युवा संतों की दशा-दिशा
धार्मिक-आध्यात्मिक संगठनों का नेतृत्व भले ही वृद्ध हो पर वहां चारों ओर युवा ही रमे हुए हैं। हर संत-महात्मा-गुरू को युवाओं का महत्व पता है और शायद उसे जोड़ने के वो हर कदम उठा रहा है।
- भव्य श्रीवास्तव
धर्म के युवा भाव से आप धीरे-धीरे परिचित हो रहे होंगे। धर्म सदियों से मानव के बीच प्रकृति की तरह स्थापित है और वो अचर से चर की यात्रा में आत्मा बनकर बहुत सारी प्रेरणाओं का स्रोत है। समय के हिसाब से धर्म ने अपना रूप-स्वरूप-भंगिमा और प्रासंगिक आचरणों को स्वीकार किया। कभी संप्रदायों के रूप में रहा हो तो कभी ग्रंथों के मध्य ज्ञान बनकर नैसर्गिकता ओढे रहा। कभी गुरुओं ने भगवान को प्रकट किया तो कभी भगवान ने रूप धरे और अधर्म-मर्यादा के बहाने इतिहास रचा। बहुत तार्किक होकर भी सोचे तो भी समाज में धर्म ने नैतिकता-मूल्य और सामंजस्य के कुछ सांचों को गढा तो जरूर है। यह अलग बात है कि आज धर्म ही केवल वो एक शक्ति नहीं रह गया है जो मानव की सभी संभावनाओं को आकार दे रहा है। यह एक पथ है जो सभी नए पथों से किसी न किसी चौराहे पर मिलकर अपना प्रभाव प्रदर्शित कर देता है।
जाहिर जब भारत की आबादी का पचास फीसदी से ज्यादा युवा है (18-30) तो धर्म कैसे केवल पचास पार के लोगों के हिसाब से साकार होगा। धार्मिक-आध्यात्मिक संगठनों का नेतृत्व भले ही वृद्ध हो पर वहां चारों ओर युवा ही रमे हुए हैं। हर संत-महात्मा-गुरू को युवाओं का महत्व पता है और शायद उसे जोड़ने के वो हर कदम उठा रहा है। इसी सब के बीच युवा संन्यासी क्या कुछ ऐसा कर रहे हैं जो नवीन हो, किशोर हो, रोचक हो और कुछ ऐसा दिखता हो जो भविष्य की झलक देता हो ? जाहिर है कि बहुतायत में युवा संन्यासी, वैष्णव, विरक्त और योगी-ध्यानी-ज्ञानी सोशल मीडिया को पहली सीढ़ी मानकर अपनी मौजूदगी और प्रतिभा का परिचय देने में कोई हिचक नहीं रखते। फोटो-वीडियो का यह तमाशा सभी के सामने है जिसके परिणाम सकारात्मक भी है। इससे आज के युवा वर्ग को धर्म की एक सरल परिभाषा मिली है, जो संगीत, प्रेरक किस्सों, संप्रदाय के विषय, त्योहारों की जानकारी, खास दिनों के महत्व, मंत्र ज्ञान आदि से ज्यादा जुड़ी हैं। परंपरा से आए संन्यासी और वैष्णव में विभेद केवल चेहरे-मोहरे का दिखता है, कंटेंट सभी एक सा ही परोसते हैं। इससे उपादेयता को लेकर भ्रम है। जाहिर है भारतीय समाज में पुराना बनाम नया के बीच आज सबसे ज्यादा संघर्ष दिखता है। पुराने को गंभीर और त्यागी मानकर और नए को आज के हिसाब से देखकर समाज दोनों को बराबर जगह दे रहा है। मसलन, प्रेमानंद जी और अनिरूद्धाचार्य। साध्वी ऋतंभरा और धीरेंद्र शास्त्री। श्रीश्री रविशंकर