हिंदू धर्म क्या है? इसके मूल सिद्धांत और दर्शन
हिंदू धर्म, जिसे सनातन धर्म भी कहा जाता है, विश्व का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है। इसकी कोई निश्चित स्थापना तिथि या प्रवर्तक नहीं है। यह हजारों वर्षों के अनुभव, साधना और ज्ञान का परिणाम है। हिंदू धर्म को केवल एक “धर्म” के रूप में सीमित करना इसकी विशालता को कम करके देखना होगा, क्योंकि यह जीवन जीने का सम्पूर्ण मार्ग है। इसमें आध्यात्मिकता, दर्शन, संस्कृति, परंपराएँ और सामाजिक मूल्य सब समाहित हैं।
भारत की सांस्कृतिक पहचान का मूल आधार यही धर्म है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है। ऋग्वेद का यह वाक्य “एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति” (सत्य एक है, ज्ञानी उसे विभिन्न नामों से पुकारते हैं) हिंदू धर्म के मूल दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
हिंदू धर्म का स्वरूप
हिंदू धर्म का सबसे बड़ा गुण है इसकी विविधता और सहिष्णुता। इसमें अनेक देवताओं की पूजा होती है, फिर भी सभी का आधार एक ही परमात्मा है। कोई वेदों का अनुसरण करता है, कोई उपनिषदों का, तो कोई भक्ति मार्ग को चुनता है। परंतु अंततः सबका लक्ष्य एक ही है – आत्मा और परमात्मा का मिलन।
इस धर्म में किसी पर किसी विशेष पूजा-पद्धति को थोपने का नियम नहीं है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रकृति के अनुसार मार्ग चुनने की स्वतंत्रता है। यही कारण है कि इसे “जीवंत धर्म” कहा जाता है।
हिंदू धर्म के मूल सिद्धांत
धर्म (कर्तव्य और नैतिकता):
धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि कर्तव्य, न्याय और सदाचार है। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं – “स्वधर्मे निधनं श्रेयः”, अर्थात अपने धर्म का पालन करना ही श्रेष्ठ है।कर्म (कर्मफल का सिद्धांत):
हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि हर कार्य का परिणाम अवश्य मिलता है। जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल मिलेगा। इसे ही “कर्म का सिद्धांत” कहा जाता है।पुनर्जन्म (Reincarnation):
आत्मा न जन्म लेती है न मरती है। यह शाश्वत है और शरीर बदलते हुए पुनर्जन्म लेती है। गीता में कहा गया है – “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः”।मोक्ष (मुक्ति):
जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाना जीवन का अंतिम लक्ष्य है। मोक्ष प्राप्ति के लिए भक्ति, ज्ञान, ध्यान और निस्वार्थ कर्म को साधन बताया गया है।ईश्वर के अनेक रूप:
हिंदू धर्म में ईश्वर को अनेक रूपों में पूजने की परंपरा है। कोई शिव को पूजता है, कोई विष्णु को, कोई शक्ति या गणेश को। किंतु सभी अंततः उसी परम सत्य के अलग-अलग स्वरूप माने जाते हैं।
हिंदू दर्शन शास्त्र
हिंदू धर्म में दर्शन शास्त्र की अत्यंत समृद्ध परंपरा है। इसके छह प्रमुख दर्शनों का उल्लेख मिलता है:
न्याय दर्शन: तर्क और प्रमाण पर आधारित।
वैशेषिक दर्शन: पदार्थ और उसकी विशेषताओं का अध्ययन।
सांख्य दर्शन: प्रकृति और पुरुष के भेद पर आधारित।
योग दर्शन: आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग।
मीमांसा दर्शन: यज्ञ और अनुष्ठान की महत्ता।
वेदांत दर्शन: उपनिषदों पर आधारित, आत्मा और ब्रह्म की एकता का ज्ञान।
ये सभी दर्शन मानव जीवन को विभिन्न कोणों से समझाते हैं और मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं।
हिंदू धर्म की सामाजिक और आध्यात्मिक शिक्षाएँ
हिंदू धर्म केवल आध्यात्मिक साधना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज को भी दिशा देता है। इसमें अहिंसा, सत्य, करुणा, क्षमा और दान जैसे मूल्यों पर विशेष बल दिया गया है। “वसुधैव कुटुम्बकम्” (सम्पूर्ण संसार एक परिवार है) का सिद्धांत आज भी वैश्विक भाईचारे का संदेश देता है। साथ ही इसमें चार आश्रम व्यवस्था (ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास) तथा चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष) के माध्यम से जीवन को संतुलित और अनुशासित बनाने की पद्धति दी गई है।
आधुनिक संदर्भ में हिंदू धर्म
आज के युग में भी हिंदू धर्म के सिद्धांत अत्यंत प्रासंगिक हैं। योग और ध्यान ने पूरी दुनिया को मानसिक शांति और स्वास्थ्य का मार्ग दिखाया है। कर्म सिद्धांत व्यक्ति को अपने कार्यों के प्रति जिम्मेदार बनाता है। वहीं धर्म और अहिंसा की भावना समाज में नैतिकता और शांति बनाए रखने में सहायक है। धार्मिक सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव का सिद्धांत आधुनिक वैश्विक समाज के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है।
हिंदू धर्म केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि एक जीवन-दर्शन है। इसमें भक्ति, ज्ञान, कर्म और योग – सभी को समान रूप से स्वीकार किया गया है। इसके मूल सिद्धांत व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक रूप से बल्कि सामाजिक और नैतिक रूप से भी उन्नत बनाते हैं। हजारों वर्षों बाद भी हिंदू धर्म प्रासंगिक है क्योंकि इसका लक्ष्य केवल व्यक्ति की मुक्ति नहीं बल्कि पूरे मानव समाज की भलाई है। यही कारण है कि इसे सनातन धर्म कहा गया है – एक ऐसा धर्म जो शाश्वत है और सदैव बना रहेगा।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो