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गुरु रामदासजी लंगर भवन : दुनिया की सबसे बड़ी समुदायिक रसोई

गुरु रामदासजी लंगर भवन: दुनिया की सबसे बड़ी समुदायिक रसोई

कहते हैं गुरूद्वारे में आपको धर्म और जाति के दायरे के ऊपर समानता की मिसाल नज़र आती है। और इसका यदि आपको अनूठा उदहारण देखना है तो दुनिया के किसी भी गुरूद्वारे में चले जाइये आपको अद्भुत नज़ारा देखने को मिलेगा। वहां बैठकर लंगर ग्रहण करने वाला व्यक्ति अमीर हो गरीब हो, ऊंची जाति का हो नीची जाति का हो या किसी भी धर्म का हो; सब एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं।

अमृतसर के हरमंदिर साहिब का लंगर बेमिसाल है। दुनिया में सबसे विशाल सामुदायिक रसोई के तौर पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर स्थित गुरु रामदासजी लंगर भवन कई मायने में बेजोड़ है।

लंगर तो लगभग आप सभी ने किया होगा लेकिन क्या आप जानते हैं की लंगर की शुरुआत कब से हुयी और कहाँ हुयी।

कब से शुरू हुयी लंगर की परंपरा ?

ऐतिहासिक कहानियों की माने तो, ऐसा कहा जाता है कि एक बार सिखों के पहले गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए कुछ पैसे दिए, जिसे देकर उन्होंने कहा कि वो बाज़ार से सौदा करके कुछ लाभ कमा कर लाये. नानक देव जी इन पैसों को लेकर जा ही रहे थे कि उन्होंने कुछ भिखारियों और भूखों को देखा, उन्होंने वो पैसे भूखों को खिलाने में खर्च कर दिए और खाली हाथ घर लौट आये. नानक जी की इस हरकत से उनके पिता बहुत गुस्सा हुए, जिसकी सफ़ाई में नानक देव जी ने कहा कि सच्चा लाभ तो सेवा करने में है।

गुरु नानक देव जी द्वारा शुरू किये गए इस सेवा भाव को उनके बाद के सभी 9 गुरुओं ने बनाये रखा और लंगर जारी रहा।

एक अन्य कहानी के अनुसार, बादशाह अकबर, लंगर से इतने प्रभावित थे कि एक बार वो खुद लंगर खाने पहुंचे और लोगों के बीच में बैठ कर खाना खाया। सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी ने यहां तक कहा है कि लंगर में खाये बिना आप ईश्वर तक नहीं पहुंच सकते।

तभी से लगभग हर गुरुद्वारे में लंगर लगा कर लोगों की सेवा की जाती है, जिसमें लोग अपनी इच्छा से नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। गुरु नानक देव जी द्वारा शुरू की गई लंगर परम्परा क्योंकि सच्चा धर्म तो सेवा करने में है।

गुरु रामदासजी लंगर भवन, अमृतसर

अमृतसर के हरमंदिर साहिब का लंगर वाकई दुनिया में एक अनूठा उदाहरण होगा। दुनिया में सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई के तौर पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर स्थित गुरु रामदासजी लंगर भवन कई मायने में बेमिसाल है।

आमतौर पर यहां एक लाख लोगों का भोजन तैयार होता है और सभी धर्मो, जातियों, क्षेत्रों, देशों सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वर्ग के लोग यहां भोजन करते हैं, जिनमें बच्चों से लेकर बूढ़े शामिल होते हैं।

लंगर के वरिष्ठ प्रभारी वजीर सिंह जी हैं. वह बताते हैं की हरमिंदर साहिब में दिन-रात चौबीसों घंटे लंगर जारी रहता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। लंगर की शुरुआत सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव ने की थी. नानक देव ही सिख धर्म के प्रथम गुरु थे. उनके बाद के गुरुओं ने लंगर की पंरपरा को आगे बढ़ाया।

