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होलाष्टक में क्या करें, क्या ना करें?

होलाष्टक में क्या करें, क्या ना करें?

इस वर्ष 2 मार्च, 2020 से आरम्भ हुआ होलाष्टक 9 मार्च 2020 को समाप्त होगा। 8 दिनों तक चलने वाले होलाष्टक को अशुभ माना गया है।

होली से पहले आठ दिनों तक चलने वाला होलाष्टक इस वर्ष 2 मार्च 2020 से शुरू हो चुका है। हिंदू धर्म में होलाष्टक के दिनों को अशुभ माना गया है। होलाष्टक की शुरुआत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है।होलाष्टक में दो शब्दों का योग है। होली और अष्टक यहां पर होलाष्टक का अर्थ है होली से पहले के आठ दिन।

फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक रहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन चैत्रकृष्ण प्रतिपदा में रंग खेला जाता है। होलाष्टक के दिन से ही होलिका दहन के लिए लकड़ियां रखी जाती है। जिस जगह होलिका दहन होगा उस जगह होली की लकड़ियां रखना शुरू होता है। भारत में कई जगह रंग को धुल्हैंडी भी कहा जाता है।

इसका समापन फाल्गुन की पूर्णिमा को होता है और इसी दिन होलिका दहन की परंपरा है। इस साल 2 मार्च, 2020 से लगने वाला होलाष्टक 9 मार्च को खत्म होगा। होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जो होली, होलिका या फाल्गुनी नाम से मनाया जाता है । इसे वसंतोत्सवऔर काम-महोत्सव भी कहा जाता  है।

फाल्गुन पूर्णिमा के दिन सायंकाल शुभ मुहूर्त में अग्निदेव की शीतलता एवं स्वयं की रक्षा के लिए उनकी पूजा करके होलिका दहन किया जाता है।

देश के कई हिस्सों में होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड़ की शाखा काटकर उसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े काटकर बांध देते हैं और उसे जमीन में गाड़ते हैं। इसे भक्त प्रह्लाद का प्रतीक माना जाता है। इसी के नीचे होलिकोत्सव मनाया जाता है।
सत्ययुग में हिरण्यकशिपु, जो पहले विष्णु जी का जय नाम का पार्षद था और शाप के कारण दैत्य के रूप में जन्म लिया था, ने घोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया। वरदान के अहंकार में उसने देवताओं सहित सबको हरा दिया। उधर विष्णु जी ने अपने भक्त के उद्धार के लिए अपना अंश उसकी पत्नी कयाधू के गर्भ में पहले ही स्थापित कर दिया। प्रह्लाद जन्म से ही नारद जी की कृपा से ब्रह्मज्ञानी हो गए थे।एक पौराणिक कथा के अनुसार प्रह्लाद की भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने होली से पहले के आठ दिनों में उन्हें अनेक प्रकार के कष्ट और यातनाएं दीं। इसलिए इसे अशुभ माना गया है।
प्रह्लाद का विष्णु भक्त होना उनके पिता हिरण्यकशिपु को अच्छा नहीं लगता था। अन्य बच्चों पर विष्णु भक्ति का प्रभाव पड़ता देख, प्रह्लाद को भक्ति से रोकने के लिए हिरण्यकशिपु ने फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को उन्हें बंदी बना लिया। जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दीं, लेकिन प्रह्लाद भयभीत नहीं हुए। विष्णु कृपा से हर बार बच गए। इसी प्रकार सात दिन बीत गए। अपने भाई हिरण्यकशिपु की परेशानी देख आठवें दिन उसकी बहन होलिका, जिसे ब्रह्मा जी ने अग्नि से न जलने का वरदान दिया था, अपने भतीजे प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि में प्रवेश कर गई। देवकृपा से वह स्वयं ही जल मरी, प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। नृसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु का वध किया। तभी से भक्ति पर आए इस संकट के कारण, इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है।
एक अन्य कथा अनुसार, इन्हीं होलाष्टक के दिनों में भगवान शिव ने कामदेव को भी भस्म किया था।

समझें क्यों नही करने चाहिए होलाष्टक में शुभ कार्य

होलाष्टक में शुभ कार्य न करने की ज्योतिषीय वजह यह है कि इन दिनों वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बहुत अधिक रहता है।
होलाष्टक अष्टमी तिथि से आरंभ होता है। अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक अलग-अलग ग्रहों का प्रभाव बहुत अधिक रहता है। जिस कारण इन दिनों में शुभ कार्य न करने की सलाह दी जाती है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की इन 8 दिनों में ग्रह अपने स्थान में बदलाव करते हैं। इसी वजह से ग्रहों के चलते इस अशुभ समय के दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य करने से व्यक्ति के जीवन में कष्ट, दर्द का प्रवेश होता है। अगर इस समय में कोई विवाह कर ले तो भविष्य में कलह का शिकार या संबंधों में टूट पड़ सकती है।
इनमें अष्टमी तिथि को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चुतर्दशी को मंगल तो पूर्णिमा को राहू की ऊर्जा काफी नकारात्मक रहती है।
इसी कारण यह भी कहा जाता है कि इन दिनों में जातकों के निर्णय लेने की क्षमता काफी कमजोर होती है जिससे वे कई बार गलत निर्णय भी कर लेते हैं जिससे हानि होती है।
होलाष्टक के दौरान करें ये विशेष पूजा
1. होलाष्टक के दिनों को भक्तों को लड्डू गोपाल की पूजा विधि विधान से करनी चाहिए। पूजा के दौरान गाय के शुद्ध घी और मिश्री से हवन करना चाहिए। इस विधि से संतान प्राप्ति के योग बनते हैं।
2. होलाष्टक में जौ, तिल और शक्कर से हवन करने से आपको अपने करियर में तरक्की मिलेगी।
3. होलाष्टक के दिनों में कनेर के फूल, गांठ वाली हल्दी, पीली सरसों और गुड़ से हवन करने से धन-संपत्ति में वृद्धि के योग बनते हैं।
4. इसी के साथ ही अगर आप होलाष्टक के दिनों में भगवान शिव का महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं तो आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। इससे शरीर के सभी रोग दूर होते हैं।
होलाष्टक में नकारात्मकता का प्रभाव
हिंदू धर्म ग्रंथों और पौराणिक मान्यताओं के आधार पर बताया जाता है कि होलाष्टक के समय में भक्त प्रह्लाद को अनेक प्रकार की यातनाएं दी गई थीं, इसलिए इस 8 दिनों के समय को नकारात्मकता वाला माना जाता है। इसी के चलते इन दिनों में किसी तरह के मांगलिक कार्य से दूर रहा जाता है।
होलाष्टक में करें भगवान की वंदना
होलाष्टक के आठ दिनों के बीच आपको भगवान का भजन, जप, तप आदि करना चाहिए। कहा जाता है इन दिनों में भक्त प्रह्लाद पर कष्टों की बौछार की गई। जिसके चलते उनके काफी कष्ट हुआ। वहीं इन दिनों भगवान विष्णु या फिर अपने इष्टदेव की आराधना करनी चाहिए। जिस प्रकार भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद के सभी संकटों का निवारण किया था, ठीक वैसे ही भगवान आपके कष्टों को भी दूर करेंगे।
Post By Religion World