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तरूणसागर महाराज को देश ने दी भावभीनीं श्रद्धांजलि

जैन संत तरूणसागरजी महाराज की सल्लेखना/समाधि के बाद पूरे समाज में शोक की लहर दौड़ गई। सभी ने शोकभाव से अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें भावभीनीं श्रद्धांजलि दी।

डॉ. प्रणव पण्ड्या, प्रमुख, अखिल विश्व गायत्री परिवार : “क्रांतिकारी राष्ट्रीय संत तरुण सागर जी महाराज का महाप्रयाण पूरी मानवता के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी कमी पूरी नहीं की जा सकती। वे समाज को कड़वे प्रवचन के माध्यम से जीवन जीने की कला सिखाते थे। उन्हें सभी विचारशील लोग आदर के साथ सुनते थे। अगस्त २०१३ में जयपुर में उनसे मिलने का सुअवसर पर मिला, जब उनके स्वहस्त से तरुणक्रांति पुरस्कार से मुझे नवाजा था। उनके साथ बिताए हुए क्षणों की स्मृति आज भी मेरे दिल मैं वैसी ही है। वियोग की इस दु:खद घड़ी मैं यही श्रद्धांजलि दे सकता हूँ कि उनके दिखाये मार्ग और बचे कार्य में जो सहयोग गायत्री परिवार कर सकता है, वह सतत करता रहेगा।”

फाइल – प.पू. श्रद्धेय डॉ प्रणव पंड्या को पुरस्कार देते तरूणसागर महाराज

श्री विवेक मुनि महाराज, विश्व अहिंसा संघ, आचार्य सुशील आश्रम :  “क्रांतिकारी राष्ट्र सन्त मुनि श्री तरुण सागर जी महाराज ने अपनी ओजस्वी बाणी से जिन शासन की अभूतपूर्व प्रभावना की उनका संलेखना पूर्वक समाधि मरण जैन जगत की अपूरणीय क्षति है ।
उनकी आत्मा को सास्वत शान्ति की प्राप्ति हो यही शासन देव से प्रार्थना। युग पुरूष के श्री चरणों में भावपूर्ण श्रद्धांजलि।”

“Heartily shradhanjali from all SGVP Gurukul Parivar for great divine departed soul of T Sagarji Maharaj saheb: we lost great inspiring personality. This Loss is not for only Jain Dharm but for all Bharat origin religions”
Yours Madhavapriyadas

महापुरुषों का आना और जाना, दोनों ही प्रभु इच्छा से ही होता है।

“आज जैन दिगंबर परंपरा के प्रबल संवाहक, मुनि तरुण सागर जी महाराज के रूप में मात्र 51वर्ष की अल्पायु में एक क्रांतिकारी संत के रूप में जन – जन के हृदय में अपना स्वामित्व स्थापित करने वाले इस भूमंडल का एक चमचमाता सितारा सदा सदा के लिए विलुप्त हो गया है।

संत का शरीर तो मर भी सकता है मगर संतत्व कभी मरा नहीं करता इसलिए मुनि तरूण सागर जी महाराज अपने अमर व्यक्तित्व के कारण सदा सदा उनके भक्तों और जन – जन के हृदय में राज करते रहेंगे।

यद्यपि आपका जन्म जैन परिवार में ही हुआ था और जैन धर्म में ही आप दीक्षित थे बावजूद इसके आपका संपूर्ण दर्शन सार्वभौमिकता लिए प्राणी मात्र के उत्थान के लिए ही होता था। इसलिए आप जैन संत नहीं अपितु एक सच्चे जन संत थे। यही कारण था कि जैन समाज के इतर भी आपको जो प्रतिष्ठा प्राप्त हुई वह शायद ही पूर्व में किसी जैन मुनि को हुई हो।

सत्य को परोसने की आपकी अपनी एक विशेष और विशिष्ट शैली थी। इसी कारण आप प्रथम ऐसे जैन मुनि भी थे जो पूरे विश्व में सर्वाधिक सुने और पढ़े जाते रहे हैं।

भारत की अनेक भाषाओं में प्रकाशित आपकी कालजयी कृति कड़वे प्रवचन ने तो एक साल में सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली प्रेरक पुस्तक का भी रिकॉर्ड अपने नाम कर आपकी लोकप्रियता और प्रासंगिकता दोनों को सिद्ध कर दिया था।

आपके द्वारा निर्दिष्ट मार्ग सदैव ही अनेक भूलों – भटकों को जीवन के वास्तविक लक्ष्य की तरफ प्रेरित करता रहेगा। आप जैसे तेजस्वी पुत्र की रिक्तता यह माँ भारती सदा – सदा महसूस करती रहेगी।

आपश्री के चरणों में अश्रु पूरित नेत्रों से नमन करता हुआ भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।”

संजीव कृष्ण ठाकुर जी
वृन्दावन

“अखिल भारतीय इमाम संगठन की ओर से तरुणसागर जी महाराज के निधन पर शोक व्यक्त करता है, और अल्लाह ताला से दुआ करते है की उनकी आत्मा को शांति मिले” – इमाम उमेर अहमद इलियासी, चीफ उलेमा, अखिल भारतीय इमाम संगठन

Post By Religion World