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इस्लाम और नया साल : नये साल की आमद पर जश्न या अपना मुहासबा

नये साल की आमद पर जश्न या अपना मुहासबा

  • मुहम्मद नजीब क़ासमी

सूरज के निजाम से ईसवी कलैंडर में 365 या 366 दिन होते हैं, जबकि हिजरी कलैंडर में 354 दिन होते हैं। हर कलैंडर में 12 ही महीने होते हैं। हिजरी कलैंडर में महीना 29 या 30 दिन का होता है जबकि ईसवी कलैंडर में सात महीना 31 दिन के, 4 महीना 30 दिन और 1 महीना 29 दिन का होता है।

नये साल की मुनासबत से दुनिया में मुख्तलिफ मकामात पर HAPPY NEW YEAR के नाम से बहुत सी जगहों पर प्रोग्राम किये जाते हैं और उनमें बेतहाशा रकम खर्च की जाती है। हालांकि इस रकम से लोगों की फलाह व बबहूद के बड़े बड़े काम किये जा सकते हैं, इंसानी हुकूक की ठेकेदार बनने वाली दुनिया की मुख्तलिफ तंजीमें भी इस मौके पर चश्मपोशी से काम लेती है।

मगर जाहिर है कि इन प्रोग्रामों को मुंअकिद करने वाले न हमारी बात मान सकते हैं और न ही वह इस वक़्त हमारे मुखातब हैं। लेकिन मुस्लमानों को इस मौके पर क्या करना चाहिए? यह इस मजमून को लिखने का बुनियादी मकसद है।

fireworks new year

पूरी उम्मते मुस्लिमा का इत्तिफाक है कि शरीअते इस्लामिया में कोई मखसूस अमल इस मौका पर मतलूब नहीं है और कियामत तक आने वाले इन्स व जिन्न के नबी हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, सहाबा-ए-कराम, ताबेईन, तबे ताबेईन, मुफस्सेरीन, मुहद्दिसीन और फुकहा से HAPPY NEW YEAR कह कर एक दूसरे को मुबारकबाद पेश करने को कोई सबूत नहीं मिलता।

इस तरह के मवाके के लिए अल्लाह तआला ने कुरान करीम में हमारी रहनुमाई फरमाई है (रहमान के वह बन्दे हैं) जो नाहक कामों में शामिल नहीं होते हैं, यानी जहाँ नाहक और नाजायज काम हो रहे हों अल्लाह तआला के नेक बन्दे उनमें शामिल नहीं होते, बल्कि बुरे कामों को बुरा समझते हुए वकार के साथ वहाँ से गुज़र जाते हैं। (सूरह फुरकान 72)

असरे हाजिर के उलमा-ए-किराम का भी यही मौकिफ है कि यह अमल सिर्फ और सिर्फ गैरों का तरीका है। लिहाजा हमें इन तकरीबात में शिर्कत से हत्तल इमकान बचना चाहिए और अगर कोई शख्स HAPPY NEW YEAR कह कर हमें मुबारकबाद पेश करे तो मुख्तलिफ दुआए कलेमात उसके जवाब में पेश कर दें।

मसलन अल्लाह तआला पूरी दुनिया में अमन व सुकून कायम फरमाये, अल्लाह तआला कमजोरों और मजलूमों की मदद फरमाये, अल्लाह तआला बरमा, शाम, इराक और फिलिस्तीन में मजलूम मुसलमानों की मदद फरमाये। अल्लाह तआला हम सबकी जिन्दगियों में खुशियाँ लायें, अल्लाह तआला 2016 को इस्लाम और मुसलमानों की सरबुलंदी का साल बना दें।

नीज साल गुजरने पर ज़िन्दगी के मुहासबा का पैगाम भी दिया जा सकता है। हम इस मौका पर आइन्दा अच्छे काम करने के अहद करने का पैगाम भी भेज सकते हैं। गरज ये कि हम खुद HAPPY NEW YEAR  कह कर पहल न करें, बल्कि इस मौका पर हासिल शुदा पैगाम पर खुद दाई बन कर मुख्तलिफ अंदाज से मुसबत जवाब पेश फरमायें। हुज़ूर अकरम सल्लल्लहु अलैहि वसल्लम के जमाने में भी मुख्तलिफ कलैंडर राएज थे और जाहिर है कि हर कलैंडर के एतेबार से साल की इब्तिदा भी होती है।

