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जानिए रुद्राक्ष क्या है ?

जानिए रुद्राक्ष क्या हैं ?

  • रुद्राक्ष का महत्त्व, रुद्राक्ष धारण विधि और रुद्राक्ष के ज्योतिषीय लाभ तथा रोगों में रुद्राक्ष का प्रयोग कैसे करें ?

रुद्राक्ष मानव जाति को भगवान के द्वारा एक अमूल्य देन है। सभी मनुष्य रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है। माना जाता है कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों के लिए ही नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है। 

 

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मण को श्वेतवर्ण के रुद्राक्ष, क्षत्रिय को रक्तवर्ण के रुद्राक्ष, वैष्य को मिश्रित रुद्राक्ष तथा शूद्र को कृष्णवर्ण के रुद्राक्ष धारण करने चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने से बड़ा ही पुण्य प्राप्त होता है तथा जो मनुष्य अपने कण्ठ में बत्तीस, मस्तक पर चालीस, दोनों कानों में छः-छः, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है वह साक्षात भगवान नीलकण्ठ के रूप में जाना जाता है। रुद्राक्ष एक खास तरह के पेड़ का बीज है। मान्यता के अनुसार रुद्राक्ष भगवान शिव का अंश है। रुद्राक्ष धारण करना भगवान शिव के दिव्य ज्ञान को प्राप्त करने का साधन माना जाता है।

रुद्राक्ष के पेड़ आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में एक खास ऊंचाई पर, खासकर हिमालय और पश्चिमी घाट सहित कुछ और जगहों पर भी पाए जाते हैं। अफसोस की बात यह है लंबे समय से इन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल भारतीय रेल की पटरी बनाने में होने की वजह से, आज देश में बहुत कम रुद्राक्ष के पेड़ बचे हैं। आज ज्यादातर रुद्राक्ष नेपाल, बर्मा, थाईलैंड या इंडोनेशिया से लाए जाते हैं।

रुद्राक्ष की पहचान कैसे करें ?

रुद्राक्ष हमेशा उन्हीं लोगों से संबंधित रहा है, जिन्होंने इसे अपने पावन कर्तव्य के तौर पर अपनाया। परंपरागत तौर पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे सिर्फ रुद्राक्ष का ही काम करते रहे थे। हालांकि यह उनके रोजी रोटी का साधन भी रहा, लेकिन मूल रूप से यह उनके लिए परमार्थ का काम ही था। जैसे-जैसे रुद्राक्ष की मांग बढ़ने लगी, इसने व्यवसाय का रूप ले लिया। आज, भारत में एक और बीज मिलता है, जिसे भद्राक्ष कहते हैं और जो जहरीला होता है। भद्राक्ष का पेड़ उत्तर प्रदेश, बिहार और आसपास के क्षत्रों में बहुतायत में होता है। पहली नजर में यह बिलकुल रुद्राक्ष की तरह दिखता है।

आप असली और नकली रुद्राक्ष को देखकर आप दोनों में अंतर बता नहीं सकते। अगर आप संवेदनशील हैं, तो अपनी हथेलियों में लेने पर आपको दोनों में अंतर खुद पता चल जाएगा। चूंकि यह बीज जहरीला होता है, इसलिए इसे शरीर पर धारण नहीं करना चाहिए। इसके बावजूद बहुत सी जगहों पर इसे रुद्राक्ष बताकर बेचा जा रहा है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि जब भी आपको रुद्राक्ष लेना हो, आप इसे किसी भरोसेमंद जगह से ही लें।

जब आप रुद्राक्ष धारण करते हैं, तो यह आपके प्रभामंडल (औरा) की शुद्धि करता है। इस प्रभामंडल का रंग बिलकुल सफेद से लेकर बिलकुल काले और इन दोनों के बीच पाए जाने वाले अनगिनत रंगों में से कुछ भी हो सकता है। इसका यह मतलब कतई नहीं हुआ कि आज आपने रुद्राक्ष की माला पहनी और कल ही आपका प्रभामंडल सफेद दिखने लगे!

अगर आप अपने जीवन को शुद्ध करना चाहते हैं तो रुद्राक्ष उसमें मददगार हो सकता है। जब कोई इंसान अध्यात्म के मार्ग पर चलता है, तो अपने लक्ष्य को पाने के लिए वह हर संभव उपाय अपनाने को आतुर रहता है। ऐसे में रुद्राक्ष निश्चित तौर पर एक बेहद मददगार जरिया साबित हो सकता है।

रुद्राक्ष का मानव शरीर पर प्रभाव 

रुद्राक्ष की खासियत यह है कि इसमें एक अनोखे तरह का स्पदंन होता है। जो आपके लिए आप की ऊर्जा का एक सुरक्षा कवच बना देता है, जिससे बाहरी ऊर्जाएं आपको परेशान नहीं कर पातीं। इसीलिए रुद्राक्ष ऐसे लोगों के लिए बेहद अच्छा है जिन्हें लगातार यात्रा में होने की वजह से अलग-अलग जगहों पर रहना पड़ता है। आपने गौर किया होगा कि जब आप कहीं बाहर जाते हैं, तो कुछ जगहों पर तो आपको फौरन नींद आ जाती है, लेकिन कुछ जगहों पर बेहद थके होने के बावजूद आप सो नहीं पाते।

इसकी वजह यह है कि अगर आपके आसपास का माहौल आपकी ऊर्जा के अनुकूल नहीं हुआ तो आपका उस जगह ठहरना मुश्किल हो जाएगा। चूंकि साधु-संन्यासी लगातार अपनी जगह बदलते रहते हैं, इसलिए बदली हुई जगह और स्थितियों में उनको तकलीफ हो सकती है। उनका मानना था कि एक ही स्थान पर कभी दोबारा नहीं ठहरना चाहिए। इसीलिए वे हमेशा रुद्राक्ष पहने रहते थे। आज के दौर में भी लोग अपने काम के सिलसिले में यात्रा करते और कई अलग-अलग जगहों पर खाते और सोते हैं। जब कोई इंसान लगातार यात्रा में रहता है या अपनी जगह बदलता रहता है, तो उसके लिए रुद्राक्ष बहुत सहायक होता है।

रुद्राक्ष का धार्मिक महत्त्व

शिवपुराण, लिंगपुराण, एवं सकन्द्पुराण आदि में इस का विशेष रूप से वर्णन किया हुआ है। ऐसा विश्वास है कि रुद्राक्ष का स्पर्श, दर्शन, उस पर जप करने से, उस की माला को धारण करने से समस्त पापों का और विघ्नों का नाश होता है। परन्तु धारण की उचित विधि और भावना शुद्ध होनी चाहिएष। भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णों के लोगों को विशेष कर शिव भगतो को शिव पार्वती की प्रार्थना और प्रसंता के लिए रुद्राक्ष जरुर धारण करना चाहिए। आंवले के फल के सामान रुद्राक्ष समस्त अरिष्टो का नाश करने वाला होता है। बेर के सामान छोटा दिखने वाला रुद्राक्ष सुख और सौभाग्य कीं वृद्धि करने वाला होता है। रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करने से अनंत गुना फल मिलता है। जिस माला में अपने आप धागा पिरोया जाने योग्य छेद हो वह उत्तम होता है,प्रयत्न कर के धागा पिरोया जाये तो वह माध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष होता है। इसी कारण रुद्राक्ष धारण करने वाला तथा उसकी आराधना करने वाला व्यक्ति समृद्धि, स्वास्थ्य तथा शांति को प्राप्त करने वाला होता है। 

लेकिन फिर भी रुद्राक्ष धारण करते समय निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए: – 

रुद्राक्ष को सिद्ध़ करने के बाद ही धारण करना चाहिए। साथ ही इसे किसी पवित्र दिन में ही धारण करना चाहिए। 

  • प्रातःकाल रुद्राक्ष को धारण करते समय तथा रात में सोने के पहले रुद्राक्ष उतारने के बाद रुद्राक्ष मंत्र तथा रुद्राक्ष उत्पत्ति मंत्र का नौ बार जाप करना चाहिए । 
  • रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को मांसाहारी भोजन का त्याग कर देना चाहिए तथा शराब/एल्कोहल का सेवन भी नहीं करना चाहिए । 
  • ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या और पूर्णमासी आदि पर्वों और पुण्य दिवसों पर रुद्राक्ष अवष्य धारण करना चाहिए । 
  • श्मषान स्थल तथा शवयात्रा के दौरान भी रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही जब किसी के घर में बच्चे का जन्म हो उस स्थल पर भी रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए । 
  • यौन सम्बंधों के समय भी रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए । 
  • स्त्रियों को मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए । 

जानिए किस दिन करें रुद्राक्ष धारण ?

रूद्राक्ष को हमेशा सोमवार के दिन प्रात:काल शिव मन्दिर में बैठकर गंगाजल या कच्चे दूध में धो कर, लाल धागे में अथवा सोने या चांदी के तार में पिरो कर धारण किया जा सकता है।

रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त– मेष  संक्रांति ,पूर्णिमा,अक्षय त्रितय,दीपावली,चेत्र शुकल प्रतिपदा,अयन परिवर्तन काल ग्रहण काल, गुरु पुष्य ,रवि पुष्य,द्वि और त्रिपुष्कर योग में रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापों का नाश होता है।

यदि किसी कारणवश रुद्राक्ष के विशेषरुद्राक्ष मंत्रों से धारण न कर सके तो इस सरल विधि का प्रयोग करके धारणकर लें। रुद्राक्ष के मनकों को शुद्ध लाल धागे में माला तैयार करने के बादपंचामृत (गंगाजल मिश्रित रूप से) और पंचगव्य को मिलाकर स्नान करवाना चाहिए और प्रतिष्ठा के समय ॐ नमः शिवाय इस पंचाक्षर मंत्र को पढ़नाचाहिए। उसके पश्चात पुनः गंगाजल में शुद्ध करके निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए चंदन, बिल्वपत्र, लालपुष्प, धूप, दीप द्वारा पूजन करके अभिमंत्रित करे और “ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात” || इससे अभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए।

शिवपूजन, मंत्र, जप, उपासना आरंभ करने से पूर्व ऊपर लिखी विधि के अनुसार रुद्राक्ष माला को धारण करने एवंएक अन्य रुद्राक्ष की माला का पूजन करके जप करना चाहिए। जपादि कार्यों में छोटे और धारण करने में बड़े रुद्राक्षों का ही उपयोग करें। तनाव से मुक्ति हेतु 100 दानों की, अच्छी सेहत एवं आरोग्य के लिए 140 दानों की, अर्थ प्राप्ति के लिए 62 दानों की तथा सभी कामनाओं की पूर्ति हेतु 108 दानों की माला धारण करें। जप आदि कार्यों में 108 दानों की माला ही उपयोगी मानी गई है। अभीष्ट की प्राप्ति के लिए 50 दानों की माला धारण करें। द्गिाव पुराण के अनुसार 26 दानों की माला मस्तक पर, 50 दानों की माला हृदय पर, 16 दानों की माला भुजा पर तथा 12 दानों की माला मणिबंध पर धारण करनी चाहिए।

पंडित दयानन्द शास्त्री  के अनुसार जिस रुद्राक्ष माला से जप करते हों, उसे धारण नहीं करें। इसी प्रकार जो माला धारण करें, उससे जप न करें। दूसरों के द्वारा उपयोग में लाए गए रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला को प्रयोग में न लाएं।

रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा कर शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए।

ग्रहणे विषुवे चैवमयने संक्रमेऽपि वा।

दर्द्गोषु पूर्णमसे च पूर्णेषु दिवसेषु च। 

रुद्राक्षधारणात् सद्यः सर्वपापैर्विमुच्यते॥

ग्रहण में, विषुव संक्रांति (मेषार्क तथा तुलार्क) के दिनों, कर्क और मकर संक्रांतियों के दिन, अमावस्या, पूर्णिमा एवं पूर्णा तिथि को रुद्राक्ष धारण करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

मद्यं मांस च लसुनं पलाण्डुं द्गिाग्रमेव च।

श्लेष्मातकं विड्वराहमभक्ष्यं वर्जयेन्नरः॥ (रुद्राक्षजाबाल-17)

रुद्राक्ष धारण करने वाले को यथासंभव मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन, निसोडा और विड्वराह (ग्राम्यशूकर) का परित्याग करना चाहिए। सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी प्रकृति के मनुष्य वर्ण, भेदादि के अनुसार विभिन्न प्रकर के रुद्राक्ष धारण करें।

रुद्राक्ष को शिवलिंग अथवा शिव-मूर्ति के चरणों से स्पर्द्गा कराकर धारण करें। रुद्राक्ष हमेद्गाा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों (यथा कंठ, गले, मस्तक, बांह, भुजा) में धारण करें, यद्यपि शास्त्रों में विशेष परिस्थिति में विद्गोष सिद्धि हेतु कमर में भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है। रुद्राक्ष अंगूठी में कदापि धारण नहीं करें, अन्यथा भोजन-द्गाौचादि क्रिया में इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी।

रुद्राक्ष पहन कर श्मद्गाान या किसी अंत्येष्टि-कर्म में अथवा प्रसूति-गृह में न जाएं। स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें। रुद्राक्ष धारण कर रात्रि शयन न करें।

रुद्राक्ष में अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं जो शरीर में विद्गोष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने में सक्षम होती हैं। इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की दिव्य औषधि कहा गया है। अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का विद्गोष खयाल रखें। शुष्क होने पर इसे तेल में कुछ समय तक डुबाकर रखें।

रुद्राक्ष स्वर्ण या रजत धातु में धारण करें। इन धातुओं के अभाव में इसे ऊनी या रेशमी धागे में भी धारण कर सकते हैं। अधिकतर रुद्राक्ष यद्यपि लाल धागे में धारण किए जाते हैं, किंतु एक मुखी रुद्राक्ष सफेद धागे, सात मुखी काले धागे और ग्यारह, बारह, तेरह मुखी तथा गौरी-शंकर रुद्राक्ष पीले धागे में भी धारण करने का विधान है।

रूद्राक्ष को देखने भर से ही लाखों कष्ट दूर हो जाते हैं और इसे धारण करने पर करोडों लाभ प्राप्त होते हैं तथा इसे पहनकर मंत्र जाप करने से यह और भी ज्यादा प्रभावशाली होता है.

रूद्राक्ष वर्णन – जो रूद्राक्ष आंवले के आकार जितना बड़ा होता है वह रूद्राक्ष अच्छा होता है, जो रूद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह मध्यम प्रकार का माना जाता है. जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है। यह रूद्राक्ष माला के आकार के बारे में मेरा विचार है.

इसके बाद वह कहते हैं कि ब्राह्मण सफेद रूद्राक्ष है. लाल एक क्षत्रिय है. पीला एक वैश्य है और काले रंग का रूद्राक्ष एक शूद्र है.इसलिए, एक ब्राह्मण को सफेद रूद्राक्ष , एक क्षत्रिय को लाल, एक वैश्य को पीला और एक शूद्र को काला रूद्राक्ष धारण करना चाहिए।

उन रूद्राक्ष-मोती को उपयोग में लाना चाहिए जो सुन्दर, मजबूत, बड़ा, तथा कांटेदार हो और उन रूद्राक्ष को नहीं लेना चहिए जो कहीं से टूटा हो या उस पर कीडा लगा है या कांटे बिना हो उचित नहीं होता, जिस रूद्राक्ष में प्रकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें खुद छेद किया जाए वह अच्छा नहीं होता, भगवान शिव के भक्त को रूद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए।

रुद्राक्ष धारण करने के लिए शुभ मुहूर्त या दिन का चयन कर लेना चाहिए। इस हेतु सोमवार उत्तम है। धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के तेल में डुबाकर रखें। धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें। फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।

तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या शास्त्रोक्त बीज मंत्र का 21, 11, 5 अथवा कम से कम 1 माला जप करें। फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र क्क नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र क्क तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का 1 माला जप करके रुद्राक्ष-धारण करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें। रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा सात्विक अल्पाहार लें।

विशेष : उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।

विशेष सावधानी— रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए. मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना हितकर होता है. आत्मिक शुद्धता के द्वारा ही रुद्राक्ष के लाभ को प्राप्त किया जा सकता है. रुद्राक्ष मन को पवित्र कर विचारों को पवित्र करता है

रुद्राक्ष के फायदे

रुद्राक्ष के संबंध में एक और बात महत्वपूर्ण है। खुले में या जंगलों में रहने वाले साधु-संन्यासी अनजाने सोत्र का पानी नहीं पीते, क्योंकि अक्सर किसी जहरीली गैस या और किसी वजह से वह पानी जहरीला भी हो सकता है। रुद्राक्ष की मदद से यह जाना जा सकता है कि वह पानी पीने लायक है या नहीं। रुद्राक्ष को पानी के ऊपर पकड़ कर रखने से अगर वह खुद-ब-खुद घड़ी की दिशा में घूमने लगे, तो इसका मतलब है कि वह पानी पीने लायक है। अगर पानी जहरीला या हानि पहुंचाने वाला होगा तो रुद्राक्ष घड़ी की दिशा से उलटा घूमेगा। इतिहास के एक खास दौर में, देश के उत्तरी क्षेत्र में, एक बेहद बचकानी होड़ चली। 

वैदिककाल में सिर्फ एक ही भगवान को पूजा जाता था – रुद्र यानी शिव को। समय के साथ-साथ वैष्णव भी आए। अब इन दोनों में द्वेष भाव इतना बढ़ा कि वैष्णव लोग शिव को पूजने वालों, खासकर संन्यासियों को अपने घर बुलाते और उन्हें जहरीला भोजन परोस देते थे। ऐसे में संन्यासियों ने खुद को बचाने का एक अनोखा तरीका अपनाया। काफी शिव भक्त आज भी इसी परंपरा का पालन करते हैं। अगर आप उन्हें भोजन देंगे, तो वे उस भोजन को आपके घर पर नहीं खाएंगे, बल्कि वे उसे किसी और जगह ले जाकर, पहले उसके ऊपर रुद्राक्ष रखकर यह जांचेंगे कि भोजन खाने लायक है या नहीं।

रुद्राक्ष माला रुद्राक्ष अपने विभिन्न गुणों के कारण व्यक्ति को दिया गया ‘प्रकृति का अमूल्य उपहार है’ मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के नेत्रों से निकले जलबिंदुओं से हुई है. अनेक धर्म ग्रंथों में रुद्राक्ष के महत्व को प्रकट किया गया है जिसके फलस्वरूप रुद्राक्ष का महत्व जग प्रकाशित है. रुद्राक्ष को धारण करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं इसे धारण करके की गई पूजा हरिद्वार, काशी, गंगा जैसे तीर्थस्थलों के समान फल प्रदान करती है. रुद्राक्ष की माल द्वारा मंत्र उच्चारण करने से फल प्राप्ति की संभावना कई गुना बढ़ जाती है.इसे धारण करने से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. रुद्राक्ष की माला अष्टोत्तर शत अर्थात 108 रुद्राक्षों की या 52 रुद्राक्षों की होनी चाहिए अथवा सत्ताईस दाने की तो अवश्य हो इस संख्या में इन रुद्राक्ष मनकों को पहना विशेष फलदायी माना गया है. शिव भगवान का पूजन एवं मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से करना बहुत प्रभावी माना गया है तथा साथ ही साथ अलग-अलग रुद्राक्ष के दानों की माला से जाप या पूजन करने से विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति होती है.

माला में रुद्राक्ष की संख्या

माला में रुद्राक्ष के मनकों की संख्या उसके महत्व का परिचय देती है. भिन्न-भिन्न संख्या मे पहनी जाने वाली रुद्राक्ष की माला निम्न प्रकार से फल प्रदान करने में सहायक होती है जो इस प्रकार है-

रुद्राक्ष के सौ मनकों की माला धारण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

रुद्राक्ष के एक सौ आठ मनकों को धारण करने से समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. इस माला को धारण करने वाला अपनी पीढ़ियों का उद्घार करता है

रुद्राक्ष के एक सौ चालीस मनकों की माला धारण करने से साहस, पराक्रम और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है.

रुद्राक्ष के बत्तीस दानों की माला धारण करने से धन, संपत्ति एवं आय में वृद्धि होती है.

रुद्राक्ष के 26 मनकों की माला को सर पर धारण करना चाहिए

रुद्राक्ष के 50 दानों की माला कंठ में धारण करना शुभ होता है.

रुद्राक्ष के पंद्रह मनकों की माला मंत्र जप तंत्र सिद्धि जैसे कार्यों के लिए उपयोगी होती है. 

रुद्राक्ष के सोलह मनकों की माला को हाथों में धारण करना चाहिए.

रुद्राक्ष के बारह दानों को मणिबंध में धारण करना शुभदायक होता है.

रुद्राक्ष के 108, 50 और 27 दानों की माला धारण करने या जाप करने से पुण्य की प्राप्ति होती है.

रुद्राक्ष की माला महत्व 

रुद्राक्ष की माला को धारण करने पर इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है कि कितने रुद्राक्ष की माला धारण कि जाए. क्योंकि रुद्राक्ष माला में रुद्राक्षों की संख्या उसके प्रभाव को परिलक्षित करती है. रुद्राक्ष धारण करने से पापों का शमन होता है. आंवले के सामान वाले रुद्राक्ष को उत्तम माना गया है. सफेद रंग का रुद्राक्ष ब्राह्मण को, रक्त के रंग का रुद्राक्ष क्षत्रिय को, पीत वर्ण का वैश्य को और कृष्ण रंग का रुद्राक्ष शुद्र को धारण करना चाहिए.

रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को लहसुन, प्याज तथा नशीले भोज्य पदार्थों तथा मांसाहार का त्याग करना चाहिए. सक्रांति, अमावस, पूर्णिमा और शिवरात्रि के दिन रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है.

सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष को पहन सकते हैं. रुद्राक्ष का उपयोग करने से व्यक्ति भगवान शिव के आशीर्वाद को पाता है. व्यक्ति को दिव्य-ज्ञान की अनुभूति होती है. व्यक्ति को अपने गले में बत्तीस रुद्राक्ष, मस्तक पर चालीस रुद्राक्ष, दोनों कानों में 6,6 रुद्राक्ष, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है, वह साक्षात भगवान शिव को पाता है.

रुद्राक्ष माला एक कवच की तरह

रुद्राक्ष नकारात्मक ऊर्जा के बचने के एक असरदार कवच की तरह काम करता है। कुछ लोग नकारात्मक शक्ति का इस्तेमाल करके दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं। यह अपने आप में एक अलग विज्ञान है। अथर्व वेद में इसके बारे में विस्तार से बताया गया है कि कैसे ऊर्जा को अपने फायदे और दूसरों के अहित के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। अगर कोई इंसान इस विद्या में महारत हासिल कर ले, तो वह अपनी शक्ति के प्रयोग से दूसरों को किसी भी हद तक नुकसान पहुंचा सकता है, यहां तक कि दूसरे की मृत्यु भी हो सकती है। इन सभी स्थितियों में रुद्राक्ष कवच की तरह कारगर हो सकता है।

आपको शायद ऐसा लगता हो कि कोई मुझे क्यों नुकसान पहुंचाएगा! लेकिन यह जरूरी नहीं कि जान बूझकर आपको ही लक्ष्य बनाया गया हो। मान लीजिए आपके पास बैठे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही हो, लेकिन वह आदमी उस ऊर्जा के प्रति ग्रहणशील नहीं है।

