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पितरों तक कैसे पहुँचता है श्राद्ध का प्रसाद?

पितरों तक कैसे पहुँचता है श्राद्ध का प्रसाद?

हिंदू धर्म में श्राद्ध एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण कर्म माना गया है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने का माध्यम भी है। बहुत से लोग यह प्रश्न करते हैं कि जो अन्न, जल या वस्त्र हम यहाँ पृथ्वी पर अर्पित करते हैं, वे आखिर पितरों तक कैसे पहुँचते हैं? शास्त्रों में इसका विस्तृत और स्पष्ट उत्तर दिया गया है।

पितृलोक क्या है और पितर कहाँ रहते हैं?

गरुड़ पुराण और महाभारत के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों में जाती है। जो आत्माएँ पुनर्जन्म की प्रतीक्षा में होती हैं या जिनका श्राद्ध व तर्पण होता रहता है, वे पितृलोक में निवास करती हैं। यह लोक यमराज के अधीन बताया गया है। इसे यमलोक के समीप स्थित माना गया है, जहाँ पितर सूक्ष्म शरीर (सूक्श्म देह) में रहते हैं। वे स्थूल देह वाले नहीं होते, इसलिए उन्हें भौतिक भोजन की नहीं बल्कि सूक्ष्म ऊर्जा और श्रद्धा की आवश्यकता होती है।

श्राद्ध प्रसाद कैसे पहुँचता है?

शास्त्रों के अनुसार जब हम श्राद्ध में पिंडदान (चावल के गोले), तिल, कुश और जल अर्पित करते हैं, तो:

  1. मंत्र शक्ति का प्रभाव:
    श्राद्ध अनुष्ठान में विशेष वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। इन मंत्रों की शक्ति से अर्पित किया गया अन्न और जल सूक्ष्म रूप में परिवर्तित होकर यमदूतों के माध्यम से पितृलोक तक पहुँचता है।
    गरुड़ पुराण में कहा गया है —

    “श्राद्धेन तृप्यन्ति पितरः” — अर्थात श्राद्ध से पितर तृप्त होते हैं।

  2. पिंड और तर्पण का महत्व:

    • पिंड पितरों के लिए भोजन का प्रतीक माना जाता है।

    • तर्पण (जल, तिल और कुश के साथ) उनके पान (पीने) के लिए अर्पित किया जाता है।

    • इन दोनों का सूक्ष्म अंश उन्हें आत्मिक तृप्ति देता है।

  3. श्रद्धा और भावना की शक्ति:
    शास्त्रों में कहा गया है कि श्रद्धा ही श्राद्ध का मूल है। यदि श्रद्धा और भावपूर्वक यह कर्म किया जाए तो उसका फल निश्चित रूप से पितरों तक पहुँचता है। बिना भाव से किया गया कर्म केवल औपचारिक रह जाता है।

पितरों की तृप्ति का फल

जब पितर श्राद्ध से तृप्त होते हैं, तो वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। इससे परिवार में सुख-शांति, संतान की वृद्धि, धन-समृद्धि और पितृदोष का शमन होता है।
महाभारत में कहा गया है —

“पितृभ्यः प्रददात् यस्तु श्रद्धया विधिपूर्वकम्। स यान्ति पितृलोकं च पितरश्च प्रसन्नताम्॥”
अर्थात — जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक पितरों को अर्पण करता है, वह पितृलोक को प्राप्त होता है और पितर भी प्रसन्न होते हैं।

श्राद्ध केवल भौतिक अर्पण नहीं, बल्कि श्रद्धा, भावना और मंत्र शक्ति का संयोग है। यही कारण है कि यहाँ से अर्पित किया गया प्रसाद सूक्ष्म रूप में पितृलोक तक पहुँचता है और उन्हें शांति व तृप्ति प्रदान करता है। इसलिए श्राद्ध करते समय मन, वचन और कर्म से पूर्ण श्रद्धा और शुद्धता बनाए रखना सबसे आवश्यक माना गया है।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

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