हिजरी कलैंडर हजरत उमर फारूक रजी अल्लाहु अन्हु के अहदे खिलाफत में शुरू किया गया और चांद के निजाम से चलने वाले हिजरी कलैंडर के साल की इब्तिदा मुहर्रमुल हराम से शुरू की गई। सूरज के निजाम से ईसवी कलैंडर में 365 या 366 दिन होते हैं, जबकि हिजरी कलैंडर में 354 दिन होते हैं। हर कलैंडर में 12 ही महीने होते हैं। हिजरी कलैंडर में महीना 29 या 30 दिन का होता है जबकि ईसवी कलैंडर में सात महीना 31 दिन के, 4 महीना 30 दिन और 1 महीना 29 दिन का होता है। सूरज और चांद दोनों का निजाम अल्लाह तआला ही ने बनाया है।

Hizri calendar

शरीअते इस्लामिया में बहुत सी इबादतें हिजरी कलैंडर से मरबूत हैं। दोनों कलैंडर में 10 या 11 रोज का फर्क होने की वजह से बाज मखसूस इबादतों का वक़्त एक ही मौसम से दूसरे मौसम में तबदील होता रहता है। यह मौसमों की तब्दीली भी अल्लाह तआला की निशानी है, हमें इस पर गौर करना चाहिए कि मौसम कैसे तब्दील हो जाते हैं और दूसरों को भी इस पर गौर व फिक्र करने की दावत देनी चाहिए।

जाहिर है कि यह सिर्फ और सिर्फ अल्लाह का हूकुम है जिसने बहुत से मौसम बनायें और हर मौसम में मौसम के एतेबार से बहुत सी चीजें बनायें, जैसा कि फरमाने इलाही है बेशक आसमानों और जमीन की तखलीक में और रात दिन के बारी बारी आने जाने में उन अकल वालों के लिए बड़ी निशानियाँ हैं जो उठते बैठते और लेटे हुए (हर हाल में) अल्लाह को याद करते हैं और आसमानों और जमीन की तखलीक पर गौर व फिक्र करते हैं (और उनको देख कर बोल उठते हैं कि) ऐ हमारे परवरदिगार! आपने यह सब कुछ बेमकसद पैदा नहीं किया। आप (ऐसे फजूल काम से) पाक हैं, पस दोजख के अजाब से बचा लीजिए। (सूरह आले इमरान 190, 191)

नये साल के मौके पर अमूमन दुनिया में सरदी की लहर होती है, सरदी के मौसम में दो खास इबादतें करके हम अल्लाह तआला का कुर्ब हासिल कर सकते हैं। एक इबादत वह है जिसका तअल्लुक सिर्फ और सिर्फ अल्लाह की जात से है और वह रात के आखिरी हिस्सा में तहज्जुद की नमाज की अदायेगी है जैसा कि सरदी के मौसम के मुतअल्लिक हदीस में आता है कि सरदी का मौसम मोमिन के लिए मौसमे रबी है, रात लम्बी होती है, इसलिए वह तहज्जुद की नमाज पढ़ता है।

तहज्जुद की नमाज

दिन छोटा होने की वजह से रोजा रखता है। यकीनन सरदी में रात लम्बी होने की वजह से तहज्जुद की चंद रिकात नमाज पढ़ना हमारे लिए आसान है। कुरान करीम में फर्ज नमाज के बाद जिस नमाज का जिक्र ताकीद के साथ बार बार किया गया है वह तहज्जुद की नमाज ही है जो तमाम नवाफिल में सबसे अफजल नमाज है।

सरदी के मौसम में दूसरा अहम काम जो हमें करना चाहिए वह अल्लाह के बन्दों की खिदमत है और इसका बेहतरीन तरीका यह है कि हम गुरबा व मसाकीन व यतीम व बेवाओं व जरूरतमंदों को सरदी से बचने के लिए लिहाफ, कम्बल और गर्म कपड़े तकसीम करें। मुहसिने इंसानियत के इरशादात अहादीस की किताबों में मौजूद हैं।

मैं और यतीम की किफालत करने वाला दोनों जन्नत में इस तरह होंगे जैसे दो अंगुलियाँ आपस में मिली हुई होती हैं। (बुखारी) मिसकीन और बेवा औरत की मदद करने वाला अल्लाह तआला के रास्ते में जिहाद करने वाले की तरह है। (बुखारी व मुस्लिम) जो शख्स किसी मुसलमान को जरूरत के वक़्त कपड़ा पहनायेगा अल्लाह तआला उसको जन्नत के सब्ज लिबास पहनायेगा।

जो शख्स किसी मुसलमान को भूख की हालत में कुछ खिलायेगा अल्लाह तआला उसको जन्नत के फल खिलायेगा। जो शख्स किसी मुसलमान को प्यास की हालत में पानी पिलायेगा अल्लाह तआला उसको जन्नत में ऐसी शराब पिलायेगा जिस पर मुहर लगी हुई होंगी। (अबू दाऊद, तिरमिजी)

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लेखक – मुहम्मद नजीब क़ासमी

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