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अयोध्या राम मंदिर के मामले में कितने हैं पक्षकार 

राममंदिर के मामले में कितने हैं पक्षकार 

अयोध्या के राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद धार्मिक स्थल के मालिकाना हक का विवाद पिछले करीब डेढ़ साल से सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर है, मगर हाईकोर्ट से पुराने रिकार्ड न पहुँच पाने के कारण अभी सुनवाई शुरू नही हो पायी है. दिसम्बर में इस मामले पर सुनवाई होनी है. यहाँ आज हम आपको बताएँगे कि अयोध्या राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद मम्मले के पक्षकार कौन हैं.

अयोध्या मामले में पक्षकार

अयोध्या मामले में तीन पक्षकर है-

पहले- मस्जिद के अंदर विराजमान भगवान राम, जिनके पैरोकार विश्व हिंदू परिषद के नेता हैं.

दूसरा हिस्सेदार है सनातन हिंदुओं की संस्था निर्मोही अखाड़ा जो लगभग सवा सौ साल से इस स्थान पर मंदिर बनाने की कानूनी लड़ाई लड़ रहा है.

तीसरा पक्ष है सुन्नी वक्फ बोर्ड और कुछ स्थानीय मुसलमान. सुन्नी वक्फ बोर्ड एवं स्थानीय

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मुसलमान 22-23 दिसंबर 1949 को बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां रखने के बाद मस्जिद की बहाली के लिए अदालत में लड़ रहे हैं.

सितम्बर 2010 में विवादित स्थल के तीन हिस्सों में बंटवारे के हाईकोर्ट के आदेश का आम तौर पर देश भर में स्वागत हुआ था. लोगों ने इसे एक तरह से पंचायती फैसला माना. मगर मुकदमा लड़ने वाले सभी पक्षकार उससे असंतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं.

इस विवाद में कुल चार दीवानी मामले हैं. पहला गोपाल सिंह विशारद का जिनकी मृत्यु हो चुकी है. अब उनके बेटे राजेन्द्र सिंह वादी हैं. दूसरा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड का, तीसरा निर्मोही अखाड़े का और चौथा राम लला विराजमान का.

जस्टिस देवकी नंदन अग्रवाल की मृत्यु के बाद विश्व हिंदू परिषद के त्रिलोकी नाथ पाण्डेय राम लला के मित्र के तौर पर पैरोकार हैं.

इन मुकदमों में वादी-प्रतिवादी मिलाकर अनेक पक्षकार हैं. इनमें हिंदुओं की ओर से जिन अन्य लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है, उनमें हिंदू महासभा, श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और रामजन्म भूमि सेवा समिति प्रमुख हैं.

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मुसलमानों की ओर से पक्षकार

मुसलमानों की ओर से सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के अलावा जमीयते उलेमा ए हिंद, हाशिम अंसारी, मोहम्मद फारुख़, मोहम्मद महफ़ूज़ुर रहमान और मिस्बाउद्दीन प्रमुख हैं.

हाईकोर्ट के तीनों जजों का फ़ैसला लगभग दस हज़ार पेज का था. वादियों को प्रमाणित प्रतिलिपि मिलने में ही कई महीने लग गए, इसलिए पिछले साल जुलाई तक अपीलें दाख़िल हुईं.

एडवोकेट जफरयाब जिलानी के अनुसार मुस्लिम समुदाय की अपीलों में मुख्य रूप से यह आपत्ति कि गयी है कि हाईकोर्ट का फैसला कानूनी सबूतों के बजाय आस्था की बुनियाद पर है.

मुस्लिम पक्षकारों के कहना है कि विवादित स्थान पर बाबर द्वारा बाबरी मस्जिद के निर्माण के दस्तावेजी सबूत मौजूद हैं, जिसे न मानकर हाईकोर्ट ने आस्था की बुनियाद पर उसे राम जन्म भूमि करार दिया है.

आपसी सहमति से सुलझाने के कई प्रयास

मुस्लिम समुदाय ने अपील में यह मुद्दा भी उठाया है कि पुरातत्त्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष नहीं निकाला गया था कि वहाँ पहले कोई मंदिर था जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस रिपोर्ट को भी आधार बनाया है.

दूसरी तरफ निर्मोही अखाड़े ने सुन्नी वक्फ बोर्ड और विश्व हिंदू परिषद के दावे को नकारते हुए सम्पूर्ण विवादित स्थान पर अपना अधिकार माँगा है.

अखाड़े के पैरोकार स्वामी राम दास कहते हैं, ”जिस जगह पर स्वयं भगवान प्रगट हुए हैं और हाईकोर्ट ने भी मान लिया है कि राम की जन्मभूमि वही है, इसलिए जहाँ राम की जन्म भूमि है, राम लला विराजमान रहेंगे. ऐसी स्थिति में निर्मोही अखाड़े ने कहा कि सम्पूर्ण भाग निर्मोही अखाड़े को चाहिए.”

निर्मोही अखाड़े का कहना है कि विवादित मस्जिद के तीनों तरफ पहले से उसका कब्जा है और दिसंबर 1949 में जो मूर्ति मस्जिद के बीच वाले गुम्बद के अंदर प्रकट हुई, वह भी उनके अधीन राम चबूतरे से उठकर वहाँ गयी थी.

मस्जिद के लिए दूसरी जगह की पेशकश

निर्मोही अखाड़े के स्वामी राम दास का कहना है कि अगर मुस्लिम समुदाय चाहे तो वह उन्हें बदले में मस्जिद बनाने के लिए अयोध्या में दूसरी भूमि उपलब्ध करा सकता है.

कानून में भगवान की प्रतिमा स्वयं में एक व्यक्ति की तरह संपत्ति की मालिक होती है. इस नाते भगवान राम विराजमान की ओर से विश्व हिंदू परिषद इस स्थान पर स्वामित्व का दावा कर रही है. विश्व हिंदू परिषद ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील में विवादित स्थल के तीन हिस्सों में बंटवारे का विरोध किया है.

विश्व हिंदू परिषद की ओर से भगवान राम विराजमान के पैरोकार त्रिलोकी नाथ पांडेय का कहना है, ”हाईकोर्ट ने विवादित स्थान को राम जन्म भूमि मान लिया है. जन्म भूमि स्थान को अपने आप में देवत्व का दर्जा प्राप्त है. ऐसी स्थिति में देवत्व प्राप्त पवित्र स्थान का बंटवारा कैसे हो सकता है. बंटवारा संपत्ति का तो हो सकता है, भगवान का नही.”

वे कहते हैं, ”न्यायपालिका में सुनवाई में जो देर हो रही है, उससे तो अदालत पर लोगों का भरोसा ही उठ जाएगा. सवा दो साल में भी हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट रिकार्ड न पहुंचना शर्मनाक है.”

कह सकते हैं कि निर्मोही अखाड़ा और विश्व हिंदू परिषद, सुन्नी वक्फ बोर्ड के साथ- साथ एक-दूसरे के अधिकार को भी चुनौती दे रहे हैं.

फिलहाल कोई भी पक्ष विवादित स्थान पर छह दिसंबर की तरह जबरन कब्जे का अभियान नही चला रहा है. देश में लगभग आम सहमति है कि अदालत ही इसके स्वामित्व का फैसला करे.

इस बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पलोक बसु पिछले दो सालों से अयोध्या-फैजाबाद के हिंदू और मुसलमानों से बातचीत करके मामले को स्थानीय स्तर पर आपसी सहमति से सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं. लेकिन इस प्रयास में कोई खास सफलता मिलती दिखाई नही दे रही है.

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Post By Shweta