और मधुसूदन साईं। विनोद बाबा और इंद्रेश जी। ऋतेश्वर जी और आचार्य प्रशांत। कुमार विश्वास और मिथिलेश नंदिनी शरण। धार्मिक-आध्यात्मिक संगठनों के प्रसार की गति भी रूकी नहीं है, पर वहां नेतृत्व से नवीन विचार का अभाव साफ दिख रहा है। इसीलिए युवा संतों ने समाज में एक अलग पैठ बनाई है। जो लोकप्रियता, प्रतिद्वंदिता और सहभागिता से मिलजुलकर तैयार हो रही है।
मैने कुछ समय पहले एक लेख – “युवा धर्मगुरूओं को क्या करना चाहिए” – लिखा था। उसमें एक लक्ष्य पर सतत चलने की बात थी। ऐसा करके आज से तीस साल पहले के कई गुरूओं ने आज बड़ा आधार और मिसाल बनाई है। पर आज के युवा धर्म में कई नए तत्व जुड़ा हैं। पहला जल्द से जल्द लोकप्रिय होना, जो किसी को भी सबसे पहले बोलने-प्रदर्शन-विवाद आदि की ओर ले जाता है। सहभागिता के अवसरों पर रील्स की सोच ने भी बड़ा सहयोगात्मक माहौल बनाया है। एक संग मंच पर आना और फिर कोलैब हो जाना। इससे दो युवा संग-संग जनता के बड़े क्षेत्रफल तक पहुंचते हैं। लेकिन इस कोलैब में अभी दूरगामी लक्ष्यों की कमी है, जो अल्पकालिक मेल-मिलाप से ही बड़ा माहौल बनाने में खर्च होती दिखती है। एक कटु सत्य यह है कि आप बिना खर्च हुए कुछ कमा नहीं सकते है। भगवा, गुरु, संप्रदाय, भेष, गद्दी, मठ की एक सीमाएं है जो सोशल मीडिया पर जाकर मिट जाती है, वहां आपको वही करना होता है जो सब कर रहे हैं।
टीन्स को क्या धर्म में रूचि है ? भजन जैमिंग (Bhajan Jamming) शब्द को इंस्टाग्राम पर डालिए। आप चौक जाएंगे। हजारों की संख्या में बेहद ऊर्जावान युवा यह कर रहे हैं। मैं कहूंगा इसे राधिका दास जैसों ने विदेश में लोकप्रिय किया है और अपने संप्रदाय में इसे एक अलग अंदाज में पुंडरीक गोस्वामी ने सही से प्रयोग किया, जिसके नतीजे प्रभावी हैं। मैं तो इस बात से भी इत्तेफाक रखता हूं कि यूथ से ज्यादा टीन्स को समझना आसान है। वो पैदा ही मोबाइल के साथ हुआ है। तो जो जितना उसे कंटेंट देखने, उसे बनाने, बनाने के दौरान अलग अनुभव पैदा करेगा, वो टीन्स में जगह बना लेगा। तीस के पार वाले को नौकरी-व्यापार की बड़ी चिंता है, 18-30 वाला रिस्क लेकर इस्कान या आर्ट ऑफ लिविंग चला जाएगा। युवा संन्यासी इसे अब समझकर वही कर रहे हैं जो इस दर्शक वर्ग को भाता है। पर घोर धार्मिक मठों-पीठों-आश्रमों में एक बहुत बड़ी आबादी है जो शास्त्र को आधार मानकर, गुरू आज्ञा को शिरोधार्य करके एक युद्ध लड़ रही है, खुद को सिद्ध करने की। निग्रहाचार्य, राघवाचार्य जी आदि इस ओर है। एक और प्रकार है परिव्राजक साधु का, जो साधु का गुण है धर्म प्रचार का। स्वामी दीपांकर जैसे साधु इस मार्ग पर है, भिक्षा यात्रा के जरिए.
