Post Image

ब्रज की होली : कान्हा की नगरी में बिखरे होली के रंग

ब्रज की होली : कान्हा की नगरी में बिखरे होली के रंग

सारे वातावरण में अबीर, गुलाल और टेशू के फूलों से बने रंगों की बिखरी हुयी सुगंध, गलियों में राधे राधे की गूंज करती हुईं टोलियां, टेशू के फूलों से बने रंगों की बौछार हो!!! ऐसा वातावरण होली को हुडदंगी नहीं भक्तमय बना देता है. होली का पर्व आते ही ब्रज की होली याद आने लगती है. यदि आप इस वर्ष ब्रज की होली का आनंद लेना चाहते हैं तो चलिए हम आपको बता देते हैं इस साल होली का पर्व  ब्रज में कब और कहाँ मनाया जाएगा.

बरसाना और नंदगाँव में लठमार होली:- 

15th मार्च (बरसाना) और 16 मार्च (नन्दगाँव)2019 

बरसाने की लठमार होली की शुरुआत शुक्ल पक्ष की नवमी को होती है. 2019 में 15 मार्च को लठमार होली से एक हफ्ते चलने वाले होली के सप्ताह की शुरुआत हो चुकी है . नंदगांव (कृष्ण के गांव) के लड़के बरसाने जाते हैं और गोपियां उनके पीछे लठ लेकर भागती हैं और उन्हें प्रेमपूर्वक मारती हैं.वहीं पुरुष स्त्रियों के इस लठ के वार से बचने का प्रयास करते हैं।

यह परंपरा तब से है जब श्री कृष्ण होली के समय बरसाने आए थे. तब कृष्ण राधा और उनकी सहेलियों के साथ हंसी -ठिठोली करने लगे. उसके बाद श्री  राधा अपनी सखियों के साथ लाठी लेकर कृष्ण के पीछे दोड़ने लगीं. बस तब से बरसाने में लठमार होली शुरू हो गई. अगर आपको लठमार होली देखने जाना है तो 15th मार्च को बरसाना और 16 मार्च को नंदगांव जा सकते हैं। दो शहर हैं जो इस त्योहार को उत्साह के साथ मनाते हैं और ये हैं बरसाना और नंदगाँव।

फूलों वाली होली, वृंदावन:-

17th मार्च 2019 वृंदावन 

फागुन की एकादशी को वृंदावन में फूलों की होली मनाई जाती है. बांके बिहारी मंदिर में फूलों की ये होली सिर्फ 15-20 मिनट तक चलती है. शाम 4 बजे की इस होली के लिए समय का पाबंद होना बहुत जरूरी है. इस होली में बांके बिहारी मंदिर के कपाट खुलते ही पुजारी भक्तों पर फूलों की वर्षा करते हैं. 2019 में ये होली 17 मार्च यानी रविवार को होगी.

विधवा महिलाओं की होली, वृंदावन:-

18th मार्च 2019 वृंदावन

वृन्दावन में देश के कई कोनों से आई विधवाएं रहती हैं. परिवार के लोग इन्हें यहां छोड़ देते हैं. रूढ़िवादी सोच में इन विधवाओं की होली से हर तरह का रंग खत्म कर दिया जाता है. कुछ ही साल पहले वृंदावन में विधवाओं की होली का चलन पागल बाबा के मंदिर से शुरू हुआ. अमूमन ये होली फूलों की होली के अगले दिन अलग-अलग मंदिरों में खेली जाती है. जीवन के रंगों से दूर इन विधवाओं को होली खेलते देखना बहुत सुंदर होता है. इसीलिए 2013 में शुरू हुआ ये पर्व  वृंदावन की होली के सबसे लोकप्रिय कार्यक्रमों में से एक हो गया है. 2019 की विधवाओं की होली राधा-गोपीनाथ(Gopinath Temple) मंदिर में 18th मार्च को खेली जाएगी. इसका आयोजन सुलभ एनजीओ करता है.

यह भी पढ़ें – होली 2019 : रंगों का त्योहार

छड़ीमार होली, गोकुल

18th मार्च 2019 

छड़ीमार होली, जिसमें हुलियारियों ने छड़ियां बरसाईं तो बाल कृष्ण के स्वरूपों ने अपने डंडे से उनका बचाव करते हैं. इस होली के बारे में कहा जाता है कि बाल गोपाल ने बगीचे में बैठकर भक्तों के साथ होली खेली थी. वही परंपरा आज तक चलती आ रही है.

बांके बिहारी मंदिर में रंगों की होली:- 

20th मार्च 2019 बांके बिहारी मंदिर वृंदावन

बांके बिहारी मंदिर होली उत्सव का केंद्र है–  यहां का कार्यक्रम मुख्य होली त्योहार से ठीक एक दिन पहले होता है. मंदिर आने वाले सभी भक्तो के लिए अपने दरवाजे खोल देता है और भक्त स्वयं भगवान के साथ होली खेलने आता है. पुजारी रंग और पवित्र जल फेंकते हैं और भीड़ एक साथ इकठा हो जाती है. बांके बिहारी मंदिर में होली का भव्य आयोजन होता है जिसे देखने पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं. मंदिर के दरवाजे सुबह 9 बजे खुलते हैं और दोपहर 1.30 बजे तक बंद हो जाते हैं.

