संतोषी माता का व्रत कैसे करें?
संतोषी माता का व्रत हिन्दू धर्म में बहुत प्रिय और प्रसिद्ध है। इसे करने से मन की शांति, सुख-समृद्धि और कष्टों का नाश होता है। इस व्रत को शनिवार के दिन रखा जाता है।
व्रत का दिन:
हर शुक्रवार को यह व्रत किया जाता है।
कुछ लोग 16 शुक्रवारों तक लगातार यह व्रत रखते हैं।
संतोषी माता व्रत क्यों रखा जाता है?
उद्देश्य | लाभ |
---|---|
घर में क्लेश, गरीबी और अशांति दूर करने के लिए | सुख-शांति और संतोष की प्राप्ति |
विवाह में विलंब या समस्याएँ | शीघ्र विवाह |
संतान की प्राप्ति और उसकी रक्षा | संतान सुख |
मनोकामनाओं की पूर्ति | धन, समृद्धि और संतोष |
व्रत विधि (साधारण रूप)
प्रात: स्नान कर स्वच्छ पीले या लाल वस्त्र पहनें।
घर में किसी शांत स्थान पर संतोषी माता की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
एक कलश रखें, दीपक जलाएं, और माता को गुड़ व चने का भोग लगाएं।
माता की कथा पढ़ें या सुनें।
व्रत का संकल्प लें: “हे संतोषी माता! मैं आपकी कृपा से यह व्रत कर रही/रहा हूँ। मेरी मनोकामना पूर्ण हो।”
दिनभर व्रत रखें – केवल एक बार भोजन करें और उसमें नमक या खटाई न हो।
नमक, खटाई, दही या नींबू पूरी तरह वर्जित है इस व्रत में।
कथा के अंत में आरती करें: “जय संतोषी माता…”
संतोषी माता की व्रत कथा:
एक निर्धन स्त्री अपने जीवन में दुख, दरिद्रता और उपेक्षा से परेशान होती है। वह संतोषी माता का व्रत रखती है, कथा सुनती है और श्रद्धा से पूजा करती है। अंततः उसकी सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और उसे धन, सुख, परिवार का प्रेम और सम्मान प्राप्त होता है।
इस कथा से यही सिख मिलती है — “जो संतोष रखता है, उसे संतोषी माता सब कुछ देती हैं।”
सावधानियाँ:
नमक, खटाई का सेवन वर्जित है।
किसी को दुखी या नाराज़ करके यह व्रत न करें।
भोजन में शुद्धता और सात्विकता रखें।
इस व्रत में झूठ बोलना, कलह करना, कटु शब्द बोलना वर्जित माना जाता है।
उद्यापन कैसे करें? (16 शुक्रवार बाद)
8 बच्चों (लड़कों को) गुड़-चना और खीर खिलाएं।
उन्हें दक्षिणा दें और “जय संतोषी माता” कहकर विदा करें।
माता की विशेष आरती और धन्यवाद अर्पण करें।
मंत्र और आरती:
मंत्र:
“सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते॥”
आरती (कुछ पंक्तियाँ):
“जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता।
अपना नाम जपाने वाली, दुःख हरने वाली माता…”
महत्वपूर्ण बात:
संतोषी माता व्रत सिर्फ पूजा नहीं, “संतोष की भावना” का अभ्यास है।
जो व्यक्ति अपनी स्थिति में संतोष रखता है और आभार व्यक्त करता है, उसके जीवन में सुख-शांति अपने आप आती है।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो