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शारदीय नवरात्रि विशेष : जानिये नवरात्रि का वास्तु और नियम

शारदीय नवरात्रि विशेष : जानिये नवरात्रि का वास्तु और नियम

शारदीय नवरात्रि के यह नौ दिनों आपको मां की भक्ति में लीन रखेगा, पर ये भक्ति तभी पूरी होगी, जब पूजा-पाठ में वास्तु का भी ध्यान रखा जाए। दुर्गा मां की पूजा के दौरान वास्तु के किन नियमों का ध्यान रखना चाहिए आइये जानते हैं वास्तुविद आचार्य आलोक से…

मूर्ति स्थापना की दिशा

नवरात्र में मूर्ति स्थापना की सही दिशा उत्तरपूर्व होती है। ये बात भी सही है कि ज्यादातर घरों में मंदिर होते हैं और लोग उसी में मूर्ति पूजन भी करते हैं। जिनके पास मंदिर छोटे हैं या ऐसी जगह हैं कि जहां कलश, दीपक ना स्थापित हो पाएं, वे किसी अलग स्थान पर मूर्ति स्थापित करते हैं। वास्तु में मंदिर या मूर्ति स्थापना की जो दिशा बताई गई है, जरूरी नहीं है कि हर शख्स उसी दिशा में स्थापना करा सके। ऐसे में निश्चित दिशाओं के कुछ विकल्प भी वास्तु में सुझाए गए हैं। इस शास्त्र के हिसाब से मूर्ति स्थापना उत्तरपूर्व की जगह पूर्व या उत्तर दिशा के कमरों में भी की जा सकती है।

साधक का बैठने का स्थान

अगर आप भी विधि-विधान से पूजा करने में यकीन करते हैं तो अपनी दिशा भी वास्तु शास्त्र के हिसाब से तय कीजिए। इसके लिए पूजा करते हुए आपको ऐसे बैठना होगा कि आपका चेहरा पूर्व की ओर हो। इस दिशा की ओर अपना चेहरा करके पूजा करने से आप अपनी भक्ति को सार्थक कर पाएंगी।

दीपक और कलश रखने का स्थान

नवरात्र की पूजा से जुड़े ये दो नाम सबसे अहम होते हैं वो दीपक और कलश। पर यूं ही पूजा स्थल के पास इन्हें रख देना ठीक नहीं। वास्तु की मानें तो इन्हें रखने की भी एक निश्चित जगह होती है। वास्तु में दीपक को रखने के लिए दक्षिणपूर्व का स्थान निश्चित किया गया है। यह दिशा साधक के दाईं ओर होती है। दक्षिणपूर्व की दिशा को अग्निकोण भी कहा जाता है। अग्नि का स्थान होने के चलते दक्षिणपूर्व दिशा को अखंड दीपक के लिए सबसे अच्छा स्थान माना गया है। कलश के लिए बाईं दिशा चुनी गई है। यह ईशान कोण होता है, जहां कलश स्थापित होना चाहिए। ईशान कोण जल का स्थान कहलाता है। इस दिशा को उत्तरपूर्व दिशा भी कहा जा सकता है।

हवन में भी रखें यह ध्यान

नवरात्र के नौ दिन पूरे होते हैं तो हर घर में हवन भी कराया जाता है। ऐसा करते हुए ध्यान ये रखना है कि हवन दक्षिण-पूर्व कोने में ही करें। या फिर हवन घर के पूर्वी हिस्से में भी किया जा सकता है। याद रहे कि साधक का चेहरा पूर्व दिशा की ओर हो और हवन करा रहे आचार्य जी का चेहरा उत्तर की ओर। हवन भी अष्टमी को नहीं, बल्कि हमेशा नवमी को ही होना चाहिए।

10 दीये, 10 दिशाओं के द्योतक 

हवन पूर्ण होने पर हवन कुंड के चारों तरफ 10 दिशाओं के अधिपति या इसको ऐसे समझें कि 10 दिशाओं की देखभाल करने वाले देवताओं के नाम पर दीपक जलाए जाते हैं, इन्हें दिग्पाल कहते हैं। इन दिशाओं और इनके देवताओं के नाम हैं- पूर्व में इंद्र, आग्नेय कोण में अग्निदेव, दक्षिण में यम, दक्षिणपश्चिम में निऋति, पश्चिम में वरुण देव, वायव्य अर्थात उत्तरपश्चिम में मारुत या वायु देव, उत्तर दिशा में कुबेर और उत्तरपश्चिम में शिव। सनातन संस्कृति में इन 8 दिशाओं के अलावा दो अन्य दिशाएं भी हैं। पहली दिशा आकाश की ओर है। यहां ब्रह्मा जी का आधिपत्य है। उनके नाम का दीप पूर्व व ईशान के बीच में जलाना चाहिए। अंतिम और दसवीं दिशा पाताल की ओर है, इसके अधिपति अनंत देव हैं। इनके नाम का दीपक दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम के बीच में जलाना चाहिए।

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कौनसी माला से करें जाप

जाप करने के लिए स्फटिक की माला पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए सही रहती है। पुरुषों को रुद्राक्ष की माला जपनी चाहिए। महिलाओं के लिए लाल चंदन की माला फलकारी मानी जाती है।

कहां हो आसन, कौनसा हो रंग?

आसन कभी भी देवी मां के बराबर पर नहीं रखा जाना चाहिए। वास्तु शास्त्र के हिसाब से आसन को ऐसी जगह रखा जाना चाहिए, जहां से साधक की नजर देवी के चरणों पर ही पड़े, न कि उनके चेहरे पर। स्त्रियों के लिए लाल रंग हमेशा से ही अच्छा व प्रभावी माना जाता रहा है। आसन के मामले में भी इस रंग को बेहतर माना गया है। स्त्रियों के लिए लाल रंग का आसन अच्छा माना गया है, पर पुरुषों के लिए भी इसकी अलग अहमियत है। पर हां, ये आसन अगर ऊन का बना हो तो ज्यादा असरकारक होता है। वैसे पुरुष साधकों के लिए कुश का आसन अच्छा माना गया है, लेकिन यह स्त्रियों को नहीं इस्तेमाल करना चाहिए।

@religionworldbureau

Post By Shweta