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महाभारत का युद्ध कब हुआ?

महाभारत का युद्ध कब हुआ?

  • किस कालखंड में हुई महाभारत 
  • पुराणों में क्या लिखा है 
  • कैसे तय होगी महाभारत के समय की गणना 

इस यक्षप्रश्न का उत्तर ढूँढ़ लेने पर भारतीय इतिहास की बहुत सारी कालसम्बन्धी गुत्थियाँ सुलझ सकती हैं।

विगत दो शताब्दियों में अनेक देशीविदेशी इतिहासकारों ने महाभारत युद्ध की तिथि निर्धारित करने और उसके आधार पर समूचे इतिहास को व्यवस्थित करने का प्रयास किया है। पाश्चात्य इतिहासकारों ने तो भारतीय सभ्यता को अल्पकालीन ही सिद्ध किया है, अतः इस सन्दर्भ में उनके द्वारा प्रस्तुत तिथि की कोई विश्वसनीयता नहीं। यहाँ इस लेख में उनके तिथिक्रम पर विचार करने का कोई लाभ भी नहीं है। रही बात भारतीय विद्वानों की, तो खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि अधिकांश भारतीय विद्वान् अपने इतिहासज्ञान के लिए पाश्चात्यों पर निर्भर रहे हैं। अर्थात् पाश्चात्यों द्वारा निर्धारित तिथियों को ही उन्होंने स्वीकार किया है। इस प्रकार अधिकांश भारतीय विद्वान् महाभारतयुद्ध की वास्तविक तिथि से पर्याप्त दूरी पर अंधेरे में भटकते रहे हैं।

महाभारतयुद्ध की तिथि के सम्बन्ध में देशीविदेशी विद्वानों की मान्यताएँ इस प्रकार हैं :

वी.आर. लेले : 6228 .पू.

व्हीलर : 6000 .पू.

पद्माकर विष्णु वर्तक : 16 अक्टूबर-2 नवंबर 5561 .पू.

पं. गणपति जानकी राम दूबे : 5226 .पू.

स्वामी महादेवानन्द गिरि : 3475 .पू.

प्लिनी : (बकासुर से सिकंदर तक 154 पीढ़ी, प्रति पीढ़ी 20 वर्ष मानने पर) लगभग 3300 .पू.

जानकीनाथ शर्मा : 3265 .पू.

पण्ड्या वैद्यनाथ : 3152-53 .पू.

पं. चन्द्रकान्त बाली शास्त्री : 3148 .पू.

प्रो. पी.वी. होले : 13-30 नवंबर 3143 .पू.

एम. कृष्णमाचार्य : 3139 .पू.

आचार्य उदयवीर शास्त्री : 3139 .पू.

आचार्य रामदेव : 3139 .पू.

राघवाचार्य : 3139 .पू.

डॉ. के.एन.एस. पटनायक : 3139 .पू.

पं. कोटा वेंकटचलम् : 3139 .पू.

एन. जगन्नाथराव : 3139 .पू.

स्वामी ओमानन्द सरस्वती : 3139 .पू.

रवीन्द्र कुमार भट्टाचार्य : 3139 .पू.

गुंजन अग्रवाल : 3139-3138 .पू.

वृन पार्कर : 3138 .पू.

पुरुषोत्तम नागेश ओक : 3138 .पू.

रघुनन्दन प्रसाद शर्मा : 3138 .पू.

प्रो. रीता वर्मा : 3138 .पू.

प्रो. डी.डी. मिश्र : 3138 .पू.

सुरेश कुमार : 3138 .पू.

देवकरणी विरजानन्द : 3138 .पू.

डॉ. देवसहाय त्रिवेद : 3137 .पू.

सुभाष काक : 3137 .पू.

स्वामी बोन महाराज : 3136 .पू.

एहोलशिलालेख : 3102 .पू.

पं. माधवाचार्य : 3102 .पू.

पं. इन्द्रनारायण द्विवेदी : 3102 .पू.

प्रो. आपटे : 3102 .पू.

युधिष्ठिर मीमांसक : 3102 .पू.

पं. लेखराम : 3102 .पू.

महामहोपाध्याय डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा : 3102 .पू.

स्वामी करपात्रीजी महाराज : 3102 .पू.

सच्चिदानन्द भट्टाचार्य : 3102 .पू.

डॉ. नवरत्न एस. राजाराम : 3102 .पू.

भवानीलाल भारतीय : 3102 .पू.

सी.टी. केंगे : 3102 .पू.

बी.एम. चतुर्वेदी : 3102 .पू.

अबुल फज़ल : 3102 .पू.

रायबहादुर चिन्तामणि विनायक वैद्य : 3102-01 .पू.

प्रो. काशिनाथ वासुदेव अभ्यंकर : 3101 .पू.

श्रीपाद दामोदर सातवलेकर : 3100 .पू.

पं. भोजराज द्विवेदी : 3087 .पू.

मेगास्थनीज़ : (कृष्ण से चन्द्रगुप्त मौर्य तक 138 पीढ़ी, प्रति पीढ़ी 20 वर्ष मानने पर) लगभग 3078 .पू.

के. श्रीनिवास राघवन : 3067 .पू.

प्रो. बी.एन. नरहरि अचर : 3067 .पू.

सम्पत आयंगर : 3067 .पू.

शेषगिरि : 3067 .पू.

पी. आर. चिदम्बरम् : 3038 .पू.

जी.एस. सम्पत : 3023 .पू.

जी.एस. सरदेसाई : 3023 .पू.

प्रो. वी.बी. आठवळे : 3016 .पू.

तिलकधर शर्मा : लगभग 3000 .पू.

सत्यप्रकाश सारस्वत : 3000 .पू.

डॉ. एस. बालकृष्ण : 2559 .पू.

वृद्धगर्ग : 2449 .पू.

वराहमिहिर : 2449 .पू.

कल्हण : 2449 .पू.

महामहोपाध्याय विश्वेश्वरनाथ रेऊ : 2449 .पू.

प्रो. पी.सी. सेनगुप्ता : 2449 .पू.

अल्ब्रेट वेबर : पाणिनि के बाद

एम. राजाराव : 2442 / 2420 .पू.

जनार्दन सखाराम करंदीकर : 1931 .पू.

दिलीप देवधर : 1800 .पू.

आचार्य बलदेव उपाध्याय : 1506 .पू.

प्रो. आई.एन. आयंगर : 1478 .पू.

तारकेश्वर भट्टाचार्य : 1432 .पू.

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय : 1430

आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 1430

अलेक्ज़ेंडर कनिंघम : 1426 .पू.

डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल : 1424 .पू.

डॉ. रमेशचन्द्र दत्त : 1424 .पू.

सत्यकेतु विद्यालंकार : 1424 .पू.

लोकमान्य टिळक : 1400 .पू.

देव : 1400 .पू.

डॉ. एनफिन्स्टन : 1400 .पू.

पं. कृष्णदत्त वाजपेयी : 1400 .पू.

अनन्त सदाशिव अळतेकर : 1400 .पू.

डॉ. अच्युत दत्तात्रेय पुसाळकर : 1400 .पू.

आर.एल. सिंह : 1400 .पू.

जवाहरलाल नेहरू : 1400 .पू.

हेनरी थॉमस कोलब्रुक : 14वीं सदी ई.पू.

शंकर बालकृष्ण दीक्षित : 14वीं सदी ई.पू.

महामहोपाध्याय सिद्धेश्वर शास्त्री चित्राव : 1397 / 1263 .पू.

होरेस हेमॅन विल्सन : 1370 / 1367 .पू.

फ्रांसिस विलफोर्ड : 1370 .पू.

फ्रांसिस बुकाननहैमिल्टन : 13वीं सदी ई.पू.

डॉ. हण्टर : 1200 .पू.

जॉन डाउसन : 1200 .पू.

हेनरी मायर्स इलियट : 1200 .पू.

डॉ. बिन्देश्वरी प्रसाद सिन्हा : 1200-1000 .पू.

जॉन हेनरी प्राट : 12वीं सदी ई.पू. का उत्तरार्ध

डॉ. रतिलाल मेहता : 12वीं सदी ई.पू.

के.जी. शंकर : 1198 .पू.

डॉ. केशो लक्ष्मण दफ्तरी : 1197 .पू.

वेलण्डि गोपाल ऐयर : 14-31 अक्टूबर, 1194 .पू.

जॉन बेंटलि : 1179 .पू.

कर्नल ज़ेम्स टॉड : 1179 .पू.

डॉ. सीतानाथ प्रधान : 1150 .पू.

सुमन शर्मा : 1150 .पू.

विन्सेण्ट आर्थर स्मिथ : 1000 .पू.

आर्थर मैकडोनल : 1000 .पू.

एच.. फड़के : 1000 .पू.

फ्रेडरिक ईडन पार्ज़ीटर : 950 .पू.

निहार रंजन रे : 800 .पू.

एच.सी. सेठ : छठी शताब्दी ई.पू.

कुछ प्रसिद्ध मान्यताओं की समीक्षा करना समीचीन रहेगा

1. एहोल से दक्षिण के राजा चालुक्य पुलकेशियन द्वितीय (609-642) के समय के एक शिलालेख में एक जैनमन्दिर बनवाने का उल्लेख है। इसमें कहा गया है

त्रिशत्सु त्रिसहस्रेषु भारतादाहवादितः।

सप्ताब्दशतयुक्तेषु () तेष्दवब्देषु पञ्च सु।

पञ्चाशत्सु कलौ काले षट्सु पञ्चशतसु च।

समासु समतीतासु शकानामपि भूभुजां॥

—Epigraphia Indica, Vol. VI, p.7

अर्थात् महाभारतयुद्ध से 30+3000+700+5 (3735) और शकराजाओं के 50+6+500 (556) वर्ष बीतने पर कलियुग में यह मन्दिर बनवाया गया है। यदि उपर्युक्त 3,735 वर्षों में से 556 वर्ष निकाल दिए जाएँ, तो 3179 वर्ष रहते हैं। अर्थात्, कलियुग के 3180वें वर्ष में शक संवत् का प्रारम्भ हुआ था। अथवा शक संवत् से 3180 वर्ष पूर्व कलियुग का प्रारम्भ हुआ था। वर्तमान 2020 . में शक संवत् 1942 चल रहा है। इससे 3180 अर्थात् 1942 + 3180 = 5122 वर्ष पूर्व (3102 .पू.) महाभारत का युद्ध और कलियुग का प्रारम्भ हुआ था। इस प्रकार, एहोल का शिलालेख 3102 .पू. में महाभारतयुद्ध और कलियुग का प्रारम्भ होना मानता है।

2. वराहमिहिर ने लिखा है

आसन्मघासु मुनयः शासति पृथ्वीं युधिष्ठिरे नृपतौ।

षड्द्विकपञ्चद्वियुतः शककालस्तस्य राजस्य॥

बृहत्संहिता, 13.3

अर्थात् जब युधिष्ठिर राज्य कर रहे थे, तब सप्तर्षि मघा नक्षत्र में थे। उनका संवत् 2526 वर्ष बीतने पर शक संवत् प्रचलित हुआ। कहने का तात्पर्य यह है कि शक संवत् के प्रारम्भ से 2526 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का शासन प्रारम्भ हुआ। शक संवत् का प्रारम्भ 78 . में हुआ। इसलिए 78-2526 = —2448, यानि 2448 .पू. में युधिष्ठिर का शासन प्रारम्भ हुआ। इस प्रकार बृहत्संहिता के अनुसार 2449 .पू. में महाभारत युद्ध हुआ।

3. कल्हण ने लिखा है

शतेषु षट्सु सार्धेपु त्र्यधिकेषु भूतले।

कलेगेतुषु वर्षाणामभ्वन् कुरुपाण्डवा:

राजतरंगिणी, प्रथम तरंग, 51

अर्थात् कलियुग के 653 वर्ष बीतने पर इस भूतल पर कौरव और पाण्डव हुए थे।

4. विभिन्न पुराणों में एक श्लोक कुछ हेरफेर के साथ आया है जिसके आधार पर कई विद्वानों ने महाभारतयुद्ध की तिथि 14वीं-15वीं शताब्दी ई.पू. निर्धारित की है। मत्स्यपुराण और विष्णुपुराण में कहा गया है….

