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पापांकुशा एकादशी आज : किसी की निंदा न करने का सीख देने वाला व्रत

पापांकुशा एकादशी 1 अक्तूबर 2017 (रविवार) को 

(भगवान विष्णु का स्नेह पाने के लिए एकादशी व्रत करें)

आज आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। शास्त्रों में इस एकादशी को पापांकुशा एकादशी कहा गया है। अपने नाम के अनुसार यह एकादशी पाप कर्मों के प्रभाव को दूर करके पुण्य प्रदान करता है। भगवान श्री कृष्ण ने पद्मपुराण एवं ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी के पुण्यों का वर्णन किया है। इस वर्ष आज 1 अक्तूबर 2017 (रविवार) को यह व्रत किया जाएगा. एकादशी के पूजने से व्यक्ति को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु का भक्ति भाव से पूजन आदि करके भोग लगाया जाता है.

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की पापाकुंशा एकादशी हजार अश्वमेघ और सौ सूर्ययज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली होती है. इस एकादशी व्रत के समान अन्य कोई व्रत नहीं है. इसके अतिरिक्त जो व्यक्ति इस एकादशी की रात्रि में जागरण करता है वह स्वर्ग का भागी बनता है. इस एकादशी के दिन दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. श्रद्धालु भक्तों के लिए एकादशी के दिन व्रत करना प्रभु भक्ति के मार्ग में प्रगति करने का माध्यम बनता है। यह एकादशी सम्पूर्ण मनोरथ की प्राप्ति करवानेवाली है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्यों को स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पृथ्वी पर जितने तीर्थ और पवित्र देवालय है, उन सबके सेवन का फल एकादशी व्रत तथा भगवान विष्णु के नामकीर्तन मात्र से मनुष्य प्राप्त कर लेता है। यह एकादशी स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, शरीर को निरोग बनाने वाली और सुन्दर स्त्री, धन एवं मित्र देनेवाली है। यह एकादशी हजार अश्वमेघ और सौ सूर्य यज्ञ करने के समान फल प्रदान करने वाली होती है। 

  • युधिष्ठिर के पूछने पर श्री कृष्ण ने कहा था कि यह एकादशी पापों को हरनेवाली है। जो व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का व्रत रखकर सोना, तिल, गाय, अन्न, जल, छाता और जूते का दान करता है उसके पूर्वजन्म के भयंकर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
  • ऐसा व्यक्ति पुण्य कर्मों के प्रभाव के कारण नर्क की यातना सहने से बच जाता है। इन्हें मृत्यु के बाद यमराज के दर्शन नहीं करने पड़ते हैं। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत नहीं कर पाता है वह भी इन वस्तुओं का दान करे तो उसे भी अपार पुण्य की प्राप्ति होती है।
  • मुक्ति प्रदान करने के अलावा इस एकादशी के प्रभाव से शरीर स्वस्थ होता है। धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है और पुण्यात्मा मनुष्य को सुन्दर जीवनसाथी की प्राप्ति होती है। जिसके साथ धर्मपूर्वक आचरण करते हुए मनुष्य उत्तम लोकों में जाता है।
  • इस एकादशी के दिन गरूड़ पर विराजमान भगवान विष्णु के दिव्य रूप की पूजा करनी चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके हरि चिंतन, भजन करने वाले मनुष्य की अपने सहित कई पीढ़ियों का उद्घार हो जाता है।
  • भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है। 
  • यह व्रत आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है। व्रती सुबह भगवान विष्णु का पूजन आदि करके भोग लगाते हैं। फिर ब्राह्मण को भोजन कराकर दान देते हैं। इस दिन किसी भी एक समय फलाहार किया जाता है।
  • जानिए पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आश्विन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? अब आप कृपा करके इसकी विधि तथा फल कहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! पापों का नाश करने वाली इस एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है।

पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा अनुसार विन्ध्यपर्वत पर महा क्रुर और अत्यधिक क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था. जीवन के अंतिम समय पर यमराज ने उसे अपने दरबार में लाने की आज्ञा दी. दूतोण ने यह बात उसे समय से पूर्व ही बता दी.

मृत्युभय से डरकर वह अंगिरा ऋषि के आश्रम में गया और यमलोक में जाना न पडे इसकी विनती करने लगा. अंगिरा ऋषि ने उसे आश्चिन मास कि शुक्ल पक्ष कि एकादशी के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने की सलाह देते हैं. इस एकादशी का पूजन और व्रत करने से वह अपने सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को गया.

हे राजेन्द्र! यह एकादशी स्वर्ग, मोक्ष, आरोग्यता, सुंदर स्त्री तथा अन्न और धन की देने वाली है। एकादशी के व्रत के बराबर गंगा, गया, काशी, कुरुक्षेत्र और पुष्कर भी पुण्यवान नहीं हैं। हरिवासर तथा एकादशी का व्रत करने और जागरण करने से सहज ही में मनुष्य विष्णु पद को प्राप्त होता है। हे युधिष्ठिर! इस व्रत के करने वाले दस पीढ़ी मातृ पक्ष, दस पीढ़ी पितृ पक्ष, दस पीढ़ी स्त्री पक्ष तथा दस पीढ़ी मित्र पक्ष का उद्धार कर देते हैं। वे दिव्य देह धारण कर चतुर्भुज रूप हो, पीतांबर पहने और हाथ में माला लेकर गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को जाते हैं।

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पापांकुशा एकादशी व्रत पूजन सामग्री

∗ श्री विष्णु जी की मूर्ति 

∗ वस्त्र

∗ पुष्प

∗ पुष्पमाला

∗ नारियल 

∗ सुपारी

∗ अन्य ऋतुफल

∗ धूप

∗ दीप

∗ घी

∗ पंचामृत (दूध(कच्चा दूध),दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण)

∗ अक्षत

∗ तुलसी दल

∗ चंदन

∗ मिष्ठान

कैसे करें इस दिन पूजा

इस व्रत को रखने वाले को एकादशी के दिन सुबह स्नान करके विष्णु भगवान का ध्यान करना चाहिए और उनके नाम से व्रत और पूजन करना चाहिए। इस व्रत में रात्रि जागरण करना चाहिए। इसके बाद अगले दिन यानि द्वादशी को ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए और अपनी क्षमता के अनुसार सोना, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, छतरी और जूती का दान देना चाहिए। भगवान कृष्‍ण के उपदेश के अनुसार जो भक्ति पूर्वक इस व्रत का पालन करते हैं उनका जीवन सुखमय होता है और वे भोगों मे लिप्त नहीं होता। ऐसे भक्त कमल के समान होते हैं जो संसार रूपी माया के कीचड़ में भी बचे रहते हैं।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की पापांकुशा एकादशी व्रत में यथासंभव दान व दक्षिणा देनी चाहिए. पूर्ण श्रद्धा के साथ यह व्रत करने से समस्त पापों से छुटकारा प्राप्त होता है. शास्त्रों में एकादशी के दिन की महत्ता को पूर्ण रुप से प्रतिपादित किया गया है. इस दिन उपवास रखने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. जो लोग पूर्ण रूप से उपवास नहीं कर सकते उनके लिए मध्याह्न या संध्या काल में एक समय भोजन करके एकादशी व्रत करने की बात कही गई है.

एकादशी जीवों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है. यह दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक माना गया है. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपापात्र बनता है.

कौन से कर्म हैं पुण्यकारी

वैसे तो इस दिन कोई भी जनहित्त में कार्य करने का लाभ मिलता है परंतु शास्त्रानुसार एकादशी वाले दिन मंदिर धर्मशाला, गऊशाला, तालाब, प्याऊ, कुएं बाग आदि का निर्माण कार्य करवाने का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त तथा पुण्य फलदायक है। प्रात:सूर्योदय से पूर्व केवल स्नान करने वाला भी पापों से मुक्ति पा सकता है। 

पापांकुशा एकादशी व्रत में क्या करें दान 

वैसे तो किसी भी वस्तु का दान करना व्रत में अति उत्तम कर्म है परंतु इस दिन ब्राह्मणों को सुन्दर वस्त्र, सोना, तिल, भूमि, अन्न, जल, जूते, छाता, गाय और भूमि आदि का दान करने का महात्मय है।  शास्त्रानुसार किसी भी वस्तु का दान करते समय  यथासम्भव दक्षिणा देना भी अति आवश्यक है और मन में कभी भी देने का गर्व भी मन में नहीं करना चाहिए।

पापांकुशा एकादशी व्रत का क्या है पुण्य फल

व्रत के प्रभाव से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं बहुत जल्दी पूर्ण हो जाती हैं तथा उसे धन, वैभव, सुन्दर स्त्री, निरोगी काया, प्राप्त होती है तथा व्रत करने वाला जहां स्वयं पुण्य प्राप्त करता है वहीं अपने मातृ पक्ष, पितृ पक्ष और स्त्री पक्ष की 10-10 पीढिय़ों का उद्धार भी करता है। हवन, यज्ञ, जप, तप, ध्यान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वह एकमात्र इस एकादशी व्रत के प्रभाव से मिलता है तथा जीव को यम यातना से भी मुक्ति मिल जाती है। इस व्रत के पुण्य से जीव के शरीर में पाप वास ही नहीं कर सकते तथा उसे हजारों अश्वमेध यज्ञों के बराबर एकादशी व्रत का पुण्य फल मिलता है। 

निंदक को मिलता है नरक

जो विष्णु भक्त भगवान शिव व प्रभु के भक्त की निंदा, चुगली करता है उसे निश्चय ही रौरव नरक में गिरना पड़ता है तथा 14 इन्द्रों की आयु पर्यन्त उसे उस नरक की पीड़ा सहनी पड़ती है, इसलिए जहां तक सम्भव हो किसी की निंदा न करने में ही जीव की भलाई है। भला कार्य यदि नहीं कर सकते तो बुरे से भी बचना चाहिए। 