गुरु एक ही रुद्राक्ष को अलग-अलग लोगों के लिए अलग-तरह से जागृत करता है। परिवार में रहने वाले लोगों के लिए रुद्राक्ष अलग तरह से प्रतिष्ठित किए जाते हैं। अगर आप ब्रह्मचारी या संन्यासी हैं, तो आपके रुद्राक्ष को दूसरे तरीके से ऊर्जित किया जाएगा। ऐसा रुद्राक्ष सांसारिक जीवन जी रहे लोगों को नहीं पहनना चाहिए।

रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर 21-मुखी तक होते हैं, जिन्हें अलग-अलग प्रयोजन के लिए पहना जाता है। इसलिए बस किसी भी दुकान से कोई भी रुद्राक्ष खरीदकर पहन लेना उचित नहीं होता। हालांकि पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुरक्षित विकल्प है जो हर किसी – स्त्री, पुरुष, बच्चे, हर किसी के लिए अच्छा माना जाता है। यह सेहत और सुख की दृष्टि से भी फायदेमंद हैं, जिससे रक्तचाप नीचे आता है और स्नायु तंत्र तनाव मुक्त और शांत होता है।

रूद्राक्ष के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक धारियां खिंची होती हैं। इन्हें मुख कहा जाता है। इन्हीं धारियों के आधार पर एकमुखी से सत्ताईस मुखी तक रूद्राक्ष फलते हैं, जिनका अलग-अलग महत्व व उपयोगिता है।

जिस रूद्राक्ष में स्वयं छिद्र होता है, चाहे वह किसी भी मुख का हो, अपने गुण-धर्म के आधार पर श्रेष्ठ होता है। रुद्राक्ष धारण करने से कभी किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होती है अत: हमारे धर्म एवं हमारी आस्था में रूद्राक्ष का स्थान रत्नों से भी उच्च है।

तीन तरह के विशेष रुद्राक्ष

गौरी शंकर रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष प्राकृतिक रुप से जुडा़ होता है शिव व शक्ति का स्वरूप माना गया है। इस रुद्राक्ष को सर्वसिद्धिदायक एवं मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है। गौरी शंकर रुद्राक्ष दांपत्य जीवन में सुख एवं शांति लाता है।

गणेश रुद्राक्ष : इस रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरुप माना जाता है. इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है। यह रुद्राक्ष विद्या प्रदान करने में लाभकारी है विद्यार्थियों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत लाभदायक है।

गौरीपाठ रुद्राक्ष : यह रुद्राक्ष त्रिदेवों का स्वरूप है। इस रुद्राक्ष द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है।

जानिए 21 तरह के विशेष रूद्राक्ष को

1. एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात शिव का रूप माना जाता है। इस एकमुखी रुद्राक्ष द्वारा सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तथा भगवान आदित्य का आशिर्वाद भी प्राप्त होता है।

2. दो मुखी रुद्राक्ष या द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति का स्वरुप माना जाता है। इसमें अर्धनारीश्व का स्वरूप समाहित है तथा चंद्रमा की शीतलता प्राप्त होती है।

3. तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि देव तथा त्रिदेवों का स्वरुप माना गया है। तीन मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा पापों का शमन होता है।

4. चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म स्वरुप होता है। इसे धारण करने से नर हत्या जैसा जघन्य पाप समाप्त होता है। चतुर्मुखी रुद्राक्ष धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष को प्रदान करता है।

5. पांच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का स्वरूप माना जाता है। यह पंच ब्रह्म एवं पंच तत्वों का प्रतीक भी है। पंचमुखी को धारण करने से अभक्ष्याभक्ष्य एवं स्त्रीगमन जैसे पापों से मुक्ति मिलती है. तथा सुखों को प्राप्ति होती है।

6. छह मुखी रुद्राक्ष को साक्षात कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है। इसे शत्रुंजय रुद्राक्ष भी कहा जाता है यह ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति तथा एवं संतान देने वाला होता है।

7. सात मुखी रुद्राक्ष या सप्तमुखी रुद्राक्ष दरिद्रता को दूर करने वाला होता है। इस सप्तमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।

8. आठ मुखी रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरूप माना जाता है। अष्टमुखी रुद्राक्ष राहु के अशुभ प्रभावों से मुक्ति दिलाता है तथा पापों का क्षय करके मोक्ष देता है।

9. नौ मुखी रुद्राक्ष को भैरव का स्वरूप माना जाता है। इसे बाईं भुजा में धारण करने से गर्भहत्या जेसे पाप से मुक्ति मिलती है। नौमुखी रुद्राक्ष को यम का रूप भी कहते हैं। यह केतु के अशुभ प्रभावों को दूर करता है।

10. दस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप कहा जाता है। दस मुखी रुद्राक्ष शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है। इसे धारण करने से समस्त भय समाप्त हो जाते हैं।

11. एकादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का रूप माना जाता है। एकादश मुखी रुद्राक्ष को भगवान हनुमान जी का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने से ज्ञान एवं भक्ति की प्राप्ति होती है।

12. द्वादश मुख वाला रुद्राक्ष बारह आदित्यों का आशीर्वाद प्रदान करता है। इस बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान यह फल प्रदान करता है।

13. तेरह मुखी रुद्राक्ष को इंद्र देव का प्रतीक माना गया है। इसे धारण करने पर व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।

14. चौदह मुखी रुद्राक्ष भगवान हनुमान का स्वरूप है। इसे सिर पर धारण करने से व्यक्ति परमपद को पाता है।

15. पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पशुपतिनाथ का स्वरूप माना गया है। यह संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।

16. सोलह मुखी रुद्राक्ष विष्णु तथा शिव का स्वरूप माना गया है। यह रोगों से मुक्ति एवं भय को समाप्त करता है।

17. सत्रह मुखी रुद्राक्ष राम-सीता का स्वरूप माना गया है। यह रुद्राक्ष विश्वकर्माजी का प्रतीक भी है। इसे धारण करने से व्यक्ति को भूमि का सुख एवं कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का मार्ग प्राप्त होता है।

18. अठारह मुखी रुद्राक्ष को भैरव एवं माता पृथ्वी का स्वरूप माना गया है। इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है.

19. उन्नीस मुखी रुद्राक्ष नारायण भगवान का स्वरूप माना गया है यह सुख एवं समृद्धि दायक होता है।

20. बीस मुखी रुद्राक्ष को जनार्दन स्वरूप माना गया है। इस बीस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि का भय नहीं सताता।

21. इक्कीस मुखी रुद्राक्ष रुद्र स्वरूप है तथा इसमें सभी देवताओं का वास है। इसे धारण करने से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है।

रुद्राक्ष खरीदते समय सावधानियां

रुद्राक्ष की पहचान रुद्राक्ष एक अमूल्य मोती है जिसे धारण करके या जिसका उपयोग करके व्यक्ति अमोघ फलों को प्राप्त करता है। भगवान शिव का स्वरूप रुद्राक्ष जीवन को सार्थक कर देता है इसे अपनाकर सभी कल्याणमय जीवन को प्राप्त करते हैं.रुद्राक्ष की अनेक प्रजातियां तथा विभिन्न प्रकार उपल्बध हैं, परंतु रुद्राक्ष की सही पहचान कर पाना एक कठिन कार्य है. आजकल बाजार में सभी असली रुद्राक्ष को उपल्बध कराने की बात कहते हैं किंतु इस कथन में कितनी सच्चाई है इस बात का अंदाजा लगा पाना एक मुश्किल काम है. लालची लोग रुद्राक्ष पर अनेक धारियां बनाकर उन्हें बारह मुखी या इक्कीस मुखी रुद्राक्ष कहकर बेच देते हैं।

कभी-कभी दो रुद्राक्ष को जोड़कर एक रुद्राक्ष जैसे गौरी शंकर या त्रिजुटी रुद्राक्ष तैयार कर दिए जाता हैं. इसके अतिरिक्त उन्हें भारी करने के लिए उसमें सीसा या पारा भी डाल दिया जाता है, तथा कुछ रुद्राक्षों में हम सर्प, त्रिशुल जैसी आकृतियां भी बना दी जाती हैं.