महापद्माभिषेकास्तु यावज्जन्मपरीक्षितः।

एकवर्षसहस्रं तु ज्ञेयंपञ्चाशदुत्तरम्

मत्स्यपुराण, 273.35

यावत्परीक्षितो जन्म यावन्नन्दाभिषेचनम्।

एतद्वर्षसहस्र तु ज्ञेयं पञ्चाशदुत्तरम्॥

विष्णुपुराण, 4.24.104

अर्थात् परीक्षित के जन्म से नन्द के अभिषेक तक 1050 वर्ष होते हैं।

वायुपुराण में कहा गया है

महादेवाभिषेकात्तु जन्म यावत्परीक्षितः।

एकवर्षसहस्रं तु ज्ञेयं पञ्चाशदुत्तरम्

वायुपुराण, 99.409

अर्थात्, परीक्षित के जन्म से महादेव (महापद्मनन्द) के अभिषेक तक 1050 वर्ष होते हैं।

ब्रह्माण्डपुराण में कहा गया है

महानन्दाभिषेकान्तं जन्म यावत्परीक्षितः।

एतद्वर्षसहस्रं तु ज्ञेयं पञ्चाशदुत्तरम्॥

ब्रह्माण्डपुराण, 3.74.227

अर्थात्, परीक्षित के जन्म से महानन्द के अभिषेक तक 1050 वर्ष होते हैं

भागवतपुराण में कहा गया है

आरभ्य भवतो जन्म यावन्नन्दाभिषेचनम्।

एतद् वर्षसहस्रं तु शतं पञ्चदशोत्तरम्॥

भागवतपुराण, 12.2.26

अर्थात् (परीक्षित के) जन्म से लेकर नन्द के अभिषेक तक 1,115 वर्षों का समय लगेगा।

उपर्युक्त पौराणिक वचन उनके वर्तमान उपलब्ध (प्रकाशित) संस्करणों से लिए गए हैं। विभिन्न पुस्तकालयों में उपलब्ध इन्हीं पुराणों की प्राचीन प्रतियों में आए श्लोक इनसे कुछ भिन्न हैं। उदाहरणार्थ मत्स्यपुराण की प्राचीन प्रति मेंपञ्चाशदुत्तरम्के स्थन परपञ्चशतोत्तरम्शब्द आया है। देखने में कोई विशेष अन्तर नहीं, किन्तु गणना करने पर कितना बड़ा अन्तर आ गया है, यह पाठक स्वयं देखेंगे। जहाँ आधुनिक प्रति के अनुसार गणना करने पर परीक्षित के जन्म से नन्द के अभिषेक तक 1,050 वर्ष होते हैं, वहीं प्राचीन प्रति के अनुसार गणना करने पर 1,500 वर्ष होते हैं।

अब प्रश्न यह उठता है कि प्राचीन प्रतियों और उनके आधुनिक संस्करणों में इतना बड़ा अन्तर क्यों है? तो इसका उत्तर यह है कि पुराणों की प्राचीन प्रतियाँ अंग्रेज़ों के भारत आने से पूर्व की हैं। उनके पाठ शुद्ध हैं। वर्तमान प्रकाशित पुराण ब्रिटिश शासनकाल में सम्पादित (गड़बड़) हुए हैं। अंग्रेजों ने राजनीतिक उद्देश्य के तहत भारतीय इतिहास में भारी मात्रा में विकृतियाँ उत्पन्न कीं। इसके अंतर्गत उन्होंने यूरोपीय और कुछ भारतीय संस्कृतज्ञों को धन देकर उनसे भारत का इतिहास विकृत करवाया। इन तथाकथित विद्वानों ने भारतीय ग्रन्थों के मूल पाठों में कहीं अक्षरों में, कहीं शब्दों में और कहींकहीं वाक्यावली में परिवर्तन किए। यही नहीं, इसके साथसाथ कहींकहीं प्र्रक्षिप्त अंश भी जोड़ दिए गए। राजाओं और उनके कालों को जानबूझकर पीछे ले जाया गया। उदाहरणार्थमत्स्यपुराण के जिस श्लोक में मौर्यवंश का राज्यकाल 316 वर्ष दिया गया था, छपी हुई प्रति में अक्षर बदलकर उसे ऐसा कर दिया गया जिससे उसका अर्थ 137 वर्ष हो गया है, विष्णुपुराण में मौर्यवंश का राज्यकाल 337 वर्ष दिया गया था, उसे भी 137 वर्ष में बदला गया आज के अधिकतर विद्वान् 137 वर्ष को ही सही मानते हैं, किंतु कलिंगनरेश खारवेल के हाथीगुम्फाअभिलेख में मौर्यवंश के संदर्भ में ‘165वें वर्षका स्पष्ट उल्लेख होने से अंग्रेज़ों द्वारा की गयी गड़बड़ी का पर्दाफाश हो गया है। ऐसी और भी अनेक गड़बड़ियों का विवरण सुप्रसिद्ध इतिहासकार पं. कोटा वेंकटचलम् ने अपनी पुस्तकों— 1. ‘The Plot in Indian Chronology’ (1953) और 2. ‘Chronology of Kashmir History Reconstructed’ (1955) में दिया है।

अस्तु, इस प्रसंग में विस्तार से जाने की आवश्यकता नहीं। सारांश यह है कि मत्स्य, विष्णु, ब्रह्मांड, भागवत और वायुपुराणों में शुद्ध पाठपञ्चशतोत्तरम्है न किपञ्चाशदुत्तरम्यापञ्चदशोत्तरम्पञ्चशतोत्तरम्करने पर मत्स्यपुराण (273.35) का श्लोक इस प्रकार बनता है