 क्या कहते हैं विद्वान पापांकुशा एकादशी व्रत के  बारे में

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की भगवान को प्रत्येक मास में आने वाली एकादशी तिथि सबसे अधिक प्रिय है इसलिए इस दिन व्रत करने का पुण्यफल भी सबसे अधिक होता है। इस एकादशी से ही भगवान को प्रिय कार्तिक यानि दामोदर मास का शुभारम्भ भी हो रहा है, इस कारण इस एकादशी का पुण्यफल हजारों गुणा अधिक है। जो भक्त किसी कारण वश व्रत नहीं भी कर पाते वह रात को दीपदान और प्रभु नाम संकीर्तन करके प्रभु की कृपा के पात्र बन सकते हैं। एकादशी को अन्न का त्याग करना अति उत्तम कर्म है क्योंकि एकादशी को सभी विकार अन्न में विराजमान होते हैं। व्रत का पारण 2 अक्तूबर को प्रात: 6.26 से 9.29 के बीच के समय में करना होगा। 

यमराज के दर्शन से बचेंगे आप 

इस व्रत को करने से आप अपने पुण्य कर्मों के प्रभाव के कारण नर्क की यातना सहने से बच सकते हैं। यही नहीं, जो व्यक्ति इस पापांकुशा व्रत को श्रद्धा व विश्वास के साथ करता है, उन्हें मृत्यु के बाद यमराज का दर्शन नहीं करना पड़ता हैं। बता दें कि अगर किसी कारणवस कोई व्यक्ति एकादशी का व्रत करने में सक्षम नहीं है, तो वह सोना, तिल, गाय, अन्न, जल, छाता और जूते में से कुछ भी दान कर अपने व पूरे परिवार के लिए अपार पुण्य की प्राप्ति कर सकता है।

जानिए पापांकुशा एकादशी व्रत के लाभ 

इस एकादशी व्रत को करने से आपको मुक्ति की प्राप्ति तो होगी, साथ ही पापांकुशा एकादशी के प्रभाव से आपका शरीर भी स्वस्थ रहता है।

चन्द्रमा की स्थिति के कारण व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति खराब और अच्छी होती है. ऐसी दशा में एकादशी व्रत से चन्द्रमा के हर ख़राब प्रभाव को रोका जा सकता है |यहां तक कि ग्रहों के असर को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है. क्योंकि एकादशी व्रत का सीधा प्रभाव मन और शरीर, दोनों पर पड़ता है | इसके अलावा एकादशी के व्रत से अशुभ संस्कारों को भी नष्ट किया जा सकता है | वैसे तो हर एकादशी अपने आप में महत्वपूर्ण है. परन्तु पापांकुशा एकादशी स्वयं के साथ साथ दूसरों को भी लाभ पंहुचाती है।

इस खास व्रत को करने से आपको धन-संपत्ति की प्राप्ति भी होगी और नवविवाहित लोगों को सुन्दर और अच्छा जीवनसाथी की प्राप्ति भी होगी, जिसके साथ धर्मपूर्वक आचरण करते हुए मनुष्य उत्तम लोकों में जाता है। 

ध्यान दें कि इस एकादशी के दिन गरूड़ पर विराजमान भगवान विष्णु के दिव्य रूप की पूजा भी ज़रूर से करनी चाहिए।

यही नहीं, एकादशी की रात में जो लोग भी जागरण करके हरि चिंतन व भजन करते हैं उनके साथ-साथ कई पीढ़ियों का भी उद्घार हो जाता है।

इस एकादशी पर भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरुप की उपासना होती है

पापांकुशा एकादशी  के व्रत से मन शुद्ध होता है

व्यक्ति के पापों का प्रायश्चित होता है

साथ ही माता, पिता और मित्र की पीढ़ियों को भी मुक्ति मिलती है

पापांकुशा एकादशी पर भगवान पद्मनाभ की पूजा करें, पूजन विधि

– आज प्रातः काल या सायं काल श्री हरि के पद्मनाभ स्वरुप का पूजन करें

– मस्तक पर सफ़ेद चन्दन या गोपी चन्दन लगाकर पूजन करें

– इनको पंचामृत , पुष्प और ऋतु फल अर्पित करें

– चाहें तो एक वेला उपवास रखकर , एक वेला पूर्ण सात्विक आहार ग्रहण करें

– शाम को आहार ग्रहण करने के पहले उपासना और आरती जरूर करें

– आज के दिन ऋतुफल और अन्न का दान करना भी विशेष शुभ होता है

पापांकुशा एकादशी पर इन बातों का ध्यान रखें

– अगर उपवास रखें तो बहुत उत्तम होगा. नहीं तो एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करें

– एकादशी के दिन चावल और भारी खाद्य का सेवन न करें

– रात्रि के समय पूजा उपासना का विशेष महत्व होता है

– क्रोध न करें, कम बोलें और आचरण पर नियंत्रण रखें

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पंडित दयानन्द शास्त्री

(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)

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