दक्षिण भारत में कहानी मठों और मंदिरों के आधिपत्य की है। वहां तकरीबन हर मठ में एक युवा उत्तराधिकारी तैयार है या भूमिका में है। कर्नाटक के आदिचुनचुनगुड़ा मठ के स्वामी निर्मलनाथ जी आईआईटी से पढे और बेहद युवा उम्र में वोक्कलिगा समूह के सबसे बडे मठ के मठाधीश है, वाट्सएप प्रयोग नहीं करते, ईमेल में विश्वास करते हैं। वहीं लिंगायत के लिए युवाओं में रूझान पूरा है, और उनके संतों द्वारा बनाए गए मठों के जरिए शिक्षा और स्वास्थ्य का बड़ा कार्य हो रहा है, मसलन सिद्धगंगा और सुत्तुर मठ। ऐसा राजनैतिक प्रभाव की वजह से ही है। कर्नाटक में ही श्रृंगेरी पीठ है जो शंकराचार्य पद का दक्षिण भारत का स्थान है। शंकराचार्य भारती तीर्थ के उत्तराधिकारी विधुशेखर जी बेहद युवा हैं और उत्तर भारत से पूरे संपर्क में है।
तामिलनाडु में कांची कामकोटि पीठ पर युवा शंकराचार्य है जिनका प्रभाव बहुत है पर वे मूल धार्मिक आचरणों को लेकर कटिबद्ध दिखते है, महाकुभ में भी उनका पंडाल बहुत विनम्रता से धर्म प्रचार कर रहा था। वे युवाओं के लिए युवा धर्म संसद जैसे आयोजनों को महत्व देते हैं। तामिलनाडु के अधीनम की सत्ता में युवा चेहरे अब बढ़ गए हैं। चेन्नई में महत्रिया भी आध्यात्म को नया बाना पहनाकर युवाओं को जोड़ रहे हैं। दक्षिण भारत के मठों-पीठों का मंदिरों से गहरा नाता है। जैसे रामानुज संप्रदाय के चिन्ना जीयर स्वामियों का तिरूपति से और उडुपी कृष्ण मंदिर से जुडे आठ मठों का। आंध्र-तेलांगना में भी कई संत है जो अब वृद्ध हो चुके है और नए युवा संन्यासी आगे आ रहे हैं। केरल में अम्मा की धमक है पर उनके यहां हर तीसरा व्यक्ति युवा और समर्पित है। वैसे दक्षिण भारत के दो सबसे बड़े आध्यात्मिक संगठन आर्ट ऑफ लिविंग और ईशा फाउंडेशन का सबसे बड़ा बेस युवाओं से ही तैयार हुआ है। दोनों ने युवा तन-मन को निखारने में मजबूत काम किया है।
दस साल में आपके सामने इन युवाओं संतों में छंटकर वो चेहरे सामने आएंगे जो आज के वरिष्ठ संतों की जगह लेंगे। हालांकि यह किसी कंपनी के सीईओ की जगह नए सीईओ आने की तरह नहीं होगा। पर धीरे धीरे आप देखेंगे कि आज के गंभीर-प्रसिद्ध-कर्मठी-दूरदर्शी-भाग्यशाली अपनी जगह बनाकर एक नई व्यवस्था को पेश करेंगे। धर्म के भीतर बहुत ही रोचक तरीके से चीजें होती है, यह आम लोग यहा कई बार बहुत समझदार लोग भी समझ नहीं पाते। मसलन शिष्य का चुनाव, जो गुरू की जगह लेगा। या धीरेंद्र शास्त्री या प्रदीप मिश्रा जी का बेहद लोकप्रिय होना। धर्म की गति बहुत अनोखी होती है, जिसे सौ फीसदी लोगों के द्वारा बहुत हद तक आकार दिया जाता है, पर एक बार परमात्मा की भूख जगने और सचमुच धर्म समझने के बाद युवा साधु की गति अनोखी होती है। वो हर दिन एक ही कृत्य करता है पर उसकी ऊर्जा थकती नहीं है, और एक लाख में एक साधु वो रच सकता है जो आगे के धर्म को जीवित रखने के लिए आधार बनाता है।
~ भव्य श्रीवास्तव
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