महापद्माभिषेकात्तु यावज्जन्म परीक्षितः।

एवं वर्षसहस्रं तु ज्ञेयं पञ्चशतोत्तरम्॥

अर्थात् परीक्षित के जन्म से महापद्म के अभिषेक तक 1,500 वर्ष होते हैं।

इसी प्रकार वायु, ब्रह्मांड, भागवत और विष्णु पुराणों के उपर्युक्त श्लोकों में संशोधन कर देना चाहिए। लगभग प्रत्येक पुराण में महाभारतयुद्ध के समय से कलियुग के राजाओं की भविष्यवंशावलियों का वर्णन है और उनके राजत्वकाल भी गिनाए गए हैं। उनकी ओर ध्यान देने से मत्स्यपुराण की प्राचीन प्रति का कथन प्रमाणित हो जाता है।प्रायः सभी पुराणों में लिखा है कि महाभारतकालीन जरासन्ध के पुत्र सहदेव थे, उनके पुत्र मार्जारि से लेकर बाहर्द्रथ वंश के 22 राजाओं का राज्यकाल 1,000 (1006) वर्ष तक था। बार्हद्रथों के पश्चात् प्रद्योतवंशीय पाँच राजाओं का राज्य 138 वर्ष तक रहा। उनके पश्चात् शिशुनागवंशीय दस राजाओं का राज्यकाल 360 वर्ष तक और उनके पश्चात् नन्दवंशीय 9 राजाओं का शासनकाल 100 वर्ष तक था। सबका योग होता है (1006+138+360+100=) 1,604 वर्ष। यदि इस संख्या में नन्दवंशीय राजाओं का शासनकाल निकाल दें (क्योंकि महाभारत के युद्धकाल अथवा परीक्षित के जन्म से महापद्म के अभिषेक तक में महापद्म का राज्यकाल नहीं है) तो रह जाते हैं 1504 वर्ष, जिससे मत्स्यपुराण का प्राचीन पाठ अक्षरशः सत्य सिद्ध हो जाता है। इसके साथ ही यह भी सिद्ध हो जाता है कि जो इतिहासकार विष्णु, मत्स्य आदि पुराणों के परिवर्तित श्लोक के आधार पर बार्हद्रथवंशीय राजाओं के समय से लेकर महापद्मनन्द तक के अभिषेक के समय को 950, 1015, 1050 और 1115 वर्ष गिनते हैं, और इस आधार पर महाभारतयुद्ध को 14वीं-15वीं शताब्दी ई.पू. में सिद्ध करते हैं, वे सर्वथा अमान्य हैं।

अब तक के विवेचन से एक बात तो सिद्ध हो गई है, और वह यह है कि महाभारतयुद्ध नन्द के अभिषेक से लगभग 1,500 वर्ष पूर्व हुआ था। किन्तु, युद्धकाल से अबतक कितने वर्ष व्यतीत हुए, यह निश्चित नहीं हुआ। इसका उत्तर भी हमें महाभारत और पुराणों में मिल जाता है। महाभारत में कहा गया है

अनन्तरे चैव सम्प्राप्ते कलिद्वापरयोरभूत्।

समन्तपञ्चके युद्धे कुरुपाण्डवसेनयोः॥

आदिपर्व, 2.13

अर्थात् जब द्वापर और कलि की सन्धि का समय आनेवाला था, तब समन्तपञ्चक क्षेत्र (कुरुक्षेत्र) में कौरवों और पाण्डवों की सेनाओं का परस्पर भीषण युद्ध हुआ।

भविष्यपुराण में कहा गया है

भविष्याख्ये महाकल्पे प्राप्ते वैवस्वतेन्तरे।

अष्टाविंशद्द्वापरान्ते कुरुक्षेत्रे रणोऽभवत्॥

प्रतिसर्गपर्व, 3.1.4

अर्थात् भविष्य नामक महाकल्प के वैवस्वत मन्वन्तर के 28वें द्वापर युग के अन्त में कुरुक्षेत्र में (महाभारत) युद्ध हुआ था।

महाभारत में पुनः कहा गया है….

त्वप्युपस्थिते षट्त्रिंशे मधुसूदन।

हत्ज्ञातिर्हतामात्यो हतपुत्रे वनेचरः॥

अनाथवदविज्ञातो लोकेष्वनभिलाभितः।

कुत्सितेनाभ्युपायेन निध्नं समवाप्स्यसि॥

स्त्रीपर्व, 25.44-45

अर्थात् (महाभारतयुद्ध के बाद) गान्धारी ने श्रीकृष्ण को शाप दिया कि आज से 36 वर्ष के बाद यदुवंश का विनाश होगा और तुम भी मृत्यु को प्राप्त होगे।

षट्त्रिंशे त्वथ सम्प्राप्ते वर्षे कौरवनन्दनः।

ददर्श विपरीतानि निमित्तानि युधिष्ठिरः॥

मौसलपर्व 1.1

अर्थात् महाभारतयुद्ध के पश्चात् जब 36वाँ वर्ष प्रारम्भ हुआ तब कौरवनन्दन राजा युधिष्ठिर को कई तरह के अपशकुन दिखायी देने लगे।

भविष्यमहापुराण में कहा गया है

षट्त्रिंशदब्दराज्यं हि कृत्वा स्वर्गपुरं ययुः।

जनिष्यन्ते तदंशा वै कलिध्र्म विवृद्धये॥

प्रतिसर्गपर्व 3.4.3

अर्थात् पाण्डव 36 वर्षों तक राज्य करके स्वर्ग सिधारे थे।

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती (1824-1883) ने अपने विख्यात ग्रन्थसत्यार्थप्रकाश’ (1875) में युधिष्ठिर का राज्यकाल 36 वर्ष, 8 मास और 25 दिन लिखा है (एकादश समुल्लास, पृ. 271) इस दृष्टि से भी 37वें वर्ष में पाण्डवों के राज्यत्याग और परीक्षित के राज्याभिषेक की बात सिद्ध होती है।

