इतिहास से भी पुराना धर्म – क्या है इसका रहस्य? Full Video
जब हम इतिहास की बात करते हैं, तो हमारे दिमाग़ में प्राचीन सभ्यताओं जैसे सिंधु घाटी, मिस्र, या मेसोपोटामिया का ज़िक्र आता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ धर्म ऐसे भी हैं, जिनका अस्तित्व इतिहास के लिखे जाने से भी पहले का है? ऐसे धर्म न तो किताबों में शुरू हुए थे, न ही किसी एक व्यक्ति द्वारा बनाए गए थे। वे प्रकृति से जुड़े, अनुभव से उपजे और आत्मा की गहराई से निकले थे।
भारत की धरती पर सनातन धर्म को अक्सर ऐसा ही एक धर्म माना जाता है — जो समय के परे है, जिसका कोई शुरूआती “founder” नहीं है, और जो आज भी जीवित है। ‘सनातन’ का अर्थ ही होता है — शाश्वत, जो कभी समाप्त न हो। यह धर्म वेदों से भी पहले की मौखिक परंपरा में अस्तित्व में था, जहाँ ऋषि-मुनि ध्यान और साधना के माध्यम से जीवन और ब्रह्मांड के रहस्यों को अनुभव करते थे। इन अनुभवों को ही बाद में वेदों, उपनिषदों और अन्य ग्रंथों में संग्रहीत किया गया।
इतिहासकारों के अनुसार, मानव सभ्यता ने लगभग 5,000 से 10,000 वर्ष पहले लेखन प्रणाली अपनाई, परंतु ऋषियों की वाणी और सनातन ज्ञान उससे भी पहले था। यह धर्म किसी प्रचार-प्रसार पर नहीं, बल्कि अनुभव, आत्मज्ञान और प्रकृति की पूजा पर आधारित था। इसमें ईश्वर को एक नाम या रूप में नहीं बाँधा गया, बल्कि उसे एक व्यापक चेतना के रूप में समझा गया।
इसी प्रकार, कुछ अन्य आदिवासी और प्रकृति-पूजक परंपराएँ भी इतिहास से पहले से अस्तित्व में थीं, जैसे कि अफ्रीका के कुछ जनजातीय धर्म, ऑस्ट्रेलिया के एबोरिजिनल्स की मान्यताएँ, और अमेरिका के नेटिव धर्म। ये सभी धर्म लिखित इतिहास से पहले के हैं और आज भी जीवित हैं – किसी रूप में, किसी स्वरूप में।
इसका अर्थ केवल प्राचीनता नहीं, बल्कि एक ऐसी परंपरा है जो मानव की सबसे पहली जिज्ञासा – “मैं कौन हूँ?” – का उत्तर खोजती आई है। ये धर्म हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा धर्म किताबों में नहीं, बल्कि अपने भीतर की यात्रा में छिपा है।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो