Post Image

इस बार गणेश चतुर्थी पर है इकोफ्रेंडली गणेश की धूम

इस बार गणेश चतुर्थी पर है इकोफ्रेंडली गणेश की धूम

गणपति उत्सव शुरू हो चूका है. इस बार गणेशोत्सव  2 सितंबर को इको फ्रेंडली मूर्तियों के साथ मनाया जा रहा है। आइये जानते हैं इकोफ्रेंडली गणेशा के बारे में-

 चॉकलेट की मूर्ति

चॉकलेट मॉडलिंग के साथ बनाई गई गणेश प्रतिमाएं पूरी तरह से इडेबल और इको फ्रेंडली हैं। इसे आसानी से दूध में विसर्जत कर प्रसाद के रूप में लिया जा सकता है। इतना ही नहीं, इससे पर्यावरण को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता है। ये सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद हैं। मिठी होने के कारण इसमें कैलोरी अधिक है। इन गणेश प्रतिमाओं में ब्लैक-व्हाइट चॉकलेट का इस्तेमाल किया गया है। इसे डेकोरेट करने के लिए सुगर बॉल्स का इस्तेमाल किया हुआ है। प्रतिमा को कलर फुल बनाने के लिए चॉकलेट में ईडेबल कलर मिक्स किए गए हैं।

गोबर से बनी मूर्ति 

जी हां, हैरानी की बात तो है लेकिन कुछ जगहों पर गोबर और पेपर की मदद से भी मूर्तियां बनाई जाती हैं। इनकी कीमत भले ही थोड़ी ज्यादा हो लेकिन अगर प्रकृति के लिए कुछ करना है तो थोड़ी सी कीमत ज्यादा देने में कोई बुराई नहीं है।

इकोफ्रेंडली कॉम्बिनेशन 

कई मूर्तियां ऐसी भी होती हैं जो एक नहीं बल्कि कई तरह के नैचरल चीजों से बनी होती हैं। इन्हें बनाने के लिए मिट्टी, पेपर, कुमकुम, नैचरल कलर्स आदि का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे मूर्ति का कोई भी हिस्सा प्रकृति को नुकसान नहीं पहुंचाता।

 

मिट्टी की मूर्ति 

पीओपी की जगह मिट्टी से बनी मूर्ति लाएं। हालांकि, यह ध्यान रखें कि मार्केट में कई बार पीओपी की मूर्तियों को ही दुकानदार मिट्टी की बताकर बेच देते हैं, इसलिए मूर्ति लेते वक्त खास सावधानी बरतें।

यह भी पढ़ें-आखिर क्यों नहीं देखना चाहिए गणेश चतुर्थी का चांद?

पौधे के बीज वाली मूर्ति 

आजकल मार्केट में ऐसी मूर्तियां भी मिलती हैं जो मिट्टी से तो बनी होती ही हैं साथ ही में इनमें किसी पौधे का बीज भी होता है। मूर्ति को गमले में डालकर विसर्जित किया जाए तो इसमें मौजूद बीज मिट्टी के साथ मिल जाता है और थोड़े दिनों बाद पौधा उगने लगता है।

पेपर से बनी मूर्ति 

मार्केट में पेपर मैश से बनी मूर्तियां भी मिलती हैं। हालांकि, ऐसी मूर्तियां आप कहां खरीद सकते हैं यह पता लगाने के लिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ सकती है क्योंकि कम ही लोग इसे बनाते हैं। पेपर से बनी मूर्ति विसर्जन के बाद आसानी से मिट्टी के साथ घुल जाती हैं और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं।

Post By Shweta