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Yoga at COP23 : Climate Change Conference & Yoga : A Talk with Sanjeev Bhanot, Yogalife Founder

Yoga at COP23 : Climate Change Conference & Yoga : A Talk with Sanjeev Bhanot, Yogalife Founder

दुनिया का तापमान बढ़ रहा है। शरीर का तापमान दो डिग्री बढ़ जाए तो बुखार आ जाता है, और अगर ये एक सीमा के अंदर या बाहर ( 98.0-104 डिग्री) चला जाए, तो हमारी जिंदगी पर खतरा आ जाता है। ऐसा ही कुछ हमारी पृथ्वी के साथ हो रहा है। इसे लेकर हर देश चिंतित है। जर्मनी के बॉन में चल रहा है क्लाइमेट चेंज कॉंफ्रेंस COP23 में दुनिया के देश जुटे है इस समस्या पर विचार के लिए। पर एक और जहां हर कोई पर्यावरण को लेकर विचारवान है, वहीं कुछ लोग ऐसे हैं, जो इंसान के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यहां मौजूद है। वे एक भारतीय ज्ञान के प्रचार प्रसार में सालों से लगे। योग की गूंज अब पूरी दुनिया में है। और जर्मनी में सालों से योग को व्यवस्थित तरीके से सिखा रहे संजीव भनोत के लिए COP23 एक अवसर है। उनके साथ रिलीजन वर्ल्ड ने खास बात की। आप भी समझिए कि ये कार्यक्रम और योग हमें कैसे बचा सकता है।

प्रश्न – आप इस समय जर्मनी में हैं, जहाँ क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस में योग सिखा रहे हैं. क्लाइमेट चेंज कांफ्रेंस के बारे में कुछ बताइए?

उत्तर-  यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट चेंज कान्फ्रेंस या अनौपचारिक रूप से विश्व जलवायु सम्मलेन सालाना आयोजित होने वाली कान्फ्रेंस है. इस कांफ्रेंस का उद्देश्य जलवायु बदलाव के मुद्दे पर बात करके उसका समाधान ढूँढना है. UNFCC के तहत आयोजित होने वाली इस कांफ्रेंस में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चीज़ों की समीक्षा करने के लिए कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज (COP) को  आपस में विचार आदान-प्रदान करने का अवसर प्रदान किया जाता है.

कॉप23, 23वीं क्रॉन्फेंस ऑफ द पार्टीज टू द यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन क्लाइमेंट चेंज (यूएनएफसीसीसी) का छोटा नाम है. यूएनएफसीसीसी को साल 1992 में रियो अर्थ सम्मिट के दौरान अपनाया गया था. रियो सम्मेलन को विश्व समुदाय का जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाया गया पहला संयुक्त कदम माना जाता है। हर साल समझौते में शामिल पार्टियां या सदस्य देश कनवेंशन की प्रगति का आकलन करती हैं. साथ ही चर्चा करती हैं कि कैसे अधिक से अधिक व्यापक ढंग से जलवायु परिवर्तन से निपटा जाये. पहली कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज साल 1995 में बर्लिन में आयोजित की गयी थी. साल 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल स्थापित किया गया, जो विकसित देशों पर उत्सर्जन घटाने से जुड़ी कानूनी बाध्यताएं तय करता है.

प्रश्न- संजीव जी आप COP23 में योग की क्लासेज दे रहे हैं. आपके मन में यह विचार कैसे आया?

उत्तर- मैं UN से काफी साल से जुड़ा हुआ हूँ. और इस बार पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने मुझे और अंजलि दोनों को यहाँ आने का निमंत्रण दिया. मेरे स्टूडेंट्स यहां योग सिखा रहे हैं. और यहाँ लोग कांफ्रेंस के साथ योग को भी काफी एन्जॉय कर रहे हैं.

प्रश्न- जर्मनी में योग का आपको क्या प्रभाव देखने को मिल रहे हैं?

उत्तर- जर्मनी में बहुत इनफ्लुएंस है योग का. बर्लिन, म्युनिक, बॉन, फ़्रंकफ़र्ट, हैम्बर्ग, हानोवर जैसे शहरों में मेरे स्टूडेंट्स योग की शिक्षा दे रहे हैं. यहाँ लोग योग को लेकर इतने उत्साही रहते हैं उन्हें योग को अपनी रूटीन लाइफ में अपना लिया है.

प्रश्न- अन्य देशों में योग को लेकर आपके क्या अनुभव है?

उत्तर- मैंने योग सिखाने की शुरुआत स्विट्ज़रलैंड से की थी… इसके अलावा मैंने अमेरिका, बेल्जियम, इटली में भी योग की ट्रेनिंग दी है. जहाँ मुझे एक चीज़ मालूम हुयी कि यहाँ लोग योग को लेकर काफी एन्थुआस्टिक हैं. इन देशों के कई ऑफिस में मेरे students नियम से योग सिखाते हैं. ऑफिस में स्पेशल क्लासेज चलवाई जाती हैं.

