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अहोई अष्टमी : जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, व्रत कथा और आरती

अहोई अष्टमी : जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि, व्रत कथा और आरती

अहोई अष्टमी का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन किया जाता है। अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी उम्र और उनके जीवन में समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत को नि: संतान स्त्रियां भी संतान सुख के लिए करती हैं,

अहोई अष्टमी 2019 तिथि

अहोई अष्टमी का व्रत 2019 में 21 अक्टूबर 2019 को रखा जाएगा।

अहोई अष्टमी 2019 शुभ मुहूर्त

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनट से 7 बजकर 2 मिनट तक (21 अक्टूबर 2019)

तारों की साँझ का समय शाम 6 बजकर 10 मिनट (21 अक्टूबर 2019)

अहोई अष्टमी चन्द्रोदय समय रात 11 बजकर 46 मिनट (21 अक्टूबर 2019)

अहोई अष्टमी का महत्व

करवा चौथ का व्रत जहां महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। वहीं अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी उम्र और उन्हें हर प्रकार की परेशानियों से बचाने के लिए किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु और उनकी समृद्धि के लिए करती हैं। जहां करवा चौथ के व्रत में चंद्रमा को अर्ध्य देकर उसकी पूजा की जाती है। वहीं इस व्रत में तारों की छावं में अर्ध्य दिया जाता है। यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन पड़ता है। इसलिए इसे अहोई अष्टमी कहा जाता है।

अहोई अष्टमी का व्रत वह महिलाएं भी करती हैं। जिन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं होती। शास्त्रों के अनुसार अगर कोई नि:संतान महिला इस व्रत को रखती हैं तो उसके घर में जल्द ही बच्चे की किलकारियां गूंजने लगती है। इसके अलावा अगर संतान को किसी भी प्रकार का कष्ट हो तो भी इस व्रत को करने से वह समस्या समाप्त हो जाती है। इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। उनकी कथा सुनी जाती है और तारों की पूजा करके अहोई माता से संतान सुख की कामना की जाती है। इसलिए अहोई अष्टमी के व्रत को इतना महत्व दिया जाता है।

अहोई अष्टमी की पूजा विधि

  1. अहोई अष्टमी के दिन महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर घर को अच्छी तरह से सफाई करनी चाहिए। इसके बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
  2. इसके बाद शाम के समय दीवार पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाना चाहिए। आजकर बजारों में अहोई माता का चित्र भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इस चित्र में स्याहु माता और उनके सात पुत्र अवश्य होने चाहिए।
  3. .इसके बाद एक चावल की कटोरी में मूली और सिंघाड़े और पानी से भरा एक करवा या लोटा रखें। अगर यह करवा, करवा चौथ का हो तो ज्यादा अच्छा है।
  4. इसके बाद अहोई अष्टमी की कथा सुनें। कहानी सुनते समय हाथ में लिए गए चावलों को साड़ी के पल्लू से बांध लें। इसके बाद अहोई माता को चौदह पूरी और आठ को पूओं का भोग लगाएं
  5. अंत में तारों की छांव में चावलों के साथ अर्ध्य दें और माता को अर्पित किया गया भोजन किसी गाय को खिला दें और इस दिन किसी ब्राह्मण को भी भोजन अवश्य भेजें।

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अहोई अष्टमी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक साहुकार रहता था। जिसके सात पुत्र और सात बहुंए थीं। इस अलावा साहुकार की एक पुत्री भी थी जो दिवाली के समय अपने ससुराल से पिहर आया करती थी। एक बार दिवाली पर घर को लिपने के लिए साहुकार की बहुएं जंगल से मिट्टी लेने के लिए गई उनके साथ उनकी नंद भी मिट्टी लेने के लिए चली गई। उस जंगल में ही स्याहु अपने बच्चों के साथ रहा करती थी। जब सहुकार की पुत्री खुरपी से मिट्टी काट रही थी तो वह खुरपी स्याहु के एक बच्चे को लग गई। जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गई। स्याहु को इस बात से अत्याधिक क्रोध आया और उसने कहा की तेरी वजह से मेरे पुत्र की मृत्यु हुई है। इसलिए मैं तेरी कोख बांध दूंगी। स्याहु की बात सुनकर साहुकार की पुत्री ने अपनी सभी भाभियों से विनती की कि वह उसकी जगह अपनी कोख बंधवा लें। जब उसकी छह भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से मना कर दिया तो उसकी सबसे छोटी भाभी अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो गई। इसके बाद साहुकार की सबसे छोटी बहु के जो भी बच्ता होता था। वह सातवें दिन मर जाता था। जब साहुकार की छोटी बहु के सात पुत्र मर गए तो उसने इस समस्या के निदान के लिए एक पंडित को बुलाकर इस समस्या के समाधान के बारे में पूछा। उस पंडित ने साहुकार की बहु को सुरही गाय की सेवा करके उसका आर्शीवाद प्राप्त करने की सलाह दी। इसके बाद साहुकार की बहु सुरही गाय की बहुत सेवा करती है। सुरही गाय साहुकार की बहु से कहती है कि मैं तुम्हारी सेवा से अत्यंत प्रसन्न हुं बताओं तुम क्या चाहती हो। इसके बाद साहुकार की बहु सुरही गाय को पूरी बात बताती है। सुरही गाय साहुकार की बहु को स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में चलते- चलते दोनों अत्याधिक थक जाती हैं और एक पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगती है। आराम करते समय साहुकार की बहु की नजह एक एक गरूड़ पंखनी के बच्चे पर पड़ती है। जिसे एक सांप डंसने जा रहा होता है। साहुकार की बहु उस सांप को मार देती है। उसी समय गरूड़ पंखनी भी वहां पर आ जाती है और जब वह उस जगह पर खुन बिखरा देखती है तो उसे लगता है कि साहुकार की बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है और वह उसे अपनी चोंच मारने स्याहु साहुकार की छोटी बहू की सेवा से खुश होकर उसे सात पुत्र और सात बहुओं का वरदान देती है। इस तरह स्याहु के वरदाने के कारण साहूकार की छोटी बहु के घर में सात पुत्र और सात बहुएं आ जाती है। तब ही से संतान के लिए अहोई माता का व्रत किया जाने लगा। (अहोई का अर्थ होता है अनहोनी से बचानी वाली)

अहोई माता की आरती / अहोई अष्टमी आरती

जय अहोई माता जय अहोई माता

तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता

ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता

तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता

कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता

जिस घर थारो वास वही में गुण आता

कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता

तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पाता

खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता

शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता

रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता

श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता

उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता

Post By Shweta