शहीदी दिवस – गुरु तेग बहादुर जी

शहीदी दिवस – गुरु तेग बहादुर जी

शहीदी दिवस – गुरु तेग बहादुर जी

भारत के इतिहास में ऐसे बहुत कम उदाहरण मिलते हैं जहाँ किसी धर्मगुरु ने दूसरों के धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए हों। गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस इसी महान आदर्श का स्मरण कराता है। सिख परंपरा में उन्हें “हिंद की चादर” कहा गया—एक ऐसा उपनाम जो उनके सार्वभौमिक मानवाधिकार दृष्टिकोण को दर्शाता है।

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत 24 नवंबर 1675 को हुई थी, और यह तिथि आज भी पूरे देश में धार्मिक सहिष्णुता, मानव गरिमा और धर्मिक स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में याद की जाती है। भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें भी इस दिन को आधिकारिक स्मृति दिवस के रूप में मान्यता देती हैं।

गुरु तेग बहादुर जी कौन थे?

गुरु तेग बहादुर जी (1621–1675) सिख धर्म के नौवें गुरु थे।
उनका जन्म अमृतसर में गुरु हरगोबिंद जी के घर हुआ। उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं में—

  • असाधारण आध्यात्मिकता

  • करुणा

  • वीरता

  • मानवाधिकारों की रक्षा

  • सभी धर्मों के सम्मान

शामिल थे।

उनकी रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं, जिनमें मानव जीवन, भक्ति, वैराग्य और नैतिकता पर गहन शिक्षाएँ मिलती हैं।

शहीदी का ऐतिहासिक संदर्भ

17वीं शताब्दी में भारत में औरंगज़ेब का शासन था। विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों—

  • Sri Gur Pratap Suraj Granth

  • Bachittar Natak (Dasam Granth का हिस्सा)

  • पंडितों के कश्मीर प्रतिनिधि “कौशिश” के संस्मरण

  • और कई सिक्ख इतिहासकारों (जैसे भाई वीर सिंह, तेजा सिंह, खुशवंत सिंह)

में यह उल्लेख मिलता है कि औरंगज़ेब के शासनकाल में कश्मीर के हिंदू ब्राह्मणों पर धर्म परिवर्तन का दबाव था।

कश्मीर के पंडितों का समूह प्रकाश प्रपन्न पिता हरिकृष्ण जी महाराज के शव के बाद नाईं दिल्ली में गुरु तेग बहादुर जी के पास पहुँचा। उन्होंने गुरु जी से कहा कि “यदि आप हमें बचा सकते हैं तो हिंदू धर्म बच सकता है।”

गुरु जी ने कहा—
“सच है, बड़े सिर की लोहा है। यदि मेरा सिर कटा तो सबके धर्म की रक्षा होगी।”

इसके बाद गुरु तेग बहादुर जी दिल्ली गए और आगे की घटनाएँ इस प्रकार दर्ज हैं—

  • उन्हें गिरफ्तार किया गया।

  • दिल्ली के चांदनी चौक में कैद किया गया।

  • उनके तीन प्रमुख साथियों—भाई मती दास, भाई सती दास और भाई दयाला—को अत्याचारों के बाद शहीद किया गया।

  • अंततः 24 नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर जी को सार्वजनिक रूप से शहीद किया गया।

आज जिस स्थान पर यह घटना हुई, वहाँ गुरुद्वारा शीश गंज साहिब (दिल्ली) स्थित है।

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत क्यों अद्वितीय मानी जाती है?