प्रश्न- आप पहले भी कई अंतर्राष्ट्रीय प्रोजेक्ट से जुड़े रहे हैं, इसमें योग को जोड़ने के बाद आपका एक्सपीरियंस कैसा रहा?

उत्तर- सोलर इम्पल्स-2 विमान के बारे में आपने सुना ही होगा. इस प्रोजेक्ट पर मैंने काफी समय काम किया. लोग हैरान होते हैं कि विमान उड़ाने से योग का क्या सम्बन्ध लेकिन यहाँ बिना योग के आप यह प्लेन नहीं उड़ा सकते. इस प्रोजेक्ट के दौरान मुझे तीन चरणों में काम करना पड़ा पहली बार प्लेन उड़ने से पहले, दूसरा उड़ान के दौरान और तीसरा लैंडिंग के समय. सोलर इम्पल्स के पायलट बर्ट्रेंड पिकार्ड और परियोजना के सह संस्थापक व सीईओ आंद्रे बोर्शबर्ग को मैंने ऐसे योगासन सिखाए, जिन्हें कॉकपिट में भी किया जा सकता है. यह बहुत छोटा है लेकिन इसे इस तरह डिज़ाइन किया गया है कि इसमें योग करने की जगह है. खुद को सतर्क रखने के लिए पायलट्स ध्यान की तकनीक का इस्तेमाल करते थे. उन्हें इस बात का भी प्रशिक्षण दिया गया की पायलट्स एक साथ नहीं अलग अलग 20-20 मिनट की नींद लेंगे.

इसके साथ ही यूनाइटेड नेशंस के कई दफ्तरों में मैंने स्ट्रेस मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी है. IFRC में काम करने वाले सैनिकों को भी स्ट्रेस मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दी गयी. यंग प्रेसिडेंट आर्गेनाईजेशन द्वारा कई बिज़नस आर्गेनाईजेशन के CEO ने हमसे संपर्क किया और स्ट्रेस मैनेजमेंट और योग पर प्रशिक्षण देने के लिए कहा. हमारे स्टूडेंट्स इन आर्गेनाईजेशन में आज भी योग और स्ट्रेस मैनेजमेंट पर प्रशिक्षण डे रहे हैं.

प्रश्न – क्या योग जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्या को कम करने में कोई भूमिका निभा सकता है?

उत्तर – बिलकुल योग इस समस्या में कमी ला सकेगा. हठयोग इसका एक माध्यम है. ‘हठ’ शब्द की रचना ‘ह’ और ‘ठ’ दो रहस्यमय एवं प्रतीकात्मक अक्षरों से हुई है. ‘ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ और ‘ठ’ का अर्थ ‘चंद्र’ है. योग का अर्थ इन दोनों का संयोजन या एकीकरण है. मतलब आतंरिक सामंजस्य की आवश्यकता है तभी शांति और सद्भाव बना रहेगा. योग पर्यावरण से जोड़ता है आसपास के वातावरण में रहना सिखाता है उसकी शुद्धता से परिचय कराता है. जैसा की नरेन्द्र मोदी ने भी कहा है की योग से जुड़ने के लिए अपनी जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन की ज़रूरत है.

प्रश्न – दिल्ली एनसीआर में स्मॉग का ज़हरीला धुआं फैला हुआ है. ऐसे में बच्चों और बुजुर्गों को क्या करना चाहिए..इस पर कुछ योग टिप्स दीजिये?

उत्तर – देखिये इस मौसम में मैं योग की सलाह तो बिलकुल भी नहीं दूंगा. यहाँ तो वही बात हो जाएगी की आप एक धुएं भरे कमरे में बंद हैं और आप प्राणायाम करके सारा धुआं अपने अन्दर भर लें. तो करना है तो सिर्फ ध्यान कीजिये. बाकी कोई भी एक्सरसाइज, योग, प्राणायाम या सूर्य नमस्कार फिलहाल न करें।

प्रश्न- स्मॉग भी जलवायु परिवर्तन का एक लक्षण है. इससे कैसे बचा जा सकता है?

उत्तर- देखिये यह हमारा दुर्भाग्य है कि जब कोई दुर्घटना घट जाती है तो ही हम जागते हैं. वर्ना हम सभी बेहोशी के आलम में रहते हैं. पर्यावरण से सब दूर होते जा रहे है और आशा करते हैं कि जलवायु परिवर्तन न हो. पर क्या यह संभव है. बिलकुल नहीं…इसके लिए हमें पर्यावरण से जुड़ना होगा.जितना हो सके पेड़ लगायें और कुछ भी ऐसा न करें जिससे पर्यावरण को नुकसान हो. ध्यान रखिये जलवायु परिवर्तन पर तभी नियंत्रण पाया जा सकता है, जब हम पर्यावरण के बारे में सोचे.

Post By Religion World