रुद्राक्ष की पहचान को लेकर अनेक भ्रातियां भी मौजूद हैं. जिनके कारण आम व्यक्ति असल रुद्राक्ष की पहचान उचित प्रकार से नहीं कर पाता है एवं स्वयं को असाध्य पाता है. असली रुद्राक्ष का ज्ञान न हो पाना तथा पूजा ध्यान में असली रुद्राक्ष न होना पूजा व उसके प्रभाव को निष्फल करता है. अत: ज़रूरी है कि पूजन के लिए रुद्राक्ष का असली होना चाहिए.

रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, और यह रुद्राक्ष के जैसा हो दिखाई देता है इसलिए कुछ लोग रुद्राक्ष के स्थान पर इसे भी नकली रुद्राक्ष के रुप में बेचते हैं. भद्राक्ष दिखता तो रुद्राक्ष की भांति ही है किंतु इसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते.

असली रुद्राक्ष की पहचान के कुछ तरीके बताए जाते हैं जो इस प्रकार हैं….

रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा.

रुद्राक्ष को काटने पर यदि उसके भीतर उतने ही घेर दिखाई दें जितने की बाहर हैं तो यह असली रुद्राक्ष होगा. यह परीक्षण सही माना जाता है,किंतु इसका नकारात्मक पहलू यह है कि रुद्राक्ष नष्ट हो जाता है.

रुद्राक्ष की पहचान के लिए उसे किसी नुकिली वस्तु द्वारा कुरेदें यदि उसमे से रेशा निकले तो समझें की रुद्राक्ष असली है. 

दो असली रुद्राक्षों की उपरी सतह यानि के पठार समान नहीं होती किंतु नकली रुद्राक्ष के पठार समान होते हैं.

एक अन्य उपाय है कि रुद्राक्ष को पानी में डालें अगर यह डूब जाए, तो असली होगा. यदि नहीं डूबता तो नकली लेकिन यह जांच उपयोगी नहीं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है. 

एक अन्य उपयोग द्वारा रुद्राक्ष के मनके को तांबे के दो सिक्कों के बीच में रखा जाए, तो थोड़ा सा हिल जाता है

क्योंकि रुद्राक्ष में चुंबकत्व होता है जिस की वजह से ऐसा होता है. 

कहा जाता है कि दोनो अंगुठों के नाखूनों के बीच में रुद्राक्ष को रखें यदि वह घुमता है तो असली होगा अन्यथा नकली परंतु यह तरीका भी सही नही है.

एकमुखी रुद्राक्ष को ध्यानपूर्वक देखने पर उस पर त्रिशूल या नेत्र के चिन्ह का आभास होता है. रुद्राक्ष के दानों को तेज धूप में काफी समय तक रखने से अगर रुद्राक्ष पर दरार न आए या वह टूटे नहीं तो असली माने जाते हैं. 

रुद्राक्ष को खरीदने से पहले कुछ मूलभूत बातों का अवश्य ध्यान रखें जैसे की रुद्राक्ष में किडा़ न लगा हो, टूटा-फूटा न हो, पूर्ण गोल न हो, जो रुद्राक्ष छिद्र करते हुए फट जाए इत्यादि रुद्राक्षों को धारण नहीं करना चाहिए .

1-जो रुद्राक्ष कीड़ो ने दूषित किया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दानेन हो, जो वरणयुक्त हो तथा पूरा-पूरा गोल न हो, इन पांच प्रकार के रुद्राक्षों को धारण नहीं करना चाहिए।

2-जो रुद्राक्ष छिद्र करते हुए फट गये हो और जो शुद्ध रुद्राक्ष जैसे न हों] उन्हें धारण न करें।

3-धारण करने से पहले परीक्षण कर लें कि रुद्राक्ष असली है या नकली।नकली रुद्राक्ष पानी में तैरने लगेगा और असली रुद्राक्ष पानी में डूब जाएगा।

4-जो रुद्राक्ष गोल, चिकना, मोटा, कांटेदार हो, उसे ही खरीदना चाहिए।

5-एकमुखी रुद्राक्ष को किसी पीतल के बर्तन में रख दें। उसके ऊपर से 108 बिल्वपत्र लेकर चंदन से ओम नमः शिवाय मंत्र लिखकर सबसे नीचे रुद्राक्ष रखकर रात्रि में रख दें। प्रातः रुद्राक्ष बिल्वपत्र के ऊपर विराजित होगा तो वह शुद्ध रुद्राक्ष होगा।

6-एकमुखी रुद्राक्ष को ध्यानपूर्वक देखने पर त्रिशूल या नेत्र का निशान कहीं न कहीं अवश्य ही दिखाई देता है।

7-रुद्राक्ष के दानों को तेज धूप में छः घंटे तक रखने से अगर रुद्राक्ष चट कें (टूटे नहीं) तो असली माने जाते हैं।

8-रुद्राक्ष धारण करने पर मद्य, मांस, लहसुन, प्याज, सहजन, लिसोडा और विड्वराह (ग्राम्यसूयकर) इन पदार्थो का परित्याग करना चाहिए।

9-जप आदि कार्यो में छोटा रुद्राक्ष ही विशेष फलदायक होता है और बड़ा रुद्राक्ष रोगों पर विशेष फलदायी माना जाता है ।

10-रुद्राक्ष शिवलिंग से अथवा शिव प्रतिमा से स्पर्श कराकर धारण करना चाहिए।

11-रुद्राक्ष धारण करने के उपरांत सुबह-सायं भगवान शंकर का पूजन और ओम नमः शिवाय मंत्र का जप अवश्य करना चाहिए।

रुद्राक्ष के आकार और भेद

रुद्राक्ष को धारण करना या इसका उपयोग चिंता, कष्ट, दु:ख और पापों का अंत करने वाला माना गया है. शास्त्रों के अनुसार रुद्राक्ष का असर और प्रभाव उसके रूप, रंग, आकार पर बहुत निर्धारित करता है. रुद्राक्ष चार रंग में प्राप्त होता है सफेद, लाल, पीला और काला. इसी प्रकार वर्ण के आधार पर भी रूद्राक्ष को विभाजित किया गया है. रुद्राक्ष का आकार उसके प्रभावों को सत्यापित करता है. आंवले के आकार जितना बड़ा रुद्राक्ष अच्छा होता है, जो रुद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह मध्यम प्रकार का माना जाता है. जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है. जिस रुद्राक्ष में प्राकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें छेद किया जाए वह अच्छा नहीं होता, भगवान शिव के भक्त को रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए.

रुद्राक्ष के एक हजार मोती पहनना लाभदायक होता है. भक्त, जब सिर पर रूद्राक्ष को धारण करे तो उसे इष्ठ मंत्र जपना चाहिए , जब रुद्राक्ष को गले में पहने तो “तात्पुरषा मंत्र” जपना चाहिए और जब इसे वक्ष और हाथ पर धारण करें तो अघोर मंत्र को जपना चाहिए, यह कल्याणकारी होता है.

रुद्राक्ष जाबालोपनिषद में संतकुमार जी कालाग्निरूद्र से पूछते हैं कि “हे भगवान! मुझे रूद्राक्ष पहनने के लिए नियमों को बताएँ. और उसी समय निदाघ , दत्तात्रेय, कात्यायन, भारद्वाज, कपिला, वशिष्ठ और पिप्प्लाद ऋषि वहां पहुंचते हैं और वह भी कालाग्निरूद्र से रूद्राक्ष को धारण करने के नियम को जानने की इच्छा प्रकट करते हैं. तब कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं कि, रुद्र की अक्षि (आँखें) से उत्पन्न होने के कारण इसे रुद्राक्ष कहा गया. इस रूद्राक्ष को छूने मात्र से ही कई पाप क्षय हो जाते हैं और इस रूद्राक्ष को धारण करने पर इसका फल करोड़ों गुना बढ़ जाता है.

रुद्राक्ष का आकार विभाजन

रुद्राक्ष को उसके आकार के आधार पर तीन श्रेणीयों में बांटा गया है….

प्रथम श्रेणी का रुद्राक्ष- प्रथम श्रेणी का रुद्राक्ष उत्तम रुद्राक्ष कहा जाता है. इस रुद्राक्ष का आकार आंवले के फल के आकार के समान होता है. अत: इस प्रकार का रुद्राक्ष उत्तम श्रेणी में आता है.

द्वितीय श्रेणी रुद्राक्ष- दूसरी श्रेणी में आता है मध्यम दर्जे का रुद्राक्ष. जो रुद्राक्ष आकार में बेर के समान दिखाई दे वह रुद्राक्ष मध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष कहा जाता है.

तृतीय श्रेणी का रुद्राक्ष- तीसरे स्थान में रखा गया रुद्राक्ष निम्न श्रेणी के रुद्राक्ष में गिना जाता है. इसे निम्न श्रेणी का रुद्राक्ष कहते हैं. इस रुद्राक्ष का आकार चने के बराबर होता है.

रुद्राक्ष के आकार का महत्व

सभी रुद्राक्ष ही पापों को नष्ट कर शिव कृपा देने वाले होते हैं किंतु यदि उन्हें नियमानुसार धारण किया जाए तो वह चमत्कारी प्रभाव छोड़ते हैं. सही आकार, ठोस, रुद्राक्ष पहनना चाहिए. सुख-शांति एवं अच्छे भाग्य के लिए बेर के आकार का रुद्राक्ष अनुकूल माना गया है. पापों तथा अनिष्ट को दूर करने के लिए आंवले के आकार का रुद्राक्ष अच्छा माना जाता है. टूटा हुआ ,कीड़े लगा रुद्राक्ष उपयोग में नहीं लाना चाहिए. रंग, रुप, आकार के आधार पर रुद्राक्ष को एक से इक्कीस मुखी रुद्राक्ष का महत्व बताया गया है जिन्हें धारण करने से विभिन्न फलों की प्राप्ति होती है.

रुद्राक्ष वर्ण और रंग के अनुसार

रुद्राक्ष के विषय में अनेक बातों का विचार उसके महत्व को व्यक्त करता है. रुद्राक्ष एक बेहतरीन रत्न है जो अनेक प्रकार के लाभों को दर्शाता है रुद्राक्ष द्वारा व्यक्ति का मन अति पावन रुप को पाता है तथा इसी के द्वारा मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है. इस कारण रुद्राक्ष के फ़ायदों को अनेक प्रकार से उल्लेखित किया जा सकता है. यह रुद्राक्ष सैकड़ों समस्याओं का सरल उपाय है तथा साथ ही साथ यह रुद्राक्ष जीवन के विभिन्न प्रभावों को प्रकट करता है. रुद्राक्ष के विषय में इस बात को भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि रुद्राक्ष को धारण करने के क्या नियम है तथा किस रुद्राक्ष को कौन धारण कर सकता है. यदि देखा जाए तो इसके मूलभूत तत्वों का बखान विस्तार पूर्वक किया जा सकता है. धार्मिक क्षेत्र में रुद्राक्ष बहुत प्रसिद्ध है और अनेक प्रकार के जप एवं मंत्र सिद्धि में इनका उपयोग किया जाता है. रुद्राक्ष अपने विशेष गुणों के कारण शिवतुल्य और मंगलकारी कहा जाता है.

विभिन्न रंगों में रुद्राक्ष 

रुद्राक्ष विभिन्न रंगों में प्राप्त होता है. प्रथम श्रेणी का रुद्राक्ष कत्थई रंग, चाकलेटी रंग या छुहारे से भी गहरे रंग का होता है. इसकी के साथ गहरे गुलाबी रंग का भी रुद्राक्ष पाया जाता है. 

द्वितीय श्रेणी का रुद्राक्ष हल्के चॉकलेटी रंग का, मध्यम कत्थई रंग का और बादाम की गिरी के जैसे रंग सा होता है. इसमें मटमैला रंग भी देखा जा सकता है. 

तृतीय श्रेणी में रुद्राक्ष का रंग सफेदी लिए हुए होता है अथवा भूरे रंग का होता है. सर्वप्रथम इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि रुद्राक्ष चार रंग का होता है–श्वेत,रक्त, पीत और कृष्ण वर्ण (काला रंग) का रुद्राक्ष. इसी रंग भेद से रुद्राक्ष धारण करने की विधि भी बताई गई है जिसके अनुसार रुद्राक्ष को धारण करना अधिक लाभदायक माना जाता है. 

वर्ण के अनुसार रुद्राक्ष का विभाजन हमारे यहां चार वर्णों में समुदायों का विभाजन हुआ इन चारों समुदायों में रुद्राक्ष को धारण करने के विषय में मुख्य बातों को व्यक्त किया गया. शास्त्रों में अलग – अलग वर्ण के लिए रुद्राक्ष का निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार है…

ब्राह्मण वर्ण – प्रथम स्थान पर आते हैं ब्राह्मण, ब्राह्मण को श्वेत अर्थात सफेद रंग के रुद्राक्ष धारण करने को कहा गया है.

क्षत्रिय वर्ण – दूसरे स्थान पर आते हैं क्षत्रिय इन लोगों के लिए रक्त समान वर्ण के अर्थात गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रिओं के लिये हित कर कहा गया है.

वैश्य वर्ण – तीसरे स्थान पर वैश्य रहे इनके लिए पीत वर्ण का अर्थात पीले रंग का रुद्राक्ष धारण करना आवश्यक बताया गया है और साथ ही साथ इस रुद्राक्ष के अनेक लाभकारी गुणों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है.

शूद्र वर्ण – चौथे स्थान पर आते हैं शूद्र, इन्हें कृष्ण वर्ण का रुद्राक्ष धारण करने को कहा जाता है इस प्रकार रुद्राक्ष को धारण करना रुद्राक्ष के फलों में वृद्धि करता है. इनसे सभी मुख वाले रुद्राक्षों का महत्व परिलक्षित होता है.

रुद्राक्ष के लिए धार्मिक ग्रंथों में विस्तार पूर्वक व्यक्त किया गया है. इसको धारण कैसे किया जा या इसे कौन धारण कर सकता है इन सभी बातों को सरल माध्यम द्वारा अभिव्यक्त किया गया है. इसी प्रकार ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और संन्यासी के लिए भी नियम पूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित माना गया है. समाज के विभिन्न वर्णों ने इस रुद्राक्ष को नियमानुसार ग्रहण किया तथा इसके प्रभाव को अपने में महसूस किया ।

विभिन्न राशियों के लिए रुद्राक्ष 

रुद्राक्ष अपने अनेकों गुणों के कारण व्यक्ति को दिया प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के नेत्रों से निकले जलबिंदु से हुई है. अनेक धर्म ग्रंथों में रुद्राक्ष के महत्व को प्रकट किया गया है जिसके फलस्वरूप रुद्राक्ष के महत्व से जग प्रकाशित है. इसे धारण करने से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. अत: रुद्राक्ष को यदि राशि के अनुरुप धारन किया जाए तो यह ओर भी अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है. रुद्राक्ष को राशि, ग्रह और नक्षत्र के अनुसार धारण करने से उसकी फलों में कई गुणा वृद्धि हो जाती है. ग्रह दोषों तथा अन्य समस्याओं से मुक्ति हेतु रुद्राक्ष बहुत उपयोगी होता है. कुंडली के अनुरूप सही और दोषमुक्त रुद्राक्ष धारण करना अमृत के समान होता है.

रुद्राक्ष धारण एक सरल एवं सस्ता उपाय है, इसे धारण करने से व्यक्ति उन सभी इच्छाओं की पूर्ति कर लेता है जो उसकी सार्थकता के लिए पूर्ण होती है. रुद्राक्ष धारण से कोई नुकसान नहीं होता यह किसी न किसी रूप में व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति कराता है.

कई बार कुंडली में शुभ-योग मौजूद होने के उपरांत भी उन योगों से संबंधित ग्रहों के रत्न धारण करना लग्नानुसार उचित नहीं होता इसलिए इन योगों के अचित एवं शुभ प्रभाव में वृद्धि के लिए इन ग्रहों से संबंधित रुद्राक्ष धारण किए जा सकते हैं और यह रुद्राक्ष व्यक्ति के इन योगों में अपनी उपस्थित दर्ज कराकर उनके प्रभावों को की गुणा बढा़ देते हैं. अर्थात गजकेसरी योग के लिए दो और पांच मुखी, लक्ष्मी योग के लिए दो और तीन मुखी रुद्राक्ष लाभकारी होता है.