1. दूसरे धर्म की रक्षा के लिए बलिदान

यह विश्व इतिहास में बहुत दुर्लभ है कि किसी धार्मिक गुरु ने अपने अनुयायियों के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के धर्म की स्वतंत्रता के लिए प्राण दिए।

2. धार्मिक स्वतंत्रता का संदेश

उनकी शहादत बताती है कि हर मनुष्य को अपनी आस्था चुनने का अधिकार होना चाहिए—यह विचार आधुनिक मानवाधिकार सिद्धांतों से मेल खाता है।

3. सार्वभौमिक भाईचारा

गुरु जी ने यह बताया कि धर्म का सम्मान केवल अपने धर्म तक सीमित नहीं, बल्कि दूसरों की स्वतंत्रता की रक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

गुरु तेग बहादुर का योगदान (Verified Points)

  • उनकी रचनाएँ गुरु ग्रंथ साहिब में “महला 9” के नाम से दर्ज हैं।

  • उन्होंने रामपुर, पटना, ढका, आनंदपुर जैसे स्थानों में सिख समुदाय को संगठित किया।

  • वे आत्मिक गहराई और सामाजिक न्याय के महान शिक्षक थे।

  • अत्याचार के विरुद्ध अहिंसक प्रतिरोध का श्रेष्ठ उदाहरण बने।

दुनिया के विभिन्न धर्मों में शहादत और स्वतंत्रता के उदाहरण

हिंदू धर्म

अनेक संतों और गुरुओं ने धर्म और सत्य की रक्षा के लिए बलिदान दिए—जैसे गुरु गोविंद सिंह जी के पुत्र, महाराणा प्रताप (धर्म-संरक्षण के लिए संघर्ष), आदि।

इस्लाम

इस्लामी परंपरा में इमाम हुसैन की करबला में शहादत अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का प्रमुख उदाहरण है।

ईसाई धर्म

प्रारंभिक ईसाई संत—जैसे सेंट स्टीफ़न—धर्मिक स्वतंत्रता और सत्य के लिए शहीद हुए।

बौद्ध धर्म

अशोक के शासनकाल से पहले कई भिक्षुओं ने सत्य और नैतिकता की रक्षा करते हुए जीवन अर्पित किए।

जैन धर्म

अहिंसा और सत्य के पालन में कठोर तपस्या करते हुए अनेक श्रमणों ने जीवन त्याग दिया।

इन सभी उदाहरणों में एक साझा संदेश मिलता है—
“अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना मानवता का कर्तव्य है।”

गुरु तेग बहादुर जी की शहादत भी इसी वैश्विक परंपरा को आगे बढ़ाती है—लेकिन उनकी विशेषता यह है कि उनका बलिदान पूरी तरह दूसरे धर्म की स्वतंत्रता के लिए था, जो उन्हें अद्वितीय बनाता है।

शहीदी दिवस कैसे मनाया जाता है?

  • गुरुद्वारों में कीर्तन और अरदास

  • गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ

  • सामाजिक सेवा, लंगर और दान

  • धार्मिक स्वतंत्रता पर सभाएँ

  • चांदनी चौक स्थित शीश गंज साहिब में विशेष समागम

यह दिवस केवल सिख समुदाय तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सभी धर्मों के लोग गुरु जी की स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

  • गुरु तेग बहादुर जी शहादत दिवस

  • Guru Tegh Bahadur Martyrdom Day

  • हिंद की चादर

  • धर्मिक स्वतंत्रता का प्रतीक

  • 24 नवंबर 1675 ऐतिहासिक घटना

  • शीश गंज साहिब दिल्ली

  • Sikh Martyrdom History

  • Religious Freedom in India

गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस केवल एक धार्मिक स्मृति दिवस नहीं है—यह मानवाधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और नैतिक साहस का वैश्विक प्रतीक है।

उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि—
“धर्म केवल पूजा-पद्धति का नाम नहीं; यह दूसरों की स्वतंत्रता की रक्षा का भी संदेश है।”

आज के समय में, जब दुनिया अनेक सामाजिक-धार्मिक चुनौतियों से गुजर रही है, गुरु तेग बहादुर जी का आदर्श और अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
उनका जीवन और बलिदान मानवता को एकता, साहस और सत्य की ओर प्रेरित करता है।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

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