Post Image

चातुर्मास में साधु-संत यात्रा क्यों रोक देते हैं? 

चातुर्मास में साधु-संत यात्रा क्यों रोक देते हैं?

चातुर्मास — यह शब्द सुनते ही मन में एक पवित्र ठहराव, तप और आत्मचिंतन की छवि बनती है। यह वह विशेष अवधि है जब साधु-संत, जो वर्ष भर धर्म प्रचार और ज्ञान यात्रा में लगे रहते हैं, अचानक रुक जाते हैं। वे चार महीनों तक एक ही स्थान पर टिक जाते हैं।
परंतु प्रश्न यह है — आख़िर क्यों?
क्या इसका कारण केवल ऋतु परिवर्तन है या इसमें कोई गहरी आध्यात्मिक दृष्टि छिपी है?

चातुर्मास क्या है?

चातुर्मास का अर्थ होता है “चार महीने”। यह काल हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) तक चलता है।
इस अवधि को भगवान विष्णु की योगनिद्रा का समय भी कहा जाता है। जब स्वयं भगवान विश्राम में हों, तब साधु-संत भी बाहरी यात्राओं से विराम लेकर अंतर्मुखी साधना में लीन हो जाते हैं।

ऋतु का प्रभाव: प्रकृति के साथ सामंजस्य

इन चार महीनों में वर्षा ऋतु का प्रकोप होता है। धरती पर हरियाली लौटती है, छोटे-छोटे जीव-जंतु सक्रिय हो जाते हैं।
साधु-संतों का यात्रा रोकना दरअसल उनकी करुणा और अहिंसा की भावना का प्रतीक होता है।
जब वे एक स्थान पर रुकते हैं, तो अनजाने में होने वाली जीवहत्या से बचा जा सकता है — जैसे कीचड़ में छिपे कीट-पतंगे या नन्हें जीव। यह पर्यावरण संरक्षण का एक मौन संदेश भी है।

तपस्वियों का आत्मचिंतन

चातुर्मास केवल बाहरी ठहराव नहीं है, यह भीतर की यात्रा है।
साधु-संत इन दिनों में अपने ध्यान, जप, स्वाध्याय और मौन तपस्या के माध्यम से आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं।
यह काल जीवन की गति से एक विराम लेकर ‘स्व’ से साक्षात्कार का समय होता है।

शास्त्रों में क्या कहा गया है?

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, चातुर्मास में:

  • गृहस्थ को संयम और नियम से जीवन जीने की सलाह दी गई है।

  • साधु-संत को एक स्थान पर टिककर साधना और प्रवचन करने का निर्देश है।

यह केवल एक नियम नहीं, बल्कि जीवन में संतुलन और स्थिरता लाने का अवसर है।

समाज में संतों की उपस्थिति का प्रभाव

जब साधु-संत किसी गांव या नगर में चार महीने ठहरते हैं, तो वह स्थान एक धार्मिक केंद्र बन जाता है।
कथा, कीर्तन, प्रवचन, भजन और सत्संग — इन चार महीनों में समाज को धर्म, सेवा और भक्ति की शिक्षा मिलती है।
यह आध्यात्मिक जागृति का काल बन जाता है।

चातुर्मास: संयम, साधना और सेवा का संकल्प

यह काल न केवल साधु-संतों के लिए, बल्कि हर व्यक्ति के लिए आत्मनिरीक्षण और चरित्र निर्माण का समय है।
इन चार महीनों में यदि कोई संकल्प लिया जाए — जैसे क्रोध पर नियंत्रण, मांस-मदिरा से परहेज, झूठ से दूरी या सेवा का भाव — तो यह जीवन में स्थायी परिवर्तन ला सकता ह

साधु-संतों का चातुर्मास में यात्रा रोकना केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह जीवन को धीमा कर आत्मा की गति को बढ़ाने का प्रयास है।
यह हमें सिखाता है कि कभी-कभी ठहर जाना ही सबसे बड़ी गति होती है।
जब संत रुकते हैं, तो केवल शरीर नहीं — समय भी जैसे रुक जाता है, और आत्मा के स्तर पर एक नई यात्रा शुरू होती है।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

Post By Religion World