यह भी पढ़ें – कौन थी होलिका, क्यों होता है होलिका दहन

मथुरा में होली का जुलूस:-

20th मार्च 2019 

दोपहर 2 बजे के करीब, मथुरा से बाहर निकलकर लोग  रंगीन होली के जुलूस में भाग लेते हैं. जुलूस विश्राम घाट पर शुरू होता है और होली गेट से थोड़ा आगे निकल जाता है. यह दो स्थलों को जोड़ने वाली गली में आप इसका आनंद उठा सकते है. लगभग दस वाहन फूलों से सजाए जाते है , और कुछ बच्चे  राधा-कृष्ण के रूप में तैयार  होकर इसमें भाग लेते है. दोपहर 3 बजे वहां जाने पर आप भी इसका हिस्सा बन सकते है ये अच्छा समय है. हर कोई हर किसी के साथ होली खेलता है.

होलिका दहन, फालैन का पंडा

20th मार्च 2019 

होलिका दहन यानी बुराई को खत्म करने का प्रतीकात्मक त्योहार. होली में जितना महत्व रंगों का है उतना ही होलिका दहन का भी. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, हिरण्यकश्यप नाम अपने पुत्र प्रहलाद पर अत्यधिक क्रोधित था. इसकी वजह प्रहलाद का विष्णु भक्त होना था. क्रोधित हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठर को कहा क्योंकि उसे अग्नि के प्रभाव से मुक्त होने का वरदान मिला था. लेकिन विष्णु भक्त प्रहलाद पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और होलिका खुद ही जल गई. मथुरा और ब्रजभूमि में होलिका दहन ज्यादा उत्साह के साथ मनाया जाता है.

द्वारिकाधीश होली, चतुर्वेदी समाज का डोला

21st मार्च 2019 

तमाम जश्नों के बाद आ जाता है रंगों की होली का दिन. पूरे ब्रज के लोग होली खेलने के लिए इकठ्ठे हो जाते हैं. लाल, हरा, नीला, गुलाबी, बैंगनी हर तरह के रंग हवा में घुल जाते हैं और प्यार, आनंद, भाईचारा हर तरफ उमड़ पड़ता है. गलियों और सड़कों पर होली के गाने बजते रहते हैं. होली मनाने के लिए बृज से बेहतर दुनिया में कोई और जगह नहीं हो सकती है.

दाऊजी का हुरंगा, जाव का हुरंगा, नंदगाँव का हुरंगा

22nd मार्च 2019

दाऊ जी के मंदिर में होली के अगले दिन मनाया जाने वाला ये त्योहार 500 साल पुराना है. इस मंदिर के सेवादार परिवार की महिलाएं पुरुषों के कपड़े फाड़कर उनसे उन्हें पीटती हैं. इस परिवार में अब 300 से ज्यादा लोग हैं. ऐसे में ये त्योहार देखने वाला होता है. इस साल ये त्योहार 22 मार्च को 12.30 से 4 बजे तक मनाया जाएगा. दाऊ जी का मंदिर मथुरा से 30 किलोमीटर दूर है. इसके साथ ही इस त्योहार में बेहद भीड़ होती है. इसलिए सुबह जल्दी पहुंचना जरूरी होता है.

मुखराई का चरकुला नृत्य

22nd मार्च 2019

राधारानी के ननिहाल मुखराई की नृत्य कला चरकुला ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धूम मचायी है. पूर्व में होली या उसके दूसरे दिन रात्रि के समय गांवों में स्त्री या पुरुष स्त्री वेश धारण कर सिर पर मिट्टी के सात घड़े तथा उसके ऊपर जलता हुआ दीपक रखकर अनवरत रूप से चरकुला नृत्य करता था. गांव के सभी पुरुष नगाड़ों, ढप, ढोल, वादन के साथ रसिया गायन करते थे. यह परम्परा आज भी चली आ रही है. आप मुखराई जाकर इसका लुत्फ़ उठा सकते हैं.

बठैन का हुरंगा,गिडोह का हुरंगा

23rd  मार्च 2019

बलदेव और जाव-बठैन के अलावा ब्रज के अनेक गांवों में हुरंगे की समृद्ध परंपरा चली आ रही है. इनका स्वरूप एक जैसा है. हुरंगे के रूप में यहां ब्रजबाम और गोप ग्वालों के बीच मुकाबला होता है. ब्रजांगनाएं हुरियारों पर लाठी चलाती हैं जिसे वे डंडों पर रोकते हैं. इसी बीच एक आदमी झंडी लेकर भागता है, जो भी उसे छीन लेता है, वो जीत जाता है और हुरंगा खत्म हो जाता है।

गांवों में हुरंगे की परिपाटी कितनी पुरानी है, ये कोई नहीं बता पाता. पूछने पर यही कहते हैं कि दादा-परदादा के जमाने से चला आ रहा है. अधिकांश स्थानों पर ये हुरंगे दूज को ही होते हैं. समय के साथ इन हुरंगों में बहुत कुछ बदला है।

इतनी मस्ती, शोर-शराबे और धूमधाम के साथ ब्रज की होली मनाई जाती है। तो इंतज़ार क्या कर रहे हैं. आप भी आइये और शामिल हो जाइये इस होली के मनोहारी  हुडदंग में।

वृंदावन-मथुरा में संतों की होली…

Post By Religion World