Ambedkar Jayanti 2025: क्यों बौद्ध धर्म अपनाया अंबेडकर ने ?

Ambedkar Jayanti 2025: क्यों बौद्ध धर्म अपनाया अंबेडकर ने ?

Ambedkar Jayanti 2025: क्यों बौद्ध धर्म अपनाया अंबेडकर ने ?

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने बौद्ध धर्म इसलिए अपनाया क्योंकि वे एक ऐसे धर्म की तलाश में थे जो समानता, स्वतंत्रता, और भाईचारे के सिद्धांतों पर आधारित हो, और जो छुआछूत, जातिवाद, व सामाजिक भेदभाव को न बढ़ावा दे।

यहाँ कुछ मुख्य कारण हैं:

  • हिंदू धर्म में जातिवाद और छुआछूत
  • धर्म परिवर्तन = सामाजिक क्रांति
  • बौद्ध धर्म = मानवतावादी धर्म
  • बौद्ध धर्म का भारतीय मूल होना

अंधेरे से उजाले तक: अंबेडकर और बौद्ध धर्म की कहानी”

एक बच्चे की पीड़ा

1901 का एक तपता हुआ दिन था। एक छोटा सा दलित बच्चा स्कूल में दाख़िल हुआ — नाम था भीमराव
कक्षा में सबसे पीछे ज़मीन पर बैठाया गया। उसके लिए न पानी था, न बराबरी।
जब उसने प्यास लगने पर पानी मांगा, तो मास्टर ने उसे डांट दिया —

“तू छू लेगा तो हंडा अपवित्र हो जाएगा!”

उस दिन भीमराव ने तय किया —
मैं पढ़ूँगा… इतना पढ़ूँगा कि ये समाज मुझे अनपढ़ न कह सके, और इतना उठूँगा कि ये मुझे कभी नीचे न गिरा सके।

शिक्षा का दीपक

समाज ने तो रोके लगाए, लेकिन भीमराव ने रुकना नहीं सीखा।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी की, लंदन से कानून सीखा —
वो भारत के पहले कानून मंत्री बने, और संविधान के निर्माता भी।

लेकिन, उन्होंने देखा — संविधान बना देने से समाज बदल नहीं रहा।
दलित अब भी पीटें जा रहे थे, मंदिरों में घुसने से रोके जा रहे थे।

सवालों से टकराव

भीमराव ने खुद से पूछा:

क्या धर्म का मतलब यही है कि कोई ऊँचा और कोई नीचा हो?
क्या भगवान ने सबको बराबर नहीं बनाया?

उन्होंने बहुत से धर्मों का अध्ययन किया — इस्लाम, ईसाई, सिख, जैन और बौद्ध।
फिर उनका मन टिक गया बुद्ध पर

बुद्ध की राह पर

गौतम बुद्ध ने कहा था —

“ना कोई ऊँचा, ना कोई नीचा। मनुष्य का मूल्य उसके कर्म से होता है, जन्म से नहीं।”

अंबेडकर को यही तो चाहिए था!
एक ऐसा रास्ता जो तर्क, करुणा, और समानता पर चलता हो।
एक ऐसा धर्म जो इंसान को इंसान समझे।

14 अक्टूबर 1956 – धर्म की नई सुबह

नागपुर का दीक्षा भूमि। लाखों लोग जमा हुए थे।
डॉ. अंबेडकर ने मंच पर खड़े होकर कहा:

“मैंने बहुत सोच समझकर बौद्ध धर्म अपनाया है। आज मैं आपको एक नए जीवन की ओर ले जा रहा हूँ —
जहाँ न ऊँच-नीच होगा, न छुआछूत, न गुलामी।

फिर उन्होंने खुद बौद्ध धर्म की दीक्षा ली, और अपने अनुयायियों को दिलाईं 22 प्रतिज्ञाएँ:

👉🏽 “मैं ब्राह्मणवाद को नहीं मानूँगा।”
👉🏽 “मैं बुद्ध, धम्म और संघ की शरण लूंगा।”
👉🏽 “मैं किसी भी प्राणी को हानि नहीं पहुँचाऊँगा।”
👉🏽 “मैं समानता, भाईचारा और ज्ञान के मार्ग पर चलूँगा।”

अंत नहीं, शुरुआत थी ये

14 अक्टूबर 1956 को जो दीप जला, वो आज भी जल रहा है —
हर उस दिल में जो अन्याय से लड़ता है,
हर उस दिमाग में जो सोचता है,
और हर उस आत्मा में जो समानता को अपना धर्म मानती है।

“मैंने धर्म परिवर्तन इसलिए किया क्योंकि मैं इंसान की तरह जीना चाहता था।” — डॉ. अंबेडकर 

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

Post By Religion World