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आतंरिक ऊर्जा का निर्माण करता है ध्यान

आतंरिक ऊर्जा का निर्माण करता है ध्यान

लोग सदियों से ध्यान-अभ्यास को अपने जीवन में ढालते रहे हैं ( आतंरिक ऊर्जा  ). आज जबकि लोगों को इसके नये और विविध लाभ पता चलते जा रहे हैं, तो इसकी प्रसिद्धि में भी बढ़ोतरी हो रही है. यह तो सिद्ध हो ही चुका है कि ध्यान-अभ्यास हमारे शरीर और मन दोनों को लाभ पहुंचाता है. लेकिन वास्तव में ध्यान है क्या?

ध्यान का अर्थ
ध्यान का अर्थ किसी भी एक विषय को धारण करके उसमें मन को एकाग्र करना होता है. मानसिक शांति, एकाग्रता, दृढ़ मनोबल, ईश्वर का अनुसंधान, मन को निर्विचार करना, मन पर काबू पाना जैसे कई उद्दयेशों के साथ ध्यान किया जाता है.

ध्यान का उद्देश्य
हम कह सकते हैं कि ध्यान एक प्रकार की क्रिया है जिसमें इंसान अपने मन को चेतन की एक विशेष अवस्था में लाने की कोशिश करता है. मेडिटेशन का उद्देश्य लाभ प्राप्त करना भी हो सकता है या मेडिटेशन करना अपने आप में एक लक्ष्य हो सकता है. इसमें अपने मन को शान्ति देने से लेकर आन्तरिक ऊर्जा या जीवन-शक्ति का निर्माण करना हो सकता है जो हमारी ज़िंदगी मे सकरात्मकता और खुशहाली लाती है.

क्रिया नहीं है ध्यान
बहुत से लोग क्रियाओं को ध्यान समझने की भूल करते हैं- जैसे सुदर्शन क्रिया, भावातीत ध्यान क्रिया और सहज योग ध्यान. दूसरी ओर विधि को भी ध्यान समझने की भूल की जा रही है. बहुत से संत, गुरु या महात्मा ध्यान की तरह-तरह की क्रांतिकारी विधियां बताते हैं, लेकिन वे यह नहीं बताते हैं कि विधि और ध्यान में फर्क है. क्रिया और ध्यान में फर्क है. क्रिया तो साधन है साध्य नहीं.

ध्यान के प्रकार
सामान्यतौर पर ध्यान को चार भागों में बांटा जा सकता है- पहला देखना या साक्षी ध्यान , दूसरा सुनना या श्रवण ध्यान, तीसरा श्वास लेना यानि प्राणायाम और चौथा आंखें बंदकर मौन होकर सोच को भ्रकुटी ध्यान कहते हैं.
अब हम ध्यान के पारंपरिक प्रकार की बात करते हैं. यह ध्यान तीन प्रकार का होता है-

स्थूल ध्यान- स्थूल चीजों के ध्यान को स्थूल ध्यान कहते हैं- जैसे सिद्धासन में बैठकर आंख बंदकर किसी देवता, मूर्ति, प्रकृति या शरीर के भीतर स्थित हृदय चक्र पर ध्यान देना ही स्थूल ध्यान है. इस ध्यान में कल्पना का महत्व है.

ज्योतिर्ध्यान- मूलाधार और लिंगमूल के मध्य स्थान में कुंडलिनी सर्पाकार में स्थित है. इस स्थान पर ज्योतिरूप ब्रह्म का ध्यान करना ही ज्योतिर्ध्यान है.

सूक्ष्म ध्यान- साधक सांभवी मुद्रा का अनुष्ठान करते हुए कुंडलिनी का ध्यान करे, इस प्रकार के ध्यान को सूक्ष्म ध्यान कहते हैं.
ध्यान में साधक अपने शरीर, वातावरण को भी भूल जाता है और समय का भान भी नहीं रहता.उसके बाद समाधिदशा की प्राप्ति होती है.योगग्रंथो के अनुसार ध्यान से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है और साधक को कई प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त होती है।

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Post By Religion World