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Radha Ashtami 2025: कब है? क्यों मनाई जाती है राधा अष्टमी?

Radha Ashtami 2025: कब है? क्यों मनाई जाती है राधा अष्टमी?

भारत की संस्कृति में ऐसे कई पर्व हैं जो केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण माने जाते हैं। उन्हीं में से एक है राधा अष्टमी, जिसे भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्रीकृष्ण की प्रियतम और शाश्वत प्रेम की प्रतिमूर्ति श्री राधारानी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।

कहा जाता है कि राधा और कृष्ण का संबंध केवल एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह भक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा का प्रतीक है। यही कारण है कि राधा अष्टमी का दिन भक्तों के लिए केवल व्रत और पूजा का अवसर नहीं बल्कि आत्मिक भक्ति का महापर्व होता है।

राधा अष्टमी 2025 की तिथि और शुभ समय

वर्ष 2025 में राधा अष्टमी का पर्व गुरुवार, 4 सितंबर 2025 को मनाया जाएगा।
यह दिन विशेष महत्व रखता है क्योंकि मान्यता है कि इसी तिथि को श्री राधारानी का प्रकटोत्सव हुआ था।

राधा अष्टमी का महत्व

राधारानी को प्रेम, करुणा और भक्ति की देवी माना जाता है। वे केवल श्रीकृष्ण की प्रेयसी ही नहीं बल्कि भक्ति का सर्वोच्च उदाहरण भी हैं।
शास्त्रों में वर्णन आता है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा था – “मैं तो केवल अपने भक्तों के प्रेम से बंध जाता हूँ।” और यह प्रेम सबसे पहले राधा जी ने ही अपने आचरण से संसार को दिखाया।

इस दिन व्रत और पूजा करने से मनुष्य के हृदय से ईर्ष्या, क्रोध और अहंकार जैसी नकारात्मक भावनाएँ समाप्त होती हैं। माना जाता है कि राधा अष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति को सच्चे प्रेम, शांति और भक्ति की प्राप्ति होती है।

राधा अष्टमी की पूजा विधि

राधा अष्टमी के दिन भक्तजन सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद वे राधा-कृष्ण की प्रतिमा या चित्र को जल से स्नान कराते हैं और उन्हें सुंदर वस्त्र, फूल और आभूषण पहनाते हैं।

  • भोग: माखन, मिश्री, फल और दूध का भोग लगाया जाता है।

  • आराधना: राधा-कृष्ण की पूजा करते हुए भजन-कीर्तन किए जाते हैं।

  • व्रत: भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को कथा व आरती करते हैं।

राधा अष्टमी और भक्ति का संदेश

राधा अष्टमी हमें यह सिखाती है कि प्रेम ही सबसे बड़ी शक्ति है।
राधा-कृष्ण का संबंध हमें दिखाता है कि ईश्वर को पाने का मार्ग केवल निष्काम भक्ति और समर्पण से होकर गुजरता है। राधा जी ने अपने जीवन से यह प्रमाणित किया कि सच्चा प्रेम किसी शर्त पर आधारित नहीं होता, बल्कि वह तो केवल त्याग और आस्था का दूसरा नाम है।

राधा अष्टमी की खासियत

ब्रज और वृंदावन में राधा अष्टमी का उत्सव विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। वृंदावन के मंदिरों में इस दिन भव्य झाँकियाँ सजाई जाती हैं। राधारानी का श्रृंगार करने के बाद भक्तों के लिए उनके दर्शन खोले जाते हैं। जगह-जगह भजन-कीर्तन होते हैं और वातावरण “राधे-राधे” की ध्वनि से गूंज उठता है।

आध्यात्मिक दृष्टि से राधा अष्टमी

यदि हम आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो राधा अष्टमी हमें यह स्मरण कराती है कि जीवन में सच्चा सुख धन-संपत्ति से नहीं बल्कि हृदय की पवित्रता और भक्ति से मिलता है।
जैसे राधा जी ने श्रीकृष्ण में अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया, वैसे ही हमें भी अपने जीवन में ईश्वर के प्रति विश्वास और प्रेम बनाए रखना चाहिए।

राधा अष्टमी का पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण का अद्वितीय उत्सव है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि भक्ति केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हृदय की गहराई में उठने वाली वह भावना है जो हमें ईश्वर से जोड़ती है।

~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो

Post By Religion World