इसी प्रकार अंक ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति अपने मूलांक, भाग्यांक और नामांक के अनुरूप रुद्राक्ष धारण कर सकता है. क्योंकि इन अंकों में भी ग्रहों का निवास माना गया है. हर अंक किसी ग्रह न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है उदाहरण स्वरुप अंक एक के स्वामी ग्रह सूर्य है और अंक दो के चंद्रमा इसी प्रकार एक से नौ तक के सभी अंकों के विशेष ग्रह मौजूद हैं. अतः व्यक्ति संबंधित ग्रह के रुद्राक्ष धारण कर सकता है. इसी प्रकार नौकरी एवं व्यवसाय अनुरूप रुद्राक्ष धारण करना कार्य क्षेत्र में चौमुखी विकास, उन्नति और सफलता को दर्शाता है.

मेष राशि के स्वामी ग्रह मंगल हैं, इसलिए मेष राशि के जातकों को तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए.

वृषभ राशि के स्वामी ग्रह शुक्र है अत: इस राशि के जातकों के लिए छ: मुखी रुद्राक्ष फायदेमंद होता है.

मिथुन राशि के स्वामी ग्रह बुध है. मिथुन राशि के लिए चार मुखी रुद्राक्ष है.

कर्क राशि के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं इस राशि के लिए दो मुखी रुद्राक्ष लाभकारी है.

सिंह राशि के स्वामी ग्रह सूर्य हैं. इस राशि के लिए एक या बारह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.

कन्या राशि के स्वामी ग्रह बुध हैं. कन्या राशि के लिए चार मुखी रुद्राक्ष लाभदायक है.

तुला राशि के स्वामी ग्रह शुक्र हैं. तुला राशि के लिए छ: मुखी रुद्राक्ष तथा तेरह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.

वृश्चिक राशि के स्वामी ग्रह मंगल हैं. वृश्चिक राशि के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होगा.

धनु राशि के स्वामी ग्रह (गुरु)बृहस्पति हैं. धनु राशि के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष उपयोगी है.

मकर राशि के स्वामी ग्रह शनि हैं. मकर राशि के लिए सात या चौदह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.

कुंभ राशि के स्वामी ग्रह शनि हैं. कुंभ राशि के व्यक्ति के लिए सात या चौदह मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होगा.

मीन राशि के स्वामी ग्रह गुरु हैं. इस राशि के जातकों के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष उपयोगी है.

राहु के लिए आठ मुखी रुद्राक्ष और केतु के लिए नौमुखी रुद्राक्ष का वर्णन किया गया है.

रुद्राक्ष और बीमारी में लाभकारी उपयोग

रुद्राक्ष के स्वास्थ्य लाभरुद्राक्ष स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक माना गया है. आयुर्वेद में रुद्राक्ष को महान औषधि संजीवनि कहा है. रुद्राक्ष स्वास्थ्य लाभ के लिए अनेक प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।

त्रिदोषों से मुक्ति हेतु – वात, पित्त और कफ त्रिदोष हैं इनका असंतुलन स्वास्थ्य को प्रभावित करता है. अत: शरीर में इनका संतुलन बेहद आवश्यक है. इसलिए इन दोषों से मुक्ति हेतु रुद्राक्ष धारण किया जा सकता है. त्रिदोषों के शमन के लिए रुद्राक्ष का उपयोग बेहद लाभदायक है. रुद्राक्ष को घीस कर पीने से कफ से उत्पन्न रोगों का शमन होता है.

रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक – रुद्राक्ष के रक्तचाप को सामान्य बनाने के लिए भी बहुत लाभदायक होता है. इसमे इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक फिल्ड होने के कारण यह शरीर में रक्तका संचार व्यवस्थित करता है. मान्यता है कि इसे धारण करने से मन को शांति मिलती है क्योंकि यह शरीर की गर्मी को अपने में खींचकर उसे बाहर कर देता है. दोमुखी रुद्राक्ष की भस्म को स्वर्णमाच्छिक भस्म के साथ बराबर मात्रा में एक रत्ती सुबह-शाम हाई ब्लडप्रेशर के रोगी को दूध के साथ सेवन कराई जाए तो यह फ़ायदेमंद होती है.

हृदय रोगों से बचाव के लिए – रुद्राक्ष द्वारा आप रक्त चाप को सामान्य रख सकते हैं तथा ह्रदय संबंधि रोगों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं. रुद्राक्ष को कंठ में इस प्रकार धारण करें कि उसका स्पर्श आपके हृदय स्थल का स्पर्श कर सके. इसके अलावा कृतिका नक्षत्र समय या रविवार के दिन पांच मुखी रुद्राक्ष को तांबे के कलश में जल भरकर डाल दें तथा अगले दिन खाली पेट इस जल का सेवन करें ऐसा नियमित रुप से करते रहें इससे हृदय संबंधी समस्याओं से निजात प्राप्त होगा.

खसरा (मिजल्स) से बचाव हेतु – रुद्राक्ष का उपयोग चेचक की बिमारी के लिए भी किया जाता है. खसरा होने पर रुद्राक्ष घिसकर चाटने से आराम मिलता है.

स्मरण शक्ति को तेज करता है – रुद्राक्ष स्मरण शक्ति को तेज करता है तथा यादाशत मजबूत बनाता है. चार मुखी रुद्रा़ का उपयोग करने से मंद बुद्धि, क्षीण स्मरण शक्ति एवं कमजोर वाक शक्ति मजबूत होती है.

चर्म रोगों को दूर करे –  रुद्राक्ष के कुछ दाने ताँबे के बर्तन में पानी डालकर भिगोकर यह रुद्राक्ष जल सुबह खाली पेट ग्रहण करने से विभिन्न चर्म रोगों से मुक्ति मिलती है. तीन मुखी रुद्राक्ष को घिस कर इसका लेप नाभि पर लगाने से धातु रोग दूर होता है. इसके अतिरिक्त नौ मुखी रुद्राक्ष की भस्म को तुलसी के पत्तों के साथ मिलाकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है.

रुद्राक्ष को नीम के पत्तों के साथ मिलाकर चूर्ण बना लें इस चूर्ण को लेप की तरह खुजली वाले स्थान पर लगाएँ फायदा होगा.

रुद्राक्ष सौंदर्यवर्धक – त्वचा में कांति एवं निखार लाने हेतु भी रुद्राक्ष बहुत फ़ायदेमंद होता है. रुद्राक्ष को चंदन में पिस कर उबटन की तरह चेहरे पर लगाने से चेहरा मुलायम एवं निखार से भर जाता है. इस उबटन को पूरे शरीर पर लगाने से तन की दुर्गंध भी दूर हो जाती है. इसके अलावा रुद्राक्ष को बादाम और गुलाब जल के साथ मिलाकर भी उबटन रुप में उपयुक्त किया जा सकता है। 

शरीर के दर्द को दूर करता है

शरीर में होने वाले दर्दों जैसे गठिया की समस्या या जोडों का दर्द या फिर शरीर में किसी अंग पर सूजन आ जाने पर रुद्राक्ष द्वारा उपचार करने से बहुत लाभ मिलता है. रुद्राक्ष को पीस कर उसे सरसों के तेल के साथ मिलाकर मालिश करने से दर्द और सूजन में आराम मिलता है.

सर्दी जुकाम और खांसी को दूर करता है

रुद्राक्ष को तुलसी के साथ मिलाकर चूर्ण की तरह बना लें और इस चूर्ण को शहद के साथ नियमित रुप से खाली पेट सेवन करें लाभ होगा.