महाभारत में कहा गया है

षट्त्रिंशेऽथ ततो वर्षे वृष्णीनामनयोमहान्।

अन्योन्यं मुसलैस्ते तु निजघ्नुः कालचोदितः॥

मौसलपर्व 1.13

अर्थात् महाभारतयुद्ध के बाद 36वें वर्ष वृष्णिवंशियों में महान् अन्यायपूर्ण कलह आरम्भ हो गया। उसमें काल से प्रेरित होकर उन्होंने एकदूसरे को मूसलों से मार डाला।

विमृशन्नेव कालं तं परिचिन्त्य जनार्दनः।

मेने प्राप्तं षट्त्रिशं वर्षं वै केशिसूदन:

मौसलपर्व 2.20

अर्थात् इस प्रकार समय का विचार करते हुए श्रीकृष्ण ने जब उसका (गान्धारी के शाप का) विशेष चिन्तन किया, तब उन्हें मालूम हुआ कि महाभारतयुद्ध के बाद यह 36वाँ वर्ष आ पहुँचा।

विष्णु, वायु, ब्रह्म, ब्रह्माण्ड और भागवतपुराण के अनुसार जिस दिन भगवान् श्रीकृष्ण अपने परमधाम को पधारे थे, उसी दिन, उसी समय पृथिवी पर कलियुग प्रारम्भ हो गया था

यदैव भगवान्विष्णोरंशो यातोदिवं द्विज।

वसुदेववुफलोद्भूतस्दैवात्रगतः कलि॥

विष्णुपुराण 4.24.108

यस्मिन कृष्णो दिवं यातस्तस्मिन्नेव तदाहनि।

प्रतिपन्नं कलियुगं तस्य संख्यां निबोध मे॥

विष्णुपुराण, 4.24.113; ब्रह्माण्डपुराण, 2.74.241; वायुपुराण, 19.428-429

यस्मिन्दिने हरिर्यातो दिनं सन्त्याज्य मेदिनीम्।

यस्मिन्नेवावतीर्णोऽयं कालक्रायो बली कलिः॥

विष्णुपुराण, 5.38.8; ब्रह्मपुराण, 212.8

यदा मुकुन्दो भगवानिमां महीं जहौ स्ततन्वा श्रवणीयसत्कथः।

तदाहरेवाप्रतिबुद्धचेतसा मधर्महेतूः कलिरन्ववर्तत॥

भागवतपुराण 1.15.36

यस्मिन्नहनि यर्ह्येव भगवान् उत्ससर्ज गाम्।

तदैवेहानुवृत्तोऽसौ अधर्मप्रभवः कलिः॥

भागवतपुराण, 1.18.6

यर्ह्येवायं मया त्यक्तो लोकोऽयं नष्टमङ्गलः।

भविष्यत्यचिरात्साधो कलिनापि निराकृतः॥

भागवतपुराण, 11.7.4

विष्णोर्भगवतो भानुः कृष्णाख्योऽसौ दिवं गतः।

तदाविशत् कलिर्लोकं पापे यद् रमते जनः॥

भागवतपुराण, 12.2.29

यस्मिन कृष्णो दवं यातस्तास्मिन्नेव तदाहनि।

प्रतिपन्नं कलियुगमिति प्राहुः पुराविदः॥

भागवतपुराण, 12.2.33

सारांश यह है कि महाभारतयुद्ध के पश्चात् धर्मराज युधिष्ठिर ने 36 वर्ष, 8 मास और 25 दिनों तक शासन किया। उसी 37वें वर्ष में श्रीकृष्ण अपने परमधाम को पधारे। जिन दिन वे अपने परमधाम को पधारे, उसी दिन, उसी समय पृथिवी पर कलियुग प्रारम्भ हुआ।

तो कलियुग का प्रारम्भ कब हुआ? इसका उत्तर भी हमारे ज्योतिषग्रन्थों में मिल जाता है। आर्यभट (476-550) ने अपने सुप्रसिद्ध ज्योतिषग्रन्थआर्यभटीयमें लिखा है

षष्ट्यब्दानां षड्भिर्यदा व्यतीतास्त्रयश्च युगपादाः।

त्र्यधिका विंशतिरब्दास्तदेह मम जन्मनोऽतीताः॥

कालक्रियापाद, 10

अर्थात्, 3 युग (सत्ययुग, त्रेतायुग और द्वापरयुग) और कलियुग के 60 × 60 = 3600) वर्ष बीत चुके हैं और इस समय मुझे जन्मे 23 वर्ष हुए हैं। आर्यभट का जन्म मेष संक्रान्ति, 476 . को हुआ था। इस प्रकारआर्यभटीयकी रचना (476 + 23 = 499 . में हुई थी।कलियुग के 3600 वर्ष बीत चुके हैं’, अर्थात् कलियुग का 3601वाँ वर्ष चल रहा है। इस दृष्टि से भी कलियुग का प्रारम्भ (3601 — 499 = 3102 .पू. में हुआ था।

भाष्कराचार्य II (1114-1183) ने अपने ग्रन्थसिद्धान्तशिरोमणिमें लिखा है

याताः षण्मन्वो युगानि भमितान्यन्यद्युगांधि त्रयं।

नन्दाद्रीन्दुगुणास्तथा शकनृपस्यान्ते कलेर्वत्सराः॥

सिद्धान्तशिरोमणि, मध्यमाधिकार, कालमानाध्याय, 28

अर्थात् छः मन्वन्तर और सातवें मन्वन्तर के 27 चतुर्युग बीत चुके हैं। जो 28वाँ चतुर्युग चल रहा है, उसके भी 3 युग बीत चुके हैं और जो चौथा कलियुग चल रहा है, उसके भी शालिवाहन संवत् तक 3179 वर्ष गुजर चुके हैं।

