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गोवर्धन पूजा: क्यों लगता है गिरिराज जी को अन्नकूट का भोग,जानिए गोवर्धन की कथा

गोवर्धन पूजा को देश में कई जगह इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। इसमें घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन नाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते है। उसके बाद गिरिराज भगवान (पर्वत) को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।

पहले सुबह पांच बजे स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर अपने इष्ट का ध्यान करें। इसके बाद अपने निवास स्थान या देवस्थान के मुख्य द्वार के सामने प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाएं। फिर उसे वृक्ष, वृक्ष की शाखा एवं पुष्प इत्यादि से शृंगारित करें। इसके बाद गोवर्धन पर्वत का अक्षत, पुष्प आदि से विधिवत पूजन करें।

गोवर्धन की कथा जानिए

इंद्र का गर्व चूर करने के लिए श्री गोवर्धन पूजा का आयोजन श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों से करवाया था। इस दिन मंदिरों में अन्नकूट पूजन किया जाता है। ब्रज में इस त्योहार का विशेष महत्व है। इसकी शुरुआत द्वापर युग से मानी जाती है।पौराणिक कथा के अनुसार उस समय लोग इंद्र देवता की पूजा करते थे। अनेकों प्रकार के भोजन बनाकर तरह-तरह के पकवान व मिठाइयों का भोग लगाते थे। यह आयोजन एक प्रकार का सामूहिक भोज का आयोजन है। उस दिन अनेकों प्रकार के व्यंजन साबुत मूंग, कढ़ी चावल, बाजरा तथा अनेकों प्रकार की सब्जियां एक जगह मिलकर बनाई जाती थीं। इसे अन्नकूट कहा जाता था। मंदिरों में इसी अन्नकूट को सभी नगरवासी इकट्ठा कर उसे प्रसाद के रूप में वितरित करते थे।

यह आयोजन इसलिए किया जाता था कि शरद ऋतु के आगमन पर मेघ देवता देवराज इंद्र को पूजन कर प्रसन्न किया जाता कि वह ब्रज में वर्षा करवाएं जिससे अन्न पैदा हो तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण हो सके। एक बार श्रीकृष्ण ग्वालबालों के साथ गायें चराते हुए गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे वह देखकर हैरान हो गए कि सैकड़ों गोपियां छप्पन प्रकार के भोजन बनाकर बड़े उत्साह से उत्सव मना रही थीं। श्रीकृष्ण ने गोपियों से इस बारे पूछा। गोपियों ने बतलाया कि ऐसा करने से इंद्र देवता प्रसन्न होंगे और ब्रज में वर्षा होगी जिसमें अन्न पैदा होगा। कृष्ण ने गोपियों से कहा कि इंद्र देवता में ऐसी क्या शक्ति है जो पानी बरसता है। इससे ज्यादा तो शक्ति इस गोवर्धन पर्वत में है। इसी कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र देवता के स्थान पर इस गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। ब्रजवासी श्रीकृष्ण के बताए अनुसार गोवर्धन की पूजा में जुट गए। सभी ब्रजवासी घर से अनेक प्रकार के मिष्ठान बना गोवर्धन पर्वत की तलहटी में पहुंचकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किए इस अनुष्ठान को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा तथा क्रोधित होकर अहंकार में मेघों को आदेश दिया कि वे ब्रज में मूसलाधार बारिश कर सभी कुछ तहस-नहस कर दें। मेघों से ब्रज में मूसलाधार बारिश होने तथा सभी कुछ नष्ट होते देख ब्रजवासी घबरा गए तथा श्रीकृष्ण के पास पहुंचकर इंद्र देवता के कोप से रक्षा का निवेदन करने लगे। ब्रजवासियों की पुकार सुनकर कृष्ण जी बोले- सभी नगरवासी अपनी सभी गउओं सहित गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो। गोवर्धन पर्वत ही सबकी रक्षा करेंगे। सभी ब्रजवासी अपने पशु धन के साथ गोवर्धन पर्वत की तलहटी में पहुंच गए। तभी भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता सा तान दिया। सभी ब्रजवासी अपने पशुओं सहित उस पर्वत के नीचे जमा हो गए। सात दिन तक मूसलाधार वर्षा होती रही। सभी ब्रजवासियों ने पर्वत की शरण में अपना बचाव किया। सातवें दिन श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा तथा ब्रजवासियों से कहा कि आज से प्रत्येक ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत की प्रत्येक वर्ष अन्नकूट द्वारा पूजा-अर्चना कर पर्व मनाया करें। इस उत्सव को तभी से अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

Post By Shweta