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क्यों बनारस में बने ग्यासर वस्त्र पहनते हैं हिमालय के बौद्ध

क्यों बनारस में बने ग्यासर वस्त्र पहनते हैं हिमालय के बौद्ध

बनारस, 15 नवम्बर; बनारस की खास परंपराओं में ग्यासर वस्त्र कला को विशिष्ट स्थान प्राप्त है. इस विशेष प्रकार के वस्त्रों का निर्माण सुदूर हिमालय की वादियों में बसे बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए किया जाता है.

पूर्व में स्थित भूटान से लेकर तिब्बत, सिक्किम तथा पश्चिम में लद्दाख तथा हिमालय में बसे बौद्ध मतावलंबी इस वस्त्र को खूब पसंद करते हैं. यह विचार मुंबई से आई भारतीय वस्त्रों की विशेषज्ञ डॉ. मोनिशा अहमद ने संस्कृत अध्ययन एवं शोध केंद्र ज्ञान-प्रवाह में कहीं. मौका था तृतीय सुरेश नेवटिया स्मृति के अंतर्गत आयोजित ‘ईश्वर के लिए रेशम-बनारस की ग्यासर बुनाई’ विषय पर व्याख्यान का. इस दौरान डॉ. मोनिशा ने स्पष्ट किया कि ग्यासर एक तिब्बती शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘एक सौ स्वर्णिम धागे’.

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इसका तात्पर्य रेशम के कपड़े पर स्वर्ण तथा रजत धागों से बुनी हुई सुंदर तथा घनी आकृतियों से है. यह आकृतियां मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के ग्रंथों में वर्णित तथा पूजा पद्धति में प्रयोग किए जाने वाले रूपांकन और प्रतीकों से संबद्ध होती हैं.

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Post By Shweta