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कनक भवन : द्वापर युग और त्रेता युग दोनों से जुड़ा है इस कनक भवन का इतिहास

अयोध्या नगरी में श्रीराम मदिर भूमि पूजन की तैयारियां अपने चरम पर हैं।अनुष्ठान शुरू किये जा चुके हैं।श्रीरामजन्मभूमि मंदिर निर्माण शुरू होने के साथ रामनगरी के पौने दो सौ जर्जर पौराणिक मंदिरों के पुनरुद्धार की तैयारी भी शुरू है।



इन्हीं मंदिरों में से एक है कनक भवन। कभी द्वापर युग में भगवान कृष्ण भी राम की पूजा करने अयोध्या आए थे तो यहां एक टीले पर मां पद्मासना को तपस्या करते देख वहां विशाल कनक भवन मंदिर का निर्माण कराया था।

ऐसा भी कहा जाता है कि रानी कैकेयी ने कनक भवन को माता सीता को मुंह दिखाई में दिया था। कालांतर में कई बार इस मंदिर का निर्माण और जीर्णोद्धार होता रहा है। वर्तमान मंदिर 1891 में ओरक्षा की रानी का बनवाया हुआ है। अयोध्या आने वाले श्रद्धालु हनुमानगढ़ी, श्रीरामजन्मभूमि के साथ कनक भवन अवश्य जाते हैं।

जानिये क्या है पौराणिक कथा
ऐसा कहा जाता है कि त्रेता युग में मिथिला में महाराज जनक की सभा में जब श्रीराम ने भगवान शंकर के धनुष को भंग कर दिया, तब जानकी ने उनके गले में जयमाला डाल दी। उस रात्रि प्रभु यह विचार करने लगे कि जनकनंदिनी वैदेही अब हमारी अयोध्या जाएंगी। इसलिए उनके लिए वहां अति सुंदर भवन होना चाहिए। जिस क्षण श्रीराम के मन में यह कामना उठी, उसी क्षण अयोध्या में महारानी कैकेयी को स्वप्न में साकेत धाम वाला दिव्य कनक भवन दिखाई पड़ा। महारानी कैकेयी ने महाराजा दशरथ से स्वप्न में दिखे कनक भवन की प्रतिकृति अयोध्या में बनाने की इच्छा व्यक्त की।

विश्वकर्मा ने किया कनक भवन का निर्माण

राजा दशरथ के आग्रह पर शिल्पी विश्वकर्मा कनक भवन के निर्माण के लिए अयोध्या आए। उन्होंने अति सुंदर कनक भवन बनाया। माता कैकेयी ने वह भवन अपनी बहू सीता को मुंह-दिखाई में दिया। विवाह के बाद राम-सीता इसी भवन में रहने लगे। इसमें असंख्य दुर्लभ रत्न जड़े हुए थे।

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द्वापर युग से भी जुड़ा है कनक भवन का इतिहास

एक मान्यता यह भी है कि द्वापर में श्रीकृष्ण अपनी पटरानी रुक्मिणी सहित जब अयोध्या आए, तब तक कनक भवन टूट-फूट कर एक ऊंचा टीला बन चुका था। भगवान श्रीकृष्ण ने उस टीले पर परम आनंद का अनुभव किया।

उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से यह जान लिया कि इसी स्थान पर कनक भवन व्यवस्थित था। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अपने योग-बल द्वारा उस टीले से श्रीसीताराम के प्राचीन विग्रहों को प्राप्त कर वहां स्थापित कर दिया। दोनों विग्रह अनुपम और विलक्षण हैं। इनका दर्शन करते ही लोग मंत्रमुग्ध होकर अपनी सुध-बुध भूल जाते है। वास्तव में कनक भवन सीता-राम का अन्त:पुर है।

सम्राट विक्रमादित्य ने करवाया जीर्णोद्धार

आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व सम्राट विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाकर सीताराम के युगल विग्रहों को वहां पुन: प्रतिष्ठित किया था। महाराज विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया विशाल कनक भवन एक हजार वर्ष तक ज्यों का त्यों बना रहा। बीच-बीच में उसकी मरम्मत होती रही।



इसके जीर्णोद्धार की दूसरी सहस्त्राब्दि में अयोध्या पर अनेक बार यवनों का आक्रमण हुआ, जिसमें लगभग सभी प्रमुख देव स्थान क्षतिग्रस्त हुए। कनक भवन भी तोड़ा गया।

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