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क्षमावाणी पर्व: क्या है क्षमावाणी पर्व और क्या है इसकी  विशेषताएं 

क्षमावाणी पर्व: क्या है क्षमावाणी पर्व और क्या है इसकी  विशेषताएं

दसलक्षण महापर्व एक आध्यात्मिक शुद्धि का दिव्य त्यौहार है। इस दौरान ऐसा लगता है मानो जैसे किसी ने दस धर्मों की माला बना दी हो। दसलक्षण धर्म की संपूर्ण साधना के बिना मनुष्य को मुक्ति का मार्ग नहीं मिल सकता।

पर्युषण पर्व का पहला दिन ही ‘उत्तम क्षमा’ भाव का दिन होता है। धर्म के दस लक्षणों में ‘उत्तम क्षमा’ की शक्ति अतुल्य है। क्षमा भाव आत्मा का धर्म कहलाता है। यह धर्म किसी व्यक्ति विशेष का नहीं होता, बल्कि समूचे प्राणी जगत का होता है।

क्षमा शब्द मानवीय जीवन की आधारशिला है। सिर्फ जैन धर्म ही हमें क्षमाभाव रखना नहीं सिखाता है, सभी धर्म यही कहते हैं कि हमें सबके प्रति अपने मन में दया और क्षमा का भाव रखना चाहिए। इसका उदाहरण इन निम्न बातों से सिद्ध होता है…

* सिख गुरु गोविंद सिंह जी एक जगह कहते हैं- ‘यदि कोई दुर्बल मनुष्य तुम्हारा अपमान करता है, तो उसे क्षमा कर दो, क्योंकि क्षमा करना वीरों का काम है।’ 
* ईसा मसीह ने भी सूली पर चढ़ते हुए कहा यही कहा था कि- ‘हे ईश्वर! इन्हें क्षमा करना, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।’ 
* कुरान शरीफ में भी लिखा है- ‘जो वक्त पर धैर्य रखे और क्षमा कर दे, तो निश्चय ही यह बड़े साहस के कामों में से एक है।’  
* स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि- तमाम बुराई के बाद भी हम अपने आपको प्यार करना नहीं छोड़ते तो फिर दूसरे में कोई बात नापसंद होने पर भी उससे प्यार क्यों नहीं कर सकते? 

इसी तरह भगवान महावीर स्वामी और हमारे अन्य संत-महात्मा भी प्रेम और क्षमा भाव की शिक्षा देते हैं। अत: यही सत्य है कि हर मनुष्य के अंदर क्षमा भाव का होना बहुत जरूरी है। जिसके जीवन में क्षमा है, वही महानता को प्राप्त कर सकता है।
क्षमावाणी हमें झुकने की प्रेरणा देती है। दसलक्षण पर्व हमें यही सीख देता है कि क्षमावाणी के दिन हमें अपने जीवन से सभी तरह के बैर भाव-विरोध को मिटाकर प्रत्येक व्यक्ति से क्षमा मांगनी चाहिए। यही क्षमावाणी है।चाहे छोटा हो या बड़ी क्षमा पर्व पर सभी से दिल से क्षमा मांगी जानी चाहिए।क्षमा सिर्फ उससे नहीं मांगी जानी चाहिए, जो वास्त‍व में हमारा दुश्मन है। बल्कि हमें हर छोटे-बड़े जीवों से क्षमा मांगनी चाहिए।
जब हमें क्रोध आता है तो हमारा चेहरा लाल हो जाता है और जब क्षमा मांगी जाती है तो चेहरे पर हंसी-मुस्कुराहट आ जाती है। क्षमा हमें अहंकार से दूर करके झुकने की कला सीखाती है।
क्षमावाणी पर्व पर क्षमा को अपने जीवन में उतारना ही सच्ची मानवता है।हम क्षमा उससे मांग‍ते हैं, जिसे हम धोखा देते है। जिसके प्रति मन में छल-कपट रखते है। जीवन का दीपक तो क्षमा मांग कर ही जलाया जा सकता है। अत: हमें अपनी प‍त्नी, बच्चों, बड़े-बुजुर्गों सभी से क्षमा मांगना चाहिए।क्षमा मांगते समय मन में किसी तरह का संकोच, किसी तरह का खोट नहीं होना चाहिए। हमें अपनी आत्मा से क्षमा मांगनी चाहिए, क्योंकि मन के कषायों में फंसकर हम तरह-तरह के ढ़ोंग, स्वांग रचकर अपने द्वारा दूसरों को दुख पहुंचाते हैं। उन्हें गलत परिभाषित करने और नीचा दिखाने के चक्कर में हम दूसरों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखते जो कि सरासर गलत है।दसलक्षण पर्व के दिनों में किया गया त्याग और उपासना हमें जीवन की सच्ची राह दिखाते हैं। हमें तन, मन और वचन से चोरी, हिंसा, व्याभिचार, ईर्ष्या, क्रोध, मान, छल, गाली, निंदा और झूठ इन दस दोषों से दूर रहना चाहिए।