शालिवाहन संवत् का प्रारम्भ 78 . में उज्जयिनीनरेश शालिवाहन (शासनकाल : 46-106 .) ने किया था और वर्तमान में शालिवाहन संवत् 1942 चल रहा है। अतः, (1942+3179=) 5121 वर्ष कलियुग के बीत चुके हैं (और 5122वाँ वर्ष चल रहा है) इस दृष्टि से भी कलियुग का प्रारम्भ (5122 – 2020 = 3102 .पू. में हुआ था। इन सभी प्रमाणों से यह सिद्ध है कि कलियुग का प्रारम्भ 3102 .पू. में हुआ था।

भविष्यपुराण के अनुसार कलियुग का प्रारम्भ माघ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था

माघे पञ्चदशी राजन्कलिकालादिरुच्यते।

उत्तरपर्व, 101.6

इस प्रकार, 28वें कलियुग का प्रारम्भ माघ शुक्ल पूर्णिमा तदनुसार 18 फरवरी, शुक्रवार, 3102 .पू. को दोपहर 2 बजकर 27 मिनट और 30 सैकंड पर हुआ था। यह वह घड़ी थी जब सात नक्षत्र एक राशि पर एकत्र हो गए थे। चूँकि महाभारत का युद्ध कलियुग के प्रारम्भ से 37 वर्ष पूर्व हुआ था, अतः महाभारतयुद्ध की तिथि है— (3102+37=) 3139 .पू. यह महाभारतयुद्ध मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी, दिसंबर 3139 .पू. को प्रारम्भ होकर 18 दिनों तक चला। इन 18 दिनों में दो तिथियोंपौष कृष्ण पञ्चमी और पौष कृष्ण षष्ठी की हानि हुई, अतः युद्ध पौष कृष्ण अमावस्या, जनवरी, 3138 .पू. को समाप्त हुआ। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश दिया था, यही कारण है कि हम इस दिन को भगवद्गीताजयन्ती के रूप में स्मरण करते हैं।

महाभारतयुग के प्रमुख घटनाओं का कालानुक्रम इस प्रकार है :

• 3538 .पू. : द्रोणाचार्य का जन्म

• 3324 .पू. : भीष्म पितामह का जन्म

• 3300-2132 .पू. : मगध में बृहद्रथराजवंश

• 3245 .पू. : (माघ शुक्ल प्रतिपदा) कर्ण का जन्म

• 3229 .पू. : (आश्विन शुक्ल पंचमी, अंगिरा संवत्सर) युधिष्ठिर का जन्म

• 3228 .पू. : (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, श्रीमुख संवत्सर, रोहिणी नक्षत्र, बुधवार, 21 जुलाई) भगवान् श्रीकृष्ण का मथुरा में जन्म; (आश्विन कृष्ण त्रयोदशी, श्रीमुख संवत्सर) भीम एवं दुर्योधन का जन्म; (आश्विन शुक्ल पञ्चमी, श्रीमुख संवत्सर) पांडु का शतशृंग पर्वत के लिए प्रस्थान

• 3227 .पू. : (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, श्रीमुख संवत्सर, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र) अर्जुन का जन्म

• 3226 .पू. : (फाल्गुन कृष्ण अमावस्या, भाव संवत्सर, अश्विनी नक्षत्र) नकुल एवं सहदेव का जन्म

• 3213 .पू. : (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र) पाण्डु का स्वर्गवास

• 3213 .पू. : (वैशाख शुक्ल दशमी) पाण्डवों का हस्तिनापुर आगमन

• 3213-3200 .पू. : पाण्डवों एवं कौरवों का द्रोणाचार्य से शस्त्रशिक्षा

• 3200 .पू. : (वैशाख शुक्ल पूर्णिमा) पाण्डवों एवं कौरवों का शस्त्रप्रदर्शन

• 3199 .पू. : (वैशाख कृष्ण पंचमी) पाण्डवों द्वारा द्रुपद पर आक्रमण

• 3198 .पू. : (आश्विन शुक्ल दशमी) युधिष्ठिर का यौवराज्याभिषेक

• 3193 .पू. : (फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र) पाण्डवों का हस्तिनापुर से वारणावत के लिए प्रस्थान

• 3192 .पू. : (फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी) लाक्षागृह में आग लगी

• 3192 .पू. : (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा) पाण्डवों ने गंगा पार किया

• 3192 .पू. : (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) भीमसेन द्वारा राक्षस हिडिम्ब का वध, हिडिम्बा से विवाह; पाण्डवों का शालिहोत्राश्रम में निवास; (आश्विन शुक्ल द्वितीया) घटोत्कच का जन्म

• 3191 .पू. : (चैत्र शुक्ल द्वितीया) पाण्डवों का एकचक्रा नगरी में प्रवेश; (आश्विन शुक्ल दशमी) भीमसेन द्वारा बकासुर का वध; (मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी) पाण्डवों का पांचाल राज्य के लिए प्रस्थान

• 3190 .पू. : (पौष शुक्ल सप्तमी) पाण्डवों का पांचाल राज्य में प्रवेश

• 3190 .पू. : (पौष शुक्ल एकादशी) द्रौपदी का स्वयंवर, अर्जुन का लक्ष्यभेद; (माघ शुक्ल द्वितीया) पाण्डवों का हस्तिनापुर आगमन

• 3189 .पू. : (आश्विन शुक्ल दशमी) पाण्डवों को हस्तिनापुर का आधा राज्य खाण्डवप्रस्थ मिला, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक

• 3189-83 .पू. : विश्वकर्मा द्वारा इन्द्रप्रस्थ का निर्माण

• 3168-56 .पू. : अर्जुन का वनवास

• 3157 .पू. : (वैशाख शुक्ल दशमी) अर्जुन और सुभद्रा का विवाह

• 3157-56 .पू. : अर्जुन का द्वारका एवं पुष्कर में निवास

• 3156 .पू. : अर्जुन का इन्द्रप्रस्थ आगमन

• 3156-50 .पू. : अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँच पुत्रों को जन्म

• 3155 .पू. : श्रीकृष्ण और अर्जुन द्वारा खाण्डन वन का दाह

• 3155-54 .पू. : मयासुर द्वारा सभाभवननिर्माण

• 3154 .पू. : (आश्विन शुक्ल दशमी) पाण्डवों द्वारा सभाभवन में प्रवेश

• 3153 .पू. : (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) राजगृह में भीमसेन और जरासन्ध का मल्लयुद्ध प्रारम्भ; (कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी) भीमसेन द्वारा जरासन्ध का वध

• 3152 .पू. : (फाल्गुन शुक्ल प्रतिपदा) इन्द्रप्रस्थ में राजसूययज्ञ प्रारम्भ; (श्रावण कृष्ण तृतीया) चौपड़ का प्रथम खेल, द्रौपदीअपमान; (श्रावण कृष्ण सप्तमी) चौपड़ का दूसरा खेल, पाण्डवों को 12 वर्षों का वनवास तथा एक वर्ष का अज्ञातवास; (श्रावण कृष्ण अष्टमी) पाण्डवों का वनवास प्रारम्भ

• 3152-46 .पू. : पाण्डवों का काम्यक वन एवं द्वैतवन में निवास

• 3151-46 .पू. : अर्जुन का देवलोक में निवास

• 3146-42 .पू. : पाण्डवों का कुबेर की क्रीड़ाभूमि में निवास

• 3140-39 .पू. : विराटनगर में पाण्डवों का अज्ञातवास

• 3139 .पू. : (आषाढ़ कृष्ण अष्टमीनवमी) भीमसेन द्वारा कीचक और उसके भाइयों का वध; (आश्विन शुक्ल चतुर्थी) पाण्डवों का अज्ञातवास समाप्त; (आश्विन शुक्ल सप्तमी) त्रिगर्तों द्वारा विराटनगर पर आक्रमण कर वहाँ के गोधन पर अधिकार; (आश्विन शुक्ल अष्टमी) कौरवों द्वारा विराटनगर पर आक्रमण कर वहाँ के गोधन पर अधिकार; (आश्विन शुक्ल दशमी) पाण्डवों की कौरवों पर विजय; (आश्विन शुक्ल एकादशी) अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह; (कार्तिक कृष्ण पञ्चमी) बलरामजी की तीर्थयात्रा प्रारम्भ; (कार्तिक शुक्ल द्वितीया) कृष्ण द्वारा (पाण्डवों का सन्धिप्रस्ताव लेकर) हस्तिनापुर प्रस्थान; (कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी) श्रीकृष्ण सन्धिप्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर पहुँचे; (मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी) श्रीकृष्ण द्वारा हस्तिनापुरराजसभा में विश्वरूपप्रदर्शन; (मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी से चतुर्दशी) श्रीकृष्ण का कर्ण से वार्तालाप; (मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा) कौरवों एवं पाण्डवों की सेना का कुरुक्षेत्र के मैदान पर आगमन प्रारम्भ; (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी) युद्ध का प्रथम दिवस, अर्जुन का मोहग्रस्त होना, भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा उसे भगवद्गीता का उपदेश, युद्धारम्भ; (मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी) युद्ध का तीसरा दिन, भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा भीष्म को मारने के लिए उद्धत होना; (मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्दशी) युद्ध का चौथा दिन, भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के 8 पुत्रों का वध

• 3138 .पू. : (पौष कृष्ण तृतीया) युद्ध का आठवाँ दिन, भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का वध; (पौष कृष्ण चतुर्थी) युद्ध का नवाँ दिन, भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा भीष्म को पुनः मारने के लिए उद्धत होना; (पौष कृष्ण सप्तमी) युद्ध का दसवाँ दिन, अर्जुन द्वारा भीष्म पितामह की पराजय, भीष्म शरशैय्या पर पतन; (पौष कृष्ण अष्टमी) युद्ध का ग्यारहवाँ दिन, दुर्योधन द्वारा द्रोणाचार्य का कौरव सेनापति के पद पर अभिषेक; (पौष कृष्ण दशमी) युद्ध का तेरहवाँ दिन, द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण, छः महारथियों के सहयोग से कौरवों द्वारा अभिमन्यु का वध; (पौष कृष्ण एकादशी) युद्ध का चौदहवाँ दिन, द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव, अर्जुन द्वारा जयद्रथ, भीम द्वारा धृतराष्ट्र के 37 पुत्रों और शकुनि के 5 भाइयों, कर्ण द्वारा घटोत्कच और द्रोण द्वारा द्रुपद का वध; (पौष कृष्ण द्वादशी) युद्ध का पन्द्रहवाँ दिन, भीमसेन द्वारा अश्वत्थामा नामक गज का वध, युधिष्ठिर द्वारा द्रोण को अश्वत्थामा की मृत्यु का झूठा समाचार सुनाना, धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोण का वध; (पौष कृष्ण त्रयोदशी) युद्ध का सोलहवाँ दिन, दुर्योधन द्वारा कर्ण का कौरवसेनापति के रूप में अभिषेक; (पौष कृष्ण चतुर्दशी) युद्ध का सत्रहवाँ दिन, शल्य कर्ण के सारथी बने, शल्य द्वारा कर्ण को हतोत्साहित करना, भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के 17 पुत्रों का वध, भीमसेन द्वारा दुःशासन का रक्तपान एवं वध, अश्वत्थामा एवं कृपाचार्य का दुर्योधन से सन्धि के लिए प्रस्ताव और दुर्योधन द्वारा उसकी अस्वीकृति, कर्ण के छोड़े गए सर्पमुख बाण से भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन की रक्षा, कर्ण के रथ का पहिया पृथिवी में धंसना, अर्जुन द्वारा कर्ण का वध, दुर्योधन द्वारा शल्य का कौरवसेनापति पद पर अभिषेक (पौष कृष्ण अमावस्या) युद्ध का अठारहवाँ और अन्तिम दिन, युधिष्ठिर द्वारा शल्य का वध, भीम द्वारा धृतराष्ट्र के 12 पुत्रों का वध, सहदेव द्वारा शकुनि का वध, पाण्डवों द्वारा बची हुई समस्त कौरव सेना का वध, दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश, अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य का सरोवर पर जाकर दुर्योधन से युद्ध के विषय में वार्तालाप करना, बलरामजी का आगमन, भीमसेन और दुर्योधन में गदायुद्ध, भीमसेन द्वारा गदा से दुर्योधन की जाँघें तोड़ना, अर्जुन के रथ का दग्ध होना, कृपाचार्य द्वारा अश्वत्थामा का सेनापति के पद पर अभिषेक, भगवान् शिव द्वारा अश्वत्थामा को खंग प्रदान करना, अश्वत्थामा द्वारा रात्रि में सोए हुए धृष्टद्युम्न, उत्तमौजा, युधमन्यु, प्रतिविंध्य, सुतसोम और शिखण्डी सहित समस्त पांचालों एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्रों का वध्, महाभारतयुद्ध समाप्त; (पौष शुक्ल प्रतिपदा) पांचालों के वध का वृत्तांत सुनकर दुर्योधन का प्रसन्न होकर प्राणत्याग करना, अश्वत्थामा और अर्जुन द्वारा एकदूसरे पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग, महर्षि वेदव्यास और नारदजी का आगमन, वेदव्यास जी की आज्ञा से अर्जुन द्वारा अपने अस्त्र लौटाना और अश्वत्थामा का अपनी मणि देकर उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग, श्रीकृष्ण के शाप से अश्वत्थामा का 3000 वर्षों के लिए वन को स्थान; परीक्षित का जन्म; (पौष शुक्ल द्वितीया से चतुर्दशी) पाण्डवों द्वारा युद्ध में मारे गए लोगों के लिए तर्पण; (माघ शुक्ल अष्टमी) भीष्म पितामह का देहत्याग; (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक

