्म को श्रेष्ठ बनाओ, ज्योतिष कहता है कि समय को पहचानो, और भविष्यवाणी कहती है कि भीतर की आवाज़ सुनो। जब ये तीनों एक सीमा और समझदारी के साथ साथ चलते हैं, तो न संबंध टूटता है, न कोई टकराव – केवल मनुष्य की समझ और अनुभव और व्यापक हो जाते हैं।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो








