इस्लाम देश क्यों नहीं मानते नया साल ?
दुनिया के कई देशों में 1 जनवरी को नया साल बड़े उत्साह और जश्न के साथ मनाया जाता है। आतिशबाज़ी, पार्टियाँ, शुभकामनाएँ और नई शुरुआत के संकल्प—ये सब आधुनिक नववर्ष उत्सव का हिस्सा बन चुके हैं। लेकिन जब बात इस्लाम धर्म की आती है, तो अक्सर यह सवाल उठता है कि मुस्लिम समाज नए साल का जश्न क्यों नहीं मनाता? क्या यह सिर्फ परंपरा का मामला है या इसके पीछे कोई गहरी धार्मिक सोच भी है? आइए इस विषय को विस्तार से समझते हैं।
इस्लामी कैलेंडर की अवधारणा
इस्लाम में समय की गणना हिजरी कैलेंडर के अनुसार की जाती है, जिसकी शुरुआत पैगंबर हज़रत मुहम्मद ﷺ के मक्का से मदीना हिजरत (प्रवास) से मानी जाती है। यह कैलेंडर चंद्रमा पर आधारित है और इसके 12 महीने होते हैं। इस्लामी नया साल 1 मुहर्रम से शुरू होता है, न कि 1 जनवरी से।
हालाँकि, यह ध्यान देने वाली बात है कि इस्लाम में हिजरी नए साल को भी किसी उत्सव या जश्न के रूप में मनाने की परंपरा नहीं है।
क्या इस्लाम में नए साल का जश्न मनाना मना है?
इस्लाम में किसी भी चीज़ को “हराम” (निषिद्ध) या “हलाल” (अनुमत) ठहराने के लिए कुरआन और हदीस को आधार बनाया जाता है। 1 जनवरी को नए साल का जश्न मनाने को लेकर कुरआन या हदीस में कोई सीधा आदेश नहीं मिलता, लेकिन इस्लाम की शिक्षाएँ अनावश्यक दिखावे, फिजूलखर्ची और गैर-इस्लामी रीति-रिवाज़ों की नकल से बचने पर ज़ोर देती हैं।
नया साल मनाने की आधुनिक परंपरा पश्चिमी संस्कृति से जुड़ी मानी जाती है, जिसमें शराब, नाच-गाना और अति-उत्सव शामिल होते हैं। इस्लामी विद्वानों के अनुसार, ऐसे तत्व इस्लामिक मूल्यों के विपरीत हैं।
आत्ममंथन और जवाबदेही का विचार
इस्लाम में हर दिन को ईश्वर (अल्लाह) की दी हुई एक अमानत माना जाता है। मुसलमानों को सिखाया जाता है कि वे समय का उपयोग अच्छे कर्मों, इबादत और इंसानियत की सेवा में करें। इस्लाम में साल बदलने से ज़्यादा महत्वपूर्ण है अपने कर्मों का हिसाब और आत्म-सुधार।
इसीलिए मुसलमानों के लिए नया साल कोई उत्सव नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर हो सकता है—वह भी बिना किसी शोर-शराबे के।
मुहर्रम और इस्लामी नया साल
हिजरी कैलेंडर का पहला महीना मुहर्रम है, जो इस्लाम में पवित्र माना जाता है। यह महीना खास तौर पर संयम, इबादत और शोक से जुड़ा है, खासकर कर्बला की घटना के कारण। ऐसे पवित्र और गंभीर महीने में जश्न मनाना इस्लामी भावना के अनुरूप नहीं माना जाता।
क्या सभी मुसलमान नया साल बिल्कुल नहीं मनाते?
आज के आधुनिक समय में कुछ मुस्लिम समुदाय 1 जनवरी को एक सामान्य दिन की तरह देखते हैं—वे एक-दूसरे को शुभकामनाएँ दे सकते हैं, लेकिन इसे धार्मिक उत्सव नहीं मानते। कई मुसलमान इस दिन को नई योजनाएँ बनाने या सकारात्मक बदलाव का संकल्प लेने तक सीमित रखते हैं।
इस्लाम में नया साल न मनाने की वजह सिर्फ परंपरा नहीं है, बल्कि इसके पीछे धार्मिक सिद्धांत, सांस्कृतिक पहचान और आध्यात्मिक सोच जुड़ी हुई है। इस्लाम इंसान को दिखावे से दूर रहकर सादगी, आत्म-जवाबदेही और नैतिक जीवन जीने की शिक्षा देता है। यही कारण है कि मुसलमानों के लिए हर दिन नया है—अगर वह अल्लाह को याद करते हुए अच्छे कर्मों से भरा हो।
इस्लाम में नया साल मनाने की परंपरा नहीं है क्योंकि इस्लामी शिक्षाएँ दिखावे और गैर-इस्लामी रीति-रिवाज़ों से दूरी बनाए रखने पर ज़ोर देती हैं। मुसलमान हिजरी कैलेंडर का पालन करते हैं, जिसकी शुरुआत मुहर्रम से होती है।