• 3137 ई.पू. : (चैत्र शुक्ल पूर्णिमा) युधिष्ठिर द्वारा अश्वमेध-यज्ञ की दीक्षा; (कार्तिक शुक्ल एकादशी, बुधवार, उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र) ब्रभुवाहन द्वारा अर्जुन का वध, अर्जुन को पुनर्जीवन

• 3136 ई.पू. : (चैत्र शुक्ल दशमी, गुरुवार) युधिष्ठिर का अश्वमेध-यज्ञ पूर्ण

• 3122 ई.पू. : (कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा) धृतराष्ट्र, कुंती एवं गान्धारी का वन के लिए प्रस्थान; (मार्गशीर्ष) विदुर का स्वर्गवास

• 3118 ई.पू. : (मार्गशीर्ष) धृतराष्ट्र, कुंती एवं गान्धारी का वन की दावाग्नि में स्वर्गवास

• 3102 ई.पू. : द्वारका में यदुवंश का विनाश; (माघ शुक्ल पूर्णिमा, शुक्रवार, 18 फरवरी), श्रीकृष्ण का स्वर्गारोहण, 28वें कलियुग का प्रारम्भ; (फाल्गुन कृष्ण षष्ठी) समुद्र द्वारा द्वारका का विनाश; (आश्विन शुक्ल द्वादशी) पाण्डवों का परीक्षित को राज्य सौंपकर हिमालय के लिए प्रस्थान

• 3102-3042 ई.पू. : परीक्षित का शासन

• 3076 ई.पू. : पाण्डवों एवं द्रोपदी का स्वर्गारोहण, जनमेजय का जन्म

• 3076-3073 ई.पू. : महर्षि वेदव्यास द्वारा गणेशजी की सहायता से महाभारत का लेखन

• 3042 ई.पू. : परीक्षित का स्वर्गवास

• 3042-2958 ई.पू. : जनमेजय का शासन

• 3018 ई.पू. : जनमेजय द्वारा सर्पयज्ञ, महर्षि वैशम्पायन द्वारा जनमेजय को सम्पूर्ण महाभारत सुनाना

• 2958 ई.पू. : जनमेजय की मृत्यु

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शोधकर्ता एवं लेखक – गुंजन अग्रवाल

संक्षिप्त परिचय

दिनांक 26 नवम्बर, 1984 को ग्राम जरीडीह बाज़ार, ज़िला बोकारो, झारखण्ड में जन्मे गुंजन अग्रवाल प्राच्यविद्या, भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म-दर्शन, भारतीय-वाङ्मय के गहन अध्येता तथा जाने-माने हस्ताक्षर हैं। एतद्विषयक शोधपरक निबन्धों, ग्रन्थों में गहरी अभिरुचि रखनेवाले गुंजन अग्रवाल विगत दो दशक से भी अधिक समय से स्वाध्याय एवं लेखन, सम्पादन और प्रकाशन के कार्य से सम्बद्ध हैं। इस क्षेत्र के देश के मूर्धन्य विद्वानों पर अपनी विद्वत्ता की अमिट छाप छोड़ी है।

गुंजन अग्रवाल भारतीय इतिहास की भ्रांतियों पर विगत कई वर्षों से शोध-कार्य कर रहे हैं। विशेषकर पौराणिक कालगणना के आधार पर भारतीय इतिहास के तिथ्यांकन (क्रोनोलॉजी-निर्माण) में इन्होंने अद्भुत सफलता प्राप्त की है। वेदों का रचनाकाल, श्रीराम का काल-निर्धारण, श्रीराम की ऐतिहासिकता, रामकथा का विश्वव्यापी प्रसार, महाभारत-युद्ध की तिथि, श्रीकृष्ण का समय, भगवान् बुद्ध का समय, आद्य शंकराचार्य का काल-निर्धारण, भारतीय इतिहास का परम्परागत कालक्रम, भारतीय इतिहास-लेखन, इस्लाम-पूर्व अरब में हिन्दू-संस्कृति, यूरोपीयों द्वारा भारतीय कला और बौद्धिक सम्पदा की लूट, आदि अनेक विषयों में इनके लिखे शोध-पत्रों ने उल्लेखनीय ख्याति अर्जित की है।

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