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ऐसे करें नरसिंह जयन्ती 2020 पर पूजन

ऐसे करें नरसिंह जयन्ती 2020 पर पूजन

भगवान नरसिंह की पूजा शाम के समय की जाती है। इस दिन भगवान नरसिंह की जल, प्रसाद, फल और पुष्प अर्पित करें। भगवान विष्णु पीतांबर प्रिय है इस दिन इसका अर्पण करना चाहिए। पूजा समापन के बाद जरुरमंदों को दान करें।

ऐसे करें पूजा 

ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं क‍ि नृसिंह जयंती के द‍िन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी न‍ित्‍य कर्मों से निवृत्‍त हो जाएं। इसके बाद पूजा घर में भगवान नृसिंह और लक्ष्‍मीजी की प्रतिमा या फोटो स्‍थापित करें। इसके बाद वैद‍िक मंत्रों से पूजा करें। पूजा में फल, फूल, पंचमेवा, केसर, रोली, नार‍ियल, अक्षत, पीतांबर गंगाजल, काला तिल, पंच गव्‍य और हवन सामग्री का प्रयोग करें। भगवान नृसिंह की पूजा क‍िसी योग्‍य सद्गुरु के सान‍िध्‍य में सुपात्र व्‍यक्ति को ही करनी चाहिए। साथ ही यह व्रत करने के दौरान मन में किसी के भी प्रति ईर्ष्‍या-द्वेष की भावना नहीं आनी चाहिए। अन्‍यथा भगवान नृसिंह रुष्‍ट हो जाते हैं और पूजा का फल भी नहीं मिलता।



नृसिंह भगवान को पुष्‍प, गंध और फल चढ़ाने के बाद एकांत में कुश का आसन लगाएं। उसपर बैठकर रुद्राक्ष की माला से श्रद्धानुसार 1, 5 या 7 बार गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए। इसके बाद व्रती को अपनी श्रद्धानुसार जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को दान करना चाहिए। इसके अलावा एक और बात का ध्‍यान रखना चाहिए कि कभी भी व्रत के दौरान मन में किसी के भी प्रति ईर्ष्‍या-द्वेष की भावना नहीं आनी चाहिए।


ऐसे करें नरसिंह जयन्ती 2020 पर पूजन

कथा मिलती है कि प्राचीन काल में कश्‍यप नामक एक ऋषि थे। उनकी पत्‍नी थी द्विती। उनके दो पुत्र हिरण्‍याक्ष और हिरण्यकश्यपु हुए। हिरण्‍याक्ष के आतंक से सभी को मुक्‍त कराने के लिए भगवान व‍िष्‍णु ने वराह रूप धारण करके उसका वध कर द‍िया था। इसी बात का प्रतिशोध लेने के लिए हिरण्यकश्यपु ने कठोर तप किया। उसने ब्रह्माजी को प्रसन्‍न करके उनसे अमरता का आशीर्वाद मांगा। लेकिन ब्रह्माजी ने जब यह वरदान देने से मना कर द‍िया तो उसने उसकी मृत्‍यु न घर में, न बाहर, न अस्‍त्र से और न शस्‍त्र से, न द‍िन में, न रात में, न मनुष्‍य से न पशु से और न आकाश में न पृथ्‍वी में हो, यह वरदान मांगा। इसपर ब्रह्माजी तथास्‍तु कहकर अंतर्धान हो गए।

तब लिया था भगवान श्रीहर‍ि ने नृसिंह अवतार

ब्रह्माजी से वरदान प्राप्‍त करने के बाद हिरण्यकश्यपु ने खुद को भगवान मान लिया। उसने अपनी प्रजा को भी यह आदेश द‍िया कि सब उसको ही भगवान मानेंगे और उसकी ही पूजा करेंगे। उसने यह भी घोषणा करवाई कि जो भी उसकी बात नहीं मानेगा उसे मृत्‍युदंड द‍िया जाएगा।



हिरण्यकश्यपु की बात सबने तो मान ली लेकिन उसके पुत्र प्रहृलादजी ने नहीं मानी। वह श्रीहर‍ि के अनन्‍य भक्‍त थे। द‍िन-रात उन्‍हीं की भक्ति में लीन रहते थे। हिरण्यकश्यपु ने कई बार उसे समझाने का प्रयास किया। लेकिन जब वह नहीं माने तो उन्‍हें मारने का प्रयास किया।

खंभे को चीरकर जब प्रकट हुए श्रीहर‍ि

कथा मिलती है कि हिरण्यकश्यपु के लाख समझाने और प्रयासों के बाद भी जब प्रह्लाद जी नहीं मानें। तो एक द‍िन उसने प्रह्लाद से पूछा क‍ि कहां रहता है तुम्‍हारा भगवान? उन्‍होंने कहा क‍ि वह तो सर्वत्र व्‍याप्‍त हैं। तब हिरण्यकश्यपु ने सामने खड़े खंभे को देखकर पूछा कि क्‍या इसमें हैं तुम्‍हारे भगवान? प्रह्लाद जी ने कहा कि हां, वह तो हर जगह हैं और इसमें भी हैं। यह सुनकर हिरण्‍यकश्‍यपु को गुस्‍सा आ गया और उसने क्रोध में आकर उसपर प्रहार कर द‍िया। तभी खंभे को चीरकर भगवान व‍िष्‍णु प्रकट हुए। जो कि न पशु थे न मनुष्‍य। उन्‍होंने हिरण्‍यकश्‍यपु के ब्रह्माजी से मांगे गए वरदान के अनुसार नृसिंह का रूप धारण किया था। इसके बाद हिरण्‍यकश्‍यपु को उन्‍होंने न द‍िन न रात यानी क‍ि गोधूलि बेला, न अस्‍त्र न शस्त्र यानी कि नाखून से, घर के अंदर न बाहर यानी कि घर की चौखट पर, न जमीन न आसमान तो अपनी गोद में बिठाया और अपने नाखूनों से उसका वध कर द‍िया।

श‍िवजी ने शांत क‍िया भगवान नृसिंह का क्रोध

हिरण्यकश्यपु के वध के बाद भी भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ। उनके इस व‍िकराल रूप से तीनों लोक कांपने लगे। तब सभी देवता श‍िवजी की शरण में पहुंचे और उनसे श्रीहर‍ि का क्रोध शांत करने की प्रार्थना की। इसके बाद भोलेनाथ ने शलभ अवतार लिया और नृसिंह को अपनी पूंछ से खींचकर पाताल लोक लेकर गए। वहां काफी देर तक उसे वैसे ही अपनी पूंछ में जकड़कर रखा। भगवान नृसिंह ने काफी प्रयास क‍िए लेकिन खुद को छुड़ा नहीं पाए। थोड़ी ही देर में नृसिंह भगवान ने भोलेनाथ को पहचान लिया और तब जाकर उनका क्रोध शांत हुआ। कहते हैं कि नृसिंह जयंती के दिन जो भी व्रत करके इस कथा को पढ़ता या सुनता है तो उसके सभी पापों का अंत हो जाता है। सारे दु:ख दूर हो जाते हैं और मनमांगी सारी मुरादें पूरी हो जाती हैं।

लेखक – ज्योतिर्विंद पं. दयानंद शास्त्री, उज्जैन

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Post By Religion World