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क्षमावाणी पर्व से पूर्व साधनामयी दसलक्षण महापर्व के दस धर्मों की शिक्षा –

  •  उत्तम क्षमा – क्षमा को धारण करने वाला समस्त जीवों के प्रति मैत्रीभाव को दर्शाता है।
  •  उत्तम मार्दव – मनुष्य के मान और अहंकार का नाश करके उसकी विनयशीलता को दर्शाता है।
  •  उत्तम आर्जव – इस धर्म को अपनाने से मनुष्य निष्कपट एवं राग-द्वेष से दूर होकर सरल ह्रदय से जीवन व्यतीत करता है।
  • उत्तम शौच – अपने मन को निर्लोभी बनाने की सीख देता है, उत्तम शौच धर्म। अपने जीवन में संतोष धारण करना ही इसका मुख्य उद्देश्य है !
  • उत्तम सत्य – जब जीवन में सत्य धर्म अवतरित हो जाता है, तब मनुष्य की संसार सागर से मुक्ति निश्चित है।
  • उत्तम संयम – अपने जीवन में संयम धारण करके ही मनुष्य का जीवन सार्थक हो सकता है।
  • उत्तम तप – जो मनुष्य कठिन तप के द्वारा अपने तन-मन को शुद्ध करता है, उसके कई जन्मों के कर्म नष्ट हो जाते हैं!
  • उत्तम त्याग – जीवन के त्याग धर्म को अपना कर चलने वाले मनुष्य को मुक्ति स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है।
  • उत्तम आंकिचन्य – जो मनुष्य जीवन के सभी प्रकार के परिग्रहों का त्याग करता है। उसे मोक्ष सुख की प्राप्ति अवश्य होती है।
  • उत्तम ब्रह्मचर्य – जीवन में ब्रह्मचर्य धर्म के पालन करने से मोक्ष की प्राप्त अवश्य होती है।इस प्रकार दस धर्मों को अपने जीवन में अपना कर जो व्यक्ति इसके अनुसार आचरण करता है, वह निश्चित ही निर्वाण पद को प्राप्त कर सकता है।

इनका अनुक्रम एक साइकल की तरह है , क्षमा से क्रोध, मार्दव से अहंकार, आर्जव से मायाचारी, शौच से लालच वृत्ति का त्याग किया जाता है ! जीवन में से इन अशुभ वृत्तियों के छूट जाने पर ही सत्य उपलब्ध होता है फिर संयम की भावना के साथ तप धारण किया जाता है । तप से कर्म निर्जरा पूर्वक यह आत्मा ब्रह्म में लीन होती है ।
भगवान महावीर ने हमें ये आत्मकल्याण के लिए दस धर्मों के दस दीपक दिए हैं। प्रतिवर्ष दसलक्षण महापर्व आकर हमारे अंत:करण में दया, क्षमा और मानवता जगाने का कार्य करता है।
जैसे हर दीपावली पर घर की साफ-सफाई की जाती है, उसी प्रकार दसलक्षण महापर्व मन की सफाई करने वाला पर्व है। इसीलिए हमें सबसे पहले क्षमा-याचना हमारे मन से करनी चाहिए। जब तक मन की कटुता दूर नहीं होगी, तब तक क्षमावाणी पर्व मनाने का कोई अर्थ नहीं है अत: जैन धर्म क्षमाभाव ही सिखाता है। हमें भी रोजमर्रा की सारी कटुता, कलुषता को भूलकर एक-दूसरे से माफी मांगते हुए और एक-दूसरे को माफ करते हुए सभी गिले-शिकवों को दूर कर क्षमा-पर्व मनाना चाहिए।
दिल से मांगी गई क्षमा हमें सज्जनता और सौम्यता के रास्ते पर ले जा‍ती है। आइए, इस क्षमा-पर्व पर हम अपने मन में क्षमाभाव का दीपक जलाएं और उसे कभी बुझने न दें ताकि क्षमा का मार्ग अपनाते हुए धर्म के रास्ते पर चल सकें।दसलक्षण महपर्व के यह दस दिन हमें इस तरह की शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा देते है और निरंतर क्षमा के पथ पर आगे बढ़ाते हुए मोक्ष की प्राप्ति कराते हैं।

खम्मामि सव्व जीवाणां, सव्वे जीवा खमंतु मे !
मैत्ती मे सव्व भूदेसू, बैरं मज्झं ण केण वि !!
अर्थात् मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूं और सभी जीवों से क्षमा मांगता हूं ! सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्री (मित्रता, प्रेम) का भाव है, किसी भी जीव से रंचमात्र भी बैर , विद्वेष नहीं है !! ऐसी मंगलकारी भावना के साथ क्षमावाणी पर्व के दिन बिना किसी संकोच के तन-मन से प्राणीमात्र से क्षमायाचना मांगना और क्षमा करना ही मानवीय जैनधर्म का धर्मयोगी उद्देश्य है।

धर्मयोगी (डॉ.) क्षु. योगभूषण महाराज
(संस्थापक – धर्मयोग फाउण्डेशन)

 

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