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दीपावली: दुखी जीवन में खुशियों का प्रकाश

दीपावली: दुखी जीवन में खुशियों का प्रकाश

प्रत्येक माह में दो पक्ष, दक्षिण के अनुसार शुक्ल-कृष्ण एवं उत्तर के अनुसार कृष्ण-शुक्ल होते हैं। शुक्ल पक्ष पूर्णमासी, जिसमें चन्द्र पूर्ण उदय रहता है और अमावस्या, जिसमें चन्द्र छिपा रहता है।

प्रत्येक इंसान के जीवन में इसी प्रकार के दो पहलू होते हैं। पूर्णमासी अर्थात् प्रकाश, जो कि जीवन के सुख और अमावस्या अर्थात् अंधकार, जो कि जीवन के दुःख को दर्शाता है। दीपावली का त्यौहार भी अमावस्या में मनाया जाता है। भाव? अमावस्या में अंधकार रहता है और उसमें दीपकों को प्रज्ज्वलित करना प्रकाश फैलाना अर्थात् किसी दु:खी जीवन में ख़ुशियों का प्रकाश करना, यह दीपावली का एक संदेश हैं।

अच्छा, एक बात और कि प्रकाश तो लाइटों या बिजली से भी हो सकता हैं, परन्तु; दीपक का अपना विशेष महत्व हैं। इसलिए इसका नाम दीपावाली हैं। दीप की अवली यानी दीपकों की कड़ियाँ। दीपक में तीन चीज़ें लगती हैं – दीपक, घी और बाती, जो कि शास्त्रों के वेदत्रय सिद्धान्त का दर्शन कराती हैं।

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दीपक (मिट्टी का सकोरा), जिसको बहुत परिश्रम करके कुम्हार लोग बनाते हैं- यह कर्म का प्रतिनिधित्व करता है।

घी अर्थात् विशुद्ध ज्ञान। जैसे दूध में ही घी होता है, पर बिना मन्थन प्राप्त नहीं हो सकता। उसी तरह वेदशास्त्रों के भीतर छिपा हुआ विशुद्ध ज्ञान, जो गुरु-कृपा से प्राप्त होता है, वही घी है।

बाती, रुई से बनी कोमल बाती ही भगवान् की भक्ति है। तो ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनो का संयोग ही जीवन में वास्तविक प्रकाश लेकर आता है।

अच्छा, दीपावली पर केवल एक दीपक नहीं होता, अनेक होते हैं, जो एक दूसरे के निकट रखे जाते हैं, तभी तो दीपकों की अवली अर्थात् कड़ियाँ बनती हैं। अभिप्राय यह है कि एक दीपक जब प्रकाश फैलाता है, तो स्वयं के नीचे अंधकार रहता है। लेकिन उसके पास यदि एक अन्य दीपक भी प्रज्ज्वलित हो जाये तो परस्पर एक दूसरे के नीचे के अंधकार को दूर करने के साथ-२ सारे संसार को प्रकाशित करने की सामर्थ्य भी रखते हैं। उसी प्रकार यदि वास्तविकता में सभी लोग एक साथ मिल जायें, तो एक दूसरे के दु:खों को दूर करने के साथ ही संसार में खुशहाली भी फैलाएंगे। दु:खी जीवन में ख़ुशहाली का लाना ही दीपावली पर्व का मुख्य संदेश है।⁠⁠⁠⁠

वैदिक-पथिक भागवतकिंकर अनुराग कृष्ण शास्त्री “श्रीकन्हैयाजी”

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