तनाव दूर करने में सहायक 

रुद्राक्ष को को गाय के दूध में उबालकर पीने से. मानसिक रोग दूर होते हैं तथा शांति प्राप्त होती है. रुद्राक्ष को चंदन में मिलाकर इसका लेप मस्तिष्क पर लगाने से सिर दर्द से राहत मिलती है तथा स्नायु रोग दूर होते हैं.

रुद्राक्ष के अन्य उपचार- रुद्राक्ष स्त्री संबंधी रोग, त्वचा रोग तथा उदर संबंधी रोगों, गुर्दा, फेफड़े एवं पाचन क्रिया से संबंधी विकारों, मानसिक रोग, पक्षाघात, पीत, ज्वर, दमा-श्वास, यौन विकार आदि रोगों में शांति के लिलाभदायक होता है. मंदबुद्धि बच्चों के लिए तथा जिनकी वाक् शक्ति कमजोर हो उनके लिए चमत्कारी है. यह मधुमेह, नेत्र रोग, दृष्टि दोष, लकवा, अस्थिदुर्बलता तथा मिरगी आदि रोगों के शमन के लिए फायदेमंद है. हिस्टीरिया, अपस्मार दमा, गठिया, जलोदर, मंदाग्नि, कुष्ठ रोग, हैजा, अतिसार, में बहुत लाभदायक है. रुद्राक्ष रोगों से लड़ने में कवच का कार्य करते है, इसे धारण करने से चमत्कारिक लाभ प्राप्त होते हैं.

जानिए रुद्राक्ष के लाभ 

रुद्राक्ष के विषय में उसके गुणों को देखकर उनके महत्व को परिभाषित किया जाता है. रुद्राक्ष को आध्यात्मिक रुप में अधिक उपयोग में लाया जाता ह. इसके अतिरिक्त रुद्राक्ष औषधि रुप में भी उपयोग में लाया जाता है इसके अनेक लाभदायक प्रभावों के कारण विभिन्न प्रकार से फ़ायदेमंद होता है. रुद्राक्ष को शिवाक्ष, भावाक्ष,फलाक्ष, हराक्ष, नीलकंठ,तृणमेर तथा शिवप्रिय, भी कहते हैं, आयुर्वेदिक ग्रंथों में रुद्राक्ष के अनेक गुणों का उल्लेख किया गया है. यह रुद्राक्ष एक दिव्य औषधि भी है रुद्राक्ष की जड़, छाल ,फल, बीज और फूल सभी दैविय एवं औषधीय गुणों से भरपूर हैं. शिव पुराण में कहा गया है कि जो रुद्राक्ष धारण कर करता है वह स्वयं शिवमय हो जाता है.

ज्ञान एवं बुद्धि की प्राप्ति हेतु रुद्राक्ष – ज्ञान एवं विद्या हेतु रुद्राक्ष बहुत लाभकारी होता है. इसे धारण करने से तीव्र बुद्धि होती है व स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है, जो भी शिक्षा प्राप्त करने में कमजोर हों उन्हें रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए तीन मुखी, छ: मुखी रुद्राक्ष एवं गणेश रुद्राक्ष धारण, करने से विद्या एवं ज्ञान की प्राप्ति होती है. यह रुद्राक्ष रचनात्मक कार्यों में भी लाभदायक है.

रुद्राक्ष ग्रहों की शांति हेतु – राहु, शनि, केतु, मंगल जैसे क्रूर ग्रहों की शांति हेतु इस रुद्राक्ष को धारण किया जा सकता है. रुद्राक्ष इन क्रूर ग्रहों के दुष्प्रभाव से होने वाले रोगों व संकटों का शमन करके मनुष्य का जीवन सुख एवं शांतिमय बनाता है. अकाल मृत्यु एवं दुर्घटनाओं से बचाव के लिए भी रुद्राक्ष बहुत उपयोगी है यह जीवन के संघर्षों से मुक्ति दिलाता है.

रुद्राक्ष पारिवारिक शांति हेतु – परिवार में शांति एवं सौहार्द हेतु रुद्राक्ष बहुत लाभकारी होता है. यह रिशतों में मिठास घोलता है तथा कुटुंब को सुख एवं समृद्धि प्रदान करता है. दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से झगड़ों से मुक्ति मिलती है, और पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहनों, मित्रों आदि के साथ के मतभेदों को दूर करता है, समाज में सम्मान प्रदान करता है.

विवाह संबंधी समस्याओं के निवारण हेतु रुद्राक्ष – विवाह में किसी प्रकार की देरी या विवान हो पाना जैसी संमस्याओं में रुद्राक्ष चमत्कारी लाभप्रदान करता है. विवाह नहीं हो पा रहा है या विवाह के बाद दांपत्य जीवन में तनाव व कलह उत्पन्न हो रखी हो, तो इन समस्याओं को दूर करने के लिए गौरी शंकर रुद्राक्ष या दो मुखी रुद्राक्ष को धारण किया जा सकता है.

स्वास्थ्य व लम्बी आयु हेतु रुद्राक्ष 

बिमारियों एवं रोग मुक्ति के लिए भी रुद्राक्ष अत्यंत फायदेमंद होता है यह मानसिक चिंताओं तनाव से मुक्ति दिलाने में सहायक है चौदह मुखी या आठ मुखी रुद्राक्ष धारण करने से अकाल मृत्यु का भय तथा रोग नाश होता है.

व्यापार एवं कार्य में लाभ हेतु 

रुद्राक्ष का उपयोग करने से आपको अपने कार्यों में सफलता प्राप्त होती है तथा आपका व्यवसाय फलता फूलता है. चौदह मुखी, ग्यारह मुखी तथा लक्ष्मी रुद्राक्ष धारण करने से आप अपने कारोबार में अच्छा कर सकते हैं इसे धारण करने से धन की वृद्धि होती है मान-सम्मान प्रतिष्ठा बढती है. सकन्ध पुराण और लिंग पुराण में कहा गया है कि रुद्राक्ष से आत्मविश्वास और मनोबल में वृद्धि होती है. रोजगार, व्यवसाय, व्यापार में अपार सफलता प्राप्त होती है. रुद्राक्ष सुख समृद्धि प्रदान करता है, साथ ही साथ पाप का नाश करता है.

बुरी नजर, जादू-टोने एवं तंत्र-मंत्र से सुरक्षा हेतु रुद्राक्ष  – आप पर बुरे ग्रहों का प्रभाव या तंत्र मंत्र अथवा जादू-टोनों का प्रभाव हो तो भी रुद्राक्ष आपके लिए बहुमूल्य साबित होता है. बुरी नजर के दोषों तथा भूत प्रेत और विषैले जानवरों से भय को दूर करने में बहुत सहायक होता है.

राजनीती में सफलता हेतु रुद्राक्ष –  शासन-प्रशासन में तथा राजनीति में अपने को स्थापित करने के लिए बारह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होता है. अपनी पकड़ मजबूत करने एवं अपने क्षेत्र में मुकाम हासिल करने के लिए रुद्राक्ष धारण करना उपयोगी होता है. व्यक्ति कीर्ति एवं यश प्राप्त करता है. रुद्राक्ष वाणी को ओज प्रदान करता है तथा वाकपटुता हासिल होती है.

कोर्ट कचहरी तथा मुक़द्दमों से मुक्ति दिलाता रुद्राक्ष –  कोर्ट कचहरी के मामलों में फँसे लोगों के लिए रुद्राक्ष अचूक उपाय है. सात मुखी अथवा ग्यारह मुखी रुद्राक्ष धारण करने से इन सभी मुसीबतों से मुक्ति मिलती है.

रुद्राक्ष शनि दोष निवारण हेतु – जो व्यक्ति शनि की साढेसाती, शनि की ढैया या शनि की महादशा से प्रभावित हैं उनके लिए रुद्राक्ष एक बेहद उपयोगी रत्न है.

रुद्राक्ष अपने समस्त रुपों में बहुत फ़ायदेमंद होता है यह वातावरण को पवित्र करके चारों ओर शुभदायक फल प्रदान करता है. इसके शुभ कारक रुप मे हम रुद्राक्ष को विभिन्न प्रकार से उपयोग में ला सकते हैं.

पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री, 

(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)

vastushastri08@gmail.com

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