दिन हो या रात यहां हर समय श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है, जो स्वेच्छा से लंगर में सेवा करने को तत्पर रहते हैं। यहां सेवा कार्य को गुरु का आशीर्वाद समझा जाता है। लंगर में हाथ बंटाने को सैकड़ों स्वयंसेवी तैयार रहते हैं।

कहाँ कहाँ जाता है भोजन

लंगर में तैयार भोजन रोजाना तीन बार अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा संचालित दो अस्पतालों में भेजा जाता है। खासतौर से उस वार्ड में भोजन जरूर भेजा जाता है, जहां मानसिक रोगों के मरीजों और नशीली दवाओं के आदी लोग उपचाराधीन अस्पताल में भर्ती होते हैं। एसपीजीसी के पास सभी सिख गुरुद्वारों के संचालन का दायित्व है।

हरमिंदर साहिब में करीब 500 स्वयंसेवी कार्यकर्ता हैं। लोग यहां अत्यंत श्रद्धा के साथ रोज संगत में शामिल होते हैं। पूरे पंजाब से ट्रकों व ट्रैक्टर ट्रॉलियों में लोग यहां पहुंचते हैं। इसके अलावा विभिन्न प्रांतों व देशों के लोग भी यहां लंगर में सेवा प्रदान करने के लिए आते हैं। स्थानीय निवासी वर्षों से इस सेवा कार्य में हिस्सा ले रहे हैं. महिलाएं व पुरुष सभी अपनी सरकारी व निजी नौकरियों से समय निकालकर यहां अपनी सेवा देने आते हैं, उनमें सभी धर्मो व जातियों के लोग शामिल होते हैं। और सभी का यहाँ स्नेह से स्वागत होता है.”

क्या होती है लंगर की सामग्रियां

हरमिंदर साहिब की इस बड़ी रसोई में लंगर की पूरी सामग्री शाकाहारियों के लिए होती है। लंगर के भोजन में दाल, चावल, चपाती, अचार और एक सब्जी शामिल होते हैं। इसके साथ ही मीठे  के तौर पर खीर होती है। सुबह में चाय लंगर होता है, जिसमें चाय के साथ मठरी होती है.

श्रद्धालु लंगर भवन में लगे गलीचे पर कतार में बैठकर भोजन करते हैं. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एसजीपीसी के स्वयंसेवी एक बार में सिर्फ 100 लोगों को प्रवेश की अनुमति देते हैं। पूरी सावधानी से रोजाना पूरी व्यवस्था का संचालन किया जाता है।

कितनी सामग्री की होती है खपत

गुरु रामदासजी लंगर भवन में 100 कुंटल चावल और प्रति कुंटल चावल पर 30-30 किलोग्राम से अधिक दाल व सब्जियों का उपयोग रोज किया जाता है। इसके अलावा रसोई तैयार करने में 100 से अधिक एलपीजी सिलिंडर की खपत रोज होती है. इसके अलावा सैकड़ों किलोग्राम जलावन का भी इस्तेमाल किया जाता है। 250 किलोग्राम देसी घी की भी खपत है। इस लंगर भवन में स्टील की तीन लाख से अधिक थालियां हैं। जिसमें रोजाना 10 लाख लोगों को भोजन परोसा जा सकता है।

कैसे बनती है चपातियाँ

गुरु रामदासजी लंगर भवन में चपाती बनाने के लिए आठ मशीनें हैं, जिनसे हजारों चपाती बनाई जाती है. इसके अलावा महिलाएं व पुरुष स्वयंसेवी हाथ से भी चपाती बनाते हैं।

अमृतसर और आस-पास के 30,000-35,000 लोग रोज गुरुद्वारा पहुंचते हैं और तीन वक्त लंगर में शामिल होते हैं। इनमें ज्यादातर दूसरे प्रदेशों के आप्रवासी और गरीब लोग हैं, जो खुद भोजन का जुगाड़ नहीं कर पाते हैं।

बिना किसी भेदभाव के यहाँ के दरवाजे सबके लिए खुले हैं। यहाँ समानता की अवधारणा का अनुपालन होता है।

Post By Shweta