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श्राद्ध क्यों किया जाता है? पूर्वजों से जुड़ा अद्भुत रहस्य

श्राद्ध क्यों किया जाता है? पूर्वजों से जुड़ा अद्भुत रहस्य

हिंदू धर्म में अनगिनत संस्कार और परंपराएँ हैं, जो केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इन्हीं में से एक है श्राद्ध संस्कार, जो विशेष रूप से पितृ पक्ष के दौरान किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि श्राद्ध क्यों किया जाता है? इसके पीछे एक गहरा और अद्भुत रहस्य छिपा है, जो हमें हमारे पूर्वजों से जोड़ता है।

पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव

श्राद्ध का सबसे पहला उद्देश्य है पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना। शास्त्रों में कहा गया है कि माता-पिता और पूर्वजों के बिना हमारा अस्तित्व ही संभव नहीं। उन्होंने न केवल हमें जीवन दिया, बल्कि संस्कार, मूल्य, और परिवार जैसी अमूल्य धरोहर भी सौंपी। श्राद्ध के माध्यम से हम उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और यह स्वीकार करते हैं कि हमारा जीवन उनकी ही देन है।

आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना

हिंदू मान्यता के अनुसार जब कोई व्यक्ति देह त्याग देता है तो उसकी आत्मा अगले लोक की यात्रा पर निकलती है। कहा जाता है कि कई बार आत्मा को शांति प्राप्त करने के लिए अपने वंशजों द्वारा किए गए तर्पण, पिंडदान और दान की आवश्यकता होती है। श्राद्ध करने से आत्मा को शांति मिलती है और वह पितृलोक की ओर अग्रसर हो सकती है। यही कारण है कि इसे पितरों की आत्मा की शांति के लिए सबसे बड़ा धार्मिक कर्तव्य माना गया है।

तर्पण, पिंडदान और दान का महत्व

श्राद्ध के समय पवित्र जल, तिल, कुशा और अन्न से तर्पण किया जाता है तथा पिंडदान दिया जाता है। इसके बाद ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन व दान दिया जाता है। माना जाता है कि इन विधियों से पितर संतुष्ट होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देते हैं। साथ ही यह दान समाज में सेवा भाव और करुणा की भावना भी उत्पन्न करता है।

कुल और वंश की उन्नति के लिए

पुराणों में उल्लेख है कि जब पितर प्रसन्न होते हैं तो वे अपने वंशजों को सुख-समृद्धि, संतान-सुख और दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपने पितरों का नियमित श्राद्ध करता है, उसका कुल कभी विनाश को प्राप्त नहीं होता। यह केवल धार्मिक आस्था ही नहीं बल्कि एक प्रकार की आध्यात्मिक सुरक्षा कवच भी माना जाता है।

श्राद्ध केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि पूर्वजों से हमारा भावनात्मक और आध्यात्मिक संबंध जोड़ने वाली परंपरा है। यह हमें यह भी सिखाता है कि अपने मूल को कभी न भूलें और जिनसे हमने जीवन पाया है, उनके प्रति सदैव कृतज्ञ रहें।
यही कारण है कि श्राद्ध को हिंदू धर्म में एक पवित्र, अनिवार्य और अत्यंत पुण्यकारी कर्तव्य माना गया है।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

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