Ekdant Sankashti Chaturthi 2025: संकटों से मुक्ति कैसे मिलेगी?
“एकदंत संकष्टी चतुर्थी” भगवान गणेश को समर्पित एक विशेष व्रत है, जो हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। जब यह चतुर्थी किसी विशेष दिन, जैसे कि शुक्रवार या किसी शुभ नक्षत्र के साथ आती है, तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। मई 2025 में यह पावन व्रत 16 मई को मनाया जा रहा है, जिसे “एकदंत संकष्टी चतुर्थी” कहा जा रहा है।
इस दिन भगवान गणेश के “एकदंत” स्वरूप की पूजा की जाती है। एकदंत का अर्थ है — “एक दांत वाले”, जो उनके अद्वितीय स्वरूप का प्रतीक है। यह स्वरूप उनके त्याग, बलिदान और अडिग संकल्प का प्रतीक माना जाता है।
व्रत का महत्व
हिंदू धर्म में गणपति को “विघ्नहर्ता” कहा गया है — जो जीवन के सभी कष्टों और बाधाओं को हर लेते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से न केवल मानसिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि व्यक्ति के जीवन की जटिल समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी माना गया है जो रोग, ऋण, बाधाएं या संतान-संबंधी समस्याओं से पीड़ित हों।
संकटों से मुक्ति कैसे मिलती है?
1. व्रत के माध्यम से आत्मसंयम और तप का बल मिलता है
जब व्यक्ति उपवास करता है, वह अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करता है। यह नियंत्रण मन को स्थिर करता है, और नकारात्मक सोच दूर होने लगती है। इससे मानसिक तनाव, डर और असमंजस से मुक्ति मिलती है।
2. गणेश पूजन से शुभता और सकारात्मक ऊर्जा आती है
गणपति की पूजा में प्रयोग होने वाली वस्तुएं जैसे दूर्वा, मोदक, लाल पुष्प — ये सभी मानसिक और आध्यात्मिक स्तर पर शुभ ऊर्जा को आकर्षित करती हैं। इससे जीवन में सुखद परिस्थितियाँ बनने लगती हैं।
3. मंत्र-जप और आरती से नकारात्मकता दूर होती है
“ॐ गं गणपतये नमः” जैसे मंत्रों का उच्चारण वातावरण को शुद्ध करता है और मन की चंचलता समाप्त करता है। इससे निर्णय शक्ति बढ़ती है और गलतियों की संभावना घटती है।
4. चंद्रमा को अर्घ्य देने से भावनात्मक संतुलन मिलता है
चंद्रमा मन का प्रतीक है। उसे अर्घ्य देना एक प्रतीकात्मक क्रिया है जो व्यक्ति को अपने भावनात्मक संकटों से ऊपर उठने में सहायता करती है।
5. प्रार्थना से ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है
जब हम सच्चे मन से गणेश जी से प्रार्थना करते हैं, तो एक अदृश्य शक्ति हमारे भीतर आशा और धैर्य भर देती है। यही शक्ति हमें संघर्षों में भी अडिग बनाए रखती है।
एकदंत चतुर्थी पर यह प्रार्थना करें:
“हे एकदंत गणेश!
मेरे जीवन से संकट, रोग, भय, और बाधाएं दूर करें।
मेरी बुद्धि को शुद्ध करें और मन को स्थिर करें।
मुझे सही निर्णय लेने की शक्ति दें,
और हर कार्य में सफलता का आशीर्वाद प्रदान करें।”
कैसे करें पूजा?
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
भगवान गणेश का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
दिनभर व्रत रखें – चाहे फलाहार करें या निर्जला उपवास।
शाम की पूजा विधि:
संध्या को पूजा स्थान साफ करके वहां गणेश जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
भगवान को लाल फूल, दूर्वा, रोली, अक्षत, मोदक या लड्डू अर्पित करें।
“ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें या गणेश चालीसा पढ़ें।
गणेश जी की आरती करें – “जय गणेश जय गणेश देवा…”
जब चंद्रमा उदित हो जाए (16 मई को लगभग 9:08 PM), तब चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करें।
इसके बाद व्रत खोलें।
विशेष मंत्र और प्रार्थना
“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”
यह मंत्र पूजा के दौरान कई बार दोहराएं – इससे बुद्धि, शक्ति और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।
~ रिलीजन वर्ल